असहिष्णुता नहीं होने की गारंटी मिले तो सारे अवार्ड लौटा दूंगा
देश में अचानक असहिष्णुता के माहौल की तोहमत लगाकर अवार्ड लौटाने की होड़ में लगे साहित्यकारों को उर्दू जबान के बड़े अफसानानिगार पद्मश्री काजी अब्दुल सत्तार ने आइना दिखाया है। पूछा है कि आप लोग तब कहां थे, जब 1984 में दंगा हुआ था? तब अवार्ड क्यों नहीं लौटाया, जब
लखनऊ। देश में अचानक असहिष्णुता के माहौल की तोहमत लगाकर अवार्ड लौटाने की होड़ में लगे साहित्यकारों को उर्दू जबान के बड़े अफसानानिगार पद्मश्री काजी अब्दुल सत्तार ने आइना दिखाया है। पूछा है कि आप लोग तब कहां थे, जब 1984 में दंगा हुआ था? तब अवार्ड क्यों नहीं लौटाया, जब आपातकाल लगा? क्यों सड़क पर साथ देने नहीं आए? 85 साल के काजी अब्दुल सत्तार ने अलीगढ़ 'दैनिक जागरण' से क्या कुछ कहा, सुनिए...
देश में माहौल खराब होने का आरोप लगाकर कई साहित्यकार अवार्ड लौटा रहे हैं, क्या कहेंगे?
मैं भीड़ में जाने का कायल नहीं हूं, कोई खफा हो तो हो। ..हां, मैं भी 18-20 अवार्ड और उनकी रकम फौरन लौटा देता, अगर कोई ये गारंटी देता कि इससे हालात सुधर जाएंगे। फिर कभी कोई घटना नहीं होगी। ...सब भेडिय़ा धसान चल रहे हैं। मैं क्यों जाऊं? 1984 का दंगा हुआ तो ये लोग कहां थे? आपातकाल के दौरान क्यों मौन रहे? उस वक्त मैंने आवाज उठाई थी, तब क्यों अवार्ड नहीं लौटाए?
साहित्यकारों को क्या करना चाहिए?
कुछ लोगों ने मोदी का हौवा खड़ा कर रखा है। साहित्यकारों को मोदी का नहीं, एकेडमिक तरीके से उनकी गलत नीतियों का विरोध करना चाहिए।
क्या वाकई देश का माहौल खराब है?
हर सरकार के जमाने में एक विपक्ष होता है। मिले-जुले लोग भी होते हैं। अच्छी सरकार वो है, जिसे ज्यादा लोग पसंद करें। मोदी सरकार में मुसलमानों के खिलाफ बयान ज्यादा आ रहे हैं। इससे माहौल खराब तो हो रहा है।
गो मांस पर सियासत हो रही है?
बिलकुल। एक जमाना था, जब हिंदू-मुस्लिम किसी भी रियासतदार के यहां कसाई का गेट के अंदर प्रवेश भी वर्जित था। घर के बड़े लोग उनसे गेट पर बात करते थे। अब न वो रियासत है, न वो दौर। मैं कहता हूं कि आप गाय नहीं, सभी बड़े पशुओं के कत्ल पर रोक का कानून बनाइए। मारपीट करना गलत है। खुलकर सोचिए तो गोकशी के लिए हिंदू ही ज्यादा जिम्मेदार हैं। 80 फीसद हिंदू ही गाय पालते हैं। वो क्यों बेचते हैं? जिबा करने वाले को पकडि़ए और बेचने वाले को भी।
मोदी सरकार कैसा काम कर रही है?
मैं कभी किसी पार्टी से नहीं जुड़ा। सिर्फ जनवादी लेखक संघ से जुड़ा और उसका आज भी संरक्षक हूं। हां, इंदिराजी से गैरसियासी संबंध जरूर थे। उन्हें तमाम दिग्गज लोगों से सलाह लेते हुए देखा है। पर, आज ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार मुसलमानों के खिलाफ तो है। वैसे मुसलमान तो हिंदुओं के रहमो-करम पर ही हैं। आप बड़े भाई की तरह क्यों नहीं रह सकते? पाकिस्तान की अदावत और कश्मीर के झगड़े में यहां के मुसलमानों को क्यों रगड़ते हैं? नेपाल में एक शख्स की मौत पर बोलते हैं, सैकड़ों की मौत पर चुप रहते हैं। यह प्राइम मिनिस्टर की शान के खिलाफ है। जाहिर है कि मोदीजी के एडवाइजर ठीक नहीं हैं।