यूपी चुनाव में बसपा की बैसाखी चाहती थीं प्रियंका, कांग्रेस की इस रणनीति को राहुल ने खुद किया बेपर्दा
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने दलित एजेंडे को खड़ा करने के प्रयास में सत्ताधारी भाजपा के सहारे बसपा अध्यक्ष मायावती को निशाने पर ले लिया। कहा कि यूपी चुनाव के दौरान कांग्रेस ने बसपा से गठबंधन का प्रयास किया था लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। कभी अकेले अपनी ताकत पर चुनाव लड़ने का ऐलान तो कभी गठबंधन का विकल्प खुला रहने की गोलमोल बात, विधानसभा चुनाव के दौरान सामने आए कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के इन दो रुख के पीछे असमंजस जैसी कोई बात नहीं है। दरअसल, वह खुद अंधेरे में थीं और कांग्रेस को जैसे-तैसे खड़ा करने के लिए हाथ-पैर मार रही थीं।
समाजवादी पार्टी के पूरी तरह से मुंह मोड़ लेने के बाद विपक्षी खेमे में अलग-थलग पड़ी कांग्रेस के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा, बहुजन समाज पार्टी की बैसाखी चाहती थीं। वह प्रतीक्षा में थीं, लेकिन बसपा प्रमुख मायावती ने उनके प्रस्ताव का जवाब तक देना जरूरी नहीं समझा। कांग्रेस की इस विफल रणनीति को स्वयं राहुल गांधी ने बेपर्दा किया है।
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने शनिवार को दिल्ली में एक पुस्तक के विमोचन के दौरान अपने दलित एजेंडे को खड़ा करने के प्रयास में सत्ताधारी भाजपा के सहारे बसपा अध्यक्ष मायावती को भी निशाने पर ले लिया। कहा कि यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने बसपा से गठबंधन का प्रयास किया था। सरकार बनने पर मायावती को मुख्यमंत्री बनाने का भी प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
इसके पीछे के कारण बताते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जो भी आरोप लगाए हों, लेकिन इसके सहारे पार्टी की उस रणनीति को जगजाहिर कर दिया, जिसे तमाम प्रयासों के बावजूद पार्टी की उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा या अन्य रणनीतिकार अमल में नहीं ला सके। कांग्रेस प्रभारी के उन बयानों के अब मायने निकाले जा रहे हैं, जो उन्होंने चुनाव के दौरान दिए थे।
वह कहती रहीं कि कांग्रेस इस बार अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ेगी। फिर कभी-कभार यह भी कह गईं कि राजनीति में संभावनाएं हमेशा बनी रहती हैं, गठबंधन का विकल्प खुला हुआ है। वाड्रा के तब के वह बयान उस परिस्थिति में आए थे, जब सपा मुखिया अखिलेश यादव के लिए कांग्रेस से दोस्ती का स्वाद कसैला हो गया था।
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा से गठबंधन को बेअसर देख देख चुके अखिलेश ने स्पष्ट कह दिया कि वह बड़े दलों से अब गठबंधन नहीं करेंगे। इससे साफ हो गया था कि अखिलेश तो कांग्रेस से गठबंधन नहीं ही करते और सभी छोटे दल भाजपा के अलावा मुख्य प्रतिद्वंद्वी नजर आ रही सपा के साथ जुड़ते जा रहे थे।
ऐसे में कांग्रेस के सामने बसपा के अतिरिक्त कोई विकल्प रह ही नहीं गया था। इधर, अपनी चिर प्रतिद्वंद्वी सपा से भी 2019 में हाथ मिलाने में संकोच नहीं करने वालीं मायावती को निश्चित ही कांग्रेस से कोई उम्मीद नहीं थी।
क्या होता गठबंधन का परिणाम : यदि कांग्रेस और बसपा का गठबंधन हो भी जाता तो उसका क्या परिणाम होता? कुछ अप्रत्याशित होने की उम्मीद तो तब भी नहीं दिख रही थी। दोनों दलों के प्रत्यक्ष परिणाम अब खुद बताते हैं कि गठबंधन भी असफल ही रहता। इस चुनाव में कांग्रेस दो सीट, जबकि बसपा मात्र एक जीती है। नतीजों से साफ है कि कोई बड़ा वोट बैंक इन दलों के साथ नहीं रह गया है।