आंबेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ में कठपुतली की पाठशाला, 25 अक्टूबर को होगा प्रदर्शन
अमिताभ बच्चन की फिल्म गुलाबो-सिताबो के साथ शुरू हुई कठपुतली की चर्चा अब विश्वविद्यालय स्तर पर पर होने लगी है। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय में कोरोना काल में संचार माध्यमों की भूमिका को लेकर चल रही कार्यशाला में इस विस्तार से चर्चा शुरू हुई।
लखनऊ, जागरण संवाददाता। अमिताभ बच्चन की फिल्म गुलाबो-सिताबो के साथ शुरू हुई कठपुतली की चर्चा अब विश्वविद्यालय स्तर पर पर होने लगी है। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय में कोरोना काल में संचार माध्यमों की भूमिका को लेकर चल रही कार्यशाला में इस विस्तार से चर्चा शुरू हुई। पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के प्रो.गोविंद पांडेय ने कहा कि संचार के लोक माध्यमों में से एक लोकप्रिय माध्यम कठपुतली है। इसका इतिहास ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में पाणिनि की अष्टाध्यायी में “नटसूत्र “ में पुतला नाटक से लेकर कहानी “सिंहासन बत्तीसी” में विक्रमादित्य के सिंहासन की बत्तीस पुतलियों में इसका उल्लेख मिलता है । प्राचीन काल से ही प्रचलित इस लोक संचार माध्यम का प्रयोग कोविड जागरूकता के लिए किस प्रकार किया जा सकता है।
कार्यशाला में विद्यार्थियों को कठपुतली के माध्यम से कैसे आमजन में जागरूकता लाई जा सकती है इसके प्रशिक्षण के लिए साक्षरता निकेतन के पूर्व सदस्य राजेन्द्र कुमार त्रिवेदी और इश्तियाक अली ने इस विधा पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि हम संचार के कई अन्य माध्यम आज के आधुनिक दौर में लोगों के पास उपलब्ध हैं, लेकिन कठपुतली के माध्यम से नाटक प्रस्तुत करने और लोगों का ध्यान आकर्षित करने की ऐसी शक्ति किसी अन्य माध्यम में नहीं है, जो शक्ति कठपुतली के नाटक में है।
यह एक सरल और आसानी से समझ में आने वाला माध्यम है जिससे आम जनता सीधे तौर पर जुड़ती है और बहुत ही रोचक ढंग से संदेश भी ग्रहण करती है। वर्षों से दहेज प्रथा, बाल विवाह, शिक्षा, घरेलू हिंसा और जनसंख्या नियंत्रण से जुड़े कई सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के लिए इस माध्यम का प्रयोग किया जाता रहा है। कोरोना के प्रति जागरूकता फैलाने में भी यह एक कम खर्च वाला सबसे प्रभावी माध्यम सिद्ध हो सकता है। कार्यशाला के अंतिम दिन 25 अक्टूबर को विद्यार्थियों द्वारा तैयार कठपुतली से कोविड जागरूकता से जुड़े कई मुद्दों पर नाटक मंचन भी किया जाएगा।