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महंगाई में अब तो रुलाने लगी प्याज भी,सतर्क हुई उत्तर प्रदेश सरकार

केंद्र सरकार दावा कर चुकी है कि प्याज की उपलब्धता भरपूर है। कहीं कोई संकट नहीं हैं। ऐसे में राज्य सरकार के लिए सवाल खड़ा हो जाता है कि फिर इतनी महंगाई क्यों?

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Thu, 26 Sep 2019 09:51 AM (IST)Updated: Thu, 26 Sep 2019 09:51 AM (IST)
महंगाई में अब तो रुलाने लगी प्याज भी,सतर्क हुई उत्तर प्रदेश सरकार
महंगाई में अब तो रुलाने लगी प्याज भी,सतर्क हुई उत्तर प्रदेश सरकार

लखनऊ, जेएनएन। प्रदेश की मंडियों में इन दिनों प्याज के दिन मानो बहुर आए हैं। आम तौर पर लापरवाही से पड़े रहने वाले इनके बोरों पर इस समय आढ़तियों की निगरानी है। ऐसा हो भी क्यों न? सब्जियों की जान प्याज की मिजाज इस समय चढ़ा जो हुआ है।

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प्याज के भाव आसमान पर हैं और फुटकर बाजार में तो दुकानदार मनमानी कीमतों पर बेच रहे हैं। शायद ही कोई जिला ऐसा हो, जहां प्याज की कीमतें 60 रुपये किलो से कम हों। कहीं-कहीं 70 रुपये से अधिक दाम पर भी बिकने की खबरें हैैं, जिसने इसे मध्यमवर्गीय लोगों की पहुंच से लगभग दूर कर दिया है।

प्रदेश में प्याज की अधिकांश आवक मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र से है। पूर्वांचल की सबसे बड़ी वाराणसी की पहडिय़ा मंडी में नासिक व अन्य प्रांतों से रोजाना दस से 12 ट्रक प्याज मंगाया जाता है। यहां 23 सितंबर को प्याज का औसत भाव 3500 से 4200 रुपये प्रति क्विंटल के शीर्ष पर रहा। उससे पूर्व 17 सितंबर से 22 सितंबर तक 2500 से 3500 तक के भाव में बिका था। फुटकर बाजार में दाम 60 रुपये प्रति किलो है। 24 सितंबर को सात सौ रुपये क्विंटल की गिरावट आई लेकिन फुटकर बाजार चढ़ा ही रहा।

प्रयागराज में बाढ़ ने कोढ़ में खाज का काम किया और सब्जियां तो कम आईं ही, प्याज के दाम ने लोगों की आंख से आंसू निकाल लिए। फुटकर में 60-70 रुपये बिक रहा। अलीगढ़ में पिछले 15 दिन में प्याज की कीमतें बढ़ीं और इस समय साठ रुपये से अधिक दाम पहुंचा। लगभग ऐसी ही स्थिति मुरादाबाद, एटा आदि जिलों की है। राजधानी लखनऊ में एक पखवाड़े पहले तक 35 रुपये किलो प्याज रहा था। अब साठ रुपये किलो पहुंच गया है।

मथुरा-आगरा हाइवे पर स्थित सिकंदरा फल-सब्जी मंडी में मध्यप्रदेश के सतना, इंदौर, राजस्थान के अलवर, महाराष्ट्र के नासिक प्याज आता है। वर्तमान में ये आवक कम हो गई है। एक महीना पहले 14 रुपये प्रति किलो बिकने वाला प्याज बुधवार को मुख्य मंडी में 50 रुपये प्रति किलो बिका, जबकि रिटेल में यह 60-70 रुपये प्रति किलो तक है। मेरठ में नवीन मंडी के निरीक्षक गुलफाम ने बताया कि फुटकर बाजार में दाम 70 से 80 रुपये प्रति किलो पहुंच गए हैं। सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, बुलंदशहर बागपत, बिजनौर में भी प्याज ने मध्यवर्गीय परिवारों की आंखों में आंसू ला रखे हैं।

सतर्क हुई सरकार, रहेगी निगरानी

महंगाई से जनता को रुलाने के साथ ही सरकारों के भी आंसू निकालती रही प्याज फिर उसी तेवर में है। दिल्ली तक सियासी मुद्दा बन चुकी प्याज को लेकर उप्र में अलग ही स्थिति है। बरसात के मौसम में पड़ोसी राज्यों से होने वाली आपूर्ति कुछ प्रभावित हुई है, जबकि दाम में अचानक भारी उछाल आ गया। हालात से सतर्क हुई सरकार ने अब निगरानी को कमर कस ली है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कहना है कि प्याज के दाम पर सरकार की नजर है। दाम नियंत्रित करने के लिए सरकार सभी आवश्यक कदम उठाएगी। गुरुवार को इसको लेकर समीक्षा बैठक भी होने जा रही है।

वैसे केंद्र सरकार दावा कर चुकी है कि प्याज की उपलब्धता भरपूर है। कहीं कोई संकट नहीं हैं। ऐसे में राज्य सरकार के लिए सवाल खड़ा हो जाता है कि फिर इतनी महंगाई क्यों? इस सवाल से सरकार भी परेशान हो गई है, क्योंकि विधानसभा के उपचुनाव होने जा रहे हैं और विपक्ष प्याज की महंगाई को भी मुद्दा बनाने की कोशिश में है। प्याज के बड़े व्यापारी बृजेश कुमार सिंह बताते हैं कि मानसून के सीजन में प्याज के दामों में अमूमन हर वर्ष उछाल आता है लेकिन, इस बार स्थिति कुछ बिगड़ी है। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए। नवरात्र आरंभ होने पर प्याज की मांग घटने की उम्मीद रहती है, जिससे दाम गिरने की संभावना भी जताई जा रही है।

सचिव मंडी परिषद धनंजय सिंह का कहना है कि मंडियों में निगरानी कराई जा रही है। मौसम में खराबी के कारण बाहर से प्याज आपूर्ति कुछ गड़बड़ाई है लेकिन, हालात बेकाबू नहीं हैं। मंडियों में अनावश्यक दामों में वृद्धि क्यों हुई, इस पर नजर है। बेवजह दाम न बढऩे देने की हिदायत दी गई है। वहीं, निदेशक उद्यान डॉ. एसबी शर्मा का कहना है कि महाराष्ट्र में प्याज की कीमतों में गिरावट की सूचना है। इसका प्रभाव एक-दो दिन में स्थानीय स्तर पर दिखने लगेगा।

प्रदेश में 4.4 लाख मीट्रिक टन उत्पादन

उत्तर प्रदेश में रबी सीजन में प्याज की बोआई होती है। लगभग 27 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल भूमि में 4.4 लाख मीट्रिक टन पैदावार होती है। मांग के अनुरूप आपूर्ति के लिए अन्य राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है। 


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