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प्रासंगिक: भाजपा की गीता-फल की चिंता न करें कार्यकर्ता

मेरठ में रविवार को सम्पन्न हुई भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की दो दिनी बैठक कार्यकर्ताओं को यदि प्रेरित और चुनाव सन्नद्ध करने के लिए थी तो इसमें वह सफल हुई।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Tue, 14 Aug 2018 10:36 AM (IST)Updated: Tue, 14 Aug 2018 11:53 AM (IST)
प्रासंगिक: भाजपा की गीता-फल की चिंता न करें कार्यकर्ता
प्रासंगिक: भाजपा की गीता-फल की चिंता न करें कार्यकर्ता

लखनऊ(आशुतोष शुक्ल)। यह काडर वाली पार्टियों के ही बूते की बात है कि साधारण कार्यकर्ता को अगले जन्म में संतुष्ट करने का भरोसा दिलाया जाए और कार्यकर्ता भी अपनी सारी शिकायतें भूल कर न केवल इसे मान ले बल्कि चुनाव के लिए कमर भी कस ले।

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कार्यकर्ताओं से यह कहना सरल नहीं कि वे केवल कर्म करते रहें और फल की चिंता न करें। मेरठ में रविवार को सम्पन्न हुई भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की दो दिनी बैठक कार्यकर्ताओं को यदि प्रेरित और चुनाव सन्नद्ध करने के लिए थी तो इसमें वह सफल हुई। यह भी संयोग ही है कि भाजपा कार्यकर्ताओं को यह ज्ञान 'हस्तिनापुर' की भूमि पर मिला।

आमंत्रितों की संख्या, आकार, भव्यता और उद्देश्य सभी प्रकार से मेरठ की यह बैठक उत्तर प्रदेश की अब तक की सबसे बड़ी थी। प्रदेश में सरकार बनने के कुछ ही दिन बाद से भाजपा कार्यकर्ताओं में असंतोष पनपने की शिकायतें फैलने लगी थीं। उनका अधिक रोष इस बात पर था कि भाजपा का मूल कार्यकर्ता थाने चौकी से लेकर जिलाधिकारी और मंत्रियों के दफ्तर तक उपेक्षित है जबकि बाहर से आकर मंत्री, विधायक बने लोग खुद भी पुष्पित पल्लवित हो रहे हैं और उनके लोग भी भरपूर पोषित हैं।

अधिकारियों की तैनाती में जातिवाद के आरोप, कानून व्यवस्था की स्थिति और खेतों में घुसे मवेशियों की समस्या से लोग परेशान थे। मेरठ कार्यसमिति में यूं तो ऐसे अनेक विषय उठे लेकिन, दो दिनों का प्रधान स्वर एक ही था-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर सत्ता में लाना है और कार्यकर्ता सब भूल कर इसके लिए जुट जाएं। मेरठ कार्यसमिति ऐन वैसी थी जैसी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले झांसी में हुई थी। हां, एक अंतर भी था। तब भाजपा तत्कालीन राज्य सरकार की विफलताओं पर आक्रामक थी जबकि इस बार उसने विकास का मंत्र जपा है।

डेढ़ साल चल चुकी अपनी राज्य सरकार के बाद कोई भी पार्टी अपने ही काम गिनाने के लिए बाध्य होती है जबकि अब हमलावर होने की बारी विपक्ष की है। इसीलिए बैठक के दोनों दिन लोकसभा की 74 सीटें जितवाने का वादा कार्यकर्ताओं से लिया गया। भाजपा अपनी चुनावी रणनीति में बूथों पर बहुत जोर देती है, लिहाजा कार्यकर्ताओं को अगले लोकसभा चुनाव में हर बूथ पर 51 प्रतिशत से अधिक वोट पाने का संकल्प दिलाया गया। सपा-बसपा और कांग्रेस के संभावित गठबंधन को भाजपा चाहे कितनी ही गंभीरता से लेती हो, कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा रखने के लिए उनसे यही कहा गया कि दूसरे दलों की ऐसी दोस्ती से उन्हें चिंतित नहीं होना चाहिए क्योंकि इन सभी को भाजपा कई बार हरा चुकी है।

क्या वाकई? क्या भाजपा इतनी ही निश्चिंत है जितना कि वह दिखने का प्रयास कर रही है। ऐसा लगता तो नहीं क्योंकि दोनों ही दिन पार्टी अपने पुराने और कई बार आजमाये हुए एजेंडे को भी धार देती रही। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कश्मीर में रोज ही आतंकियों के मारे जाने की याद दिलाकर जोश भरा तो यह बताना भी नहीं भूले कि सेना को पाकिस्तान के भीतर तक घुसने की छूट दे दी गई है।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अंतिम दिन तुष्टीकरण के मुद्दे को धार दे दी। उनका ऐलानिया यह कहना पार्टी की भावी लाइन स्पष्ट कर गया कि अगली बार मोदी प्रधानमंत्री बने तो तुष्टीकरण को समाप्त कर दिया जाएगा। वह यह भी कह गए कि दूसरे देशों से आने वाले हिंदू, सिख और जैन शरणार्थियों का भारत में स्वागत है जबकि घुसपैठियों को निकाल बाहर किया जाएगा।

अगले लोकसभा चुनाव की इससे साफ तस्वीर भला और क्या होगी ! 


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