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10 दिन तक तड़पता रहा पिता, बच्चे के आंसू देख पिघला डॉक्टर का दिल-मिला इलाज

कानपुर के हैलेट हॉस्पिटल से 40 वर्षीय मरीज बबलू इलाज कराने आया था लखनऊ। रैन बसेरे में अधिकारियों की नजर बच्चे पर पड़ी। पीआरओ की मदद से बच्चे के पिता का निश्शुल्क इलाज शुरू हुआ।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 23 Feb 2019 07:13 PM (IST)Updated: Sat, 23 Feb 2019 07:13 PM (IST)
10 दिन तक तड़पता रहा पिता, बच्चे के आंसू देख पिघला डॉक्टर का दिल-मिला इलाज
10 दिन तक तड़पता रहा पिता, बच्चे के आंसू देख पिघला डॉक्टर का दिल-मिला इलाज

लखनऊ, जेएनएन। ट्रॉमा सेंटर के आला अधिकारियों ने एक आठ साल के बच्चे पर रहम दिली दिखाई है। रैन बसेरे में कई दिनों से बच्चा अपने पिता को लेकर बैठा था। काफी भटकने के बाद भी बच्चा पिता का इलाज नहीं करवा पा रहा था। वहीं, राउंड पर आए अधिकारियों की नजर बच्चे पर पड़ी और उन्होंने पीआरओ की मदद से उसका इलाज शुरू करवाया। बच्चे के पिता का निश्शुल्क इलाज किया जा रहा है और उसकी हालत में काफी सुधार भी आ गया है। 

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10 दिन से बिना इलाज पड़ा था बबलू 

लगभग 10 दिन पहले कानपुर के हैलेट हॉस्पिटल से 40 वर्षीय मरीज बबलू को 108 एंबुलेंस ट्रॉमा सेंटर छोड़ गई थी। एंबुलेंस में लगभग आठ साल का साहिल अपने पिता बबलू को लेकर आया था। साहिल बहुत छोटा था, जिसकी वजह से उसे समझ नहीं आया कि अपने पिता के इलाज के लिए कहां जाए। काफी भटकने के बाद भी उसकी किसी ने मदद नहीं की। लगभग 10 दिन तक साहिल अपने पिता को लेकर रैनबसेरे में पड़ा रहा। जिसके चलते उसके पित‍ा को बेडसोर हो गया था जिसकी वजह से वो चलने फिरने में भी असमर्थ था। 

राउंड पर आए डॉक्टरों ने करवाया इलाज 

लगभग 10 दिन पहले ट्रॉमा सेंटर में राउंड पर सीनियर डॉक्टरों की नजर रैनबसेरे में बैठे साहिल पर पड़ी। जिसके बाद उन्होंने ड्यूटी पर मौजूद पीआरओ को बबलू का इलाज करवाने की हिदायत दी। पीआरओ राजेश सिंह ने बताया कि बबलू को बेड सोर हुआ था जो कि उसकी पूरी पीठ में था। बबलू को सर्जरी विभाग में भेजा गया जहां उसका इलाज चल रहा है। बबलू की हालत में काफी सुधार है। 

मिस्त्री का काम कर होता गुजर बसर 

साहिल ने बताया कि उसका कोई रिश्तेदार नहीं है। मां की मौत काफी साल पहले हो चुकी है। पिता मिस्त्री का काम करके गुजर बसर करते थे। बीमार पड़ गए थे, जिसके बाद उनकी पीठ पर बेड सोर हो गया था। हमारे पास पैसे भी नहीं थे। हैलेट हॉस्पिटल में कोई इलाज नहीं मिला। एंबुलेंस ने हमें ट्रॉमा सेंटर छोड़ दिया।


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