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सपा-बसपा गठबंधन के पहले दौर में रालोद पूरी तरह सीन से बाहर

बसपा और सपा ने उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में 38-38 सीटें खुद बांट ली और दो कांग्रेस के लिए छोड़ी है लेकिन, जिन दो सीटों पर पत्ता नहीं खोला उसको लेकर कयासों का दौर शुरू हो गया है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Sat, 12 Jan 2019 08:01 PM (IST)Updated: Sat, 12 Jan 2019 08:01 PM (IST)
सपा-बसपा गठबंधन के पहले दौर में रालोद पूरी तरह सीन से बाहर
सपा-बसपा गठबंधन के पहले दौर में रालोद पूरी तरह सीन से बाहर

लखनऊ, जेएनएन। बसपा अध्यक्ष मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में 38-38 सीटें खुद बांट ली और दो कांग्रेस के लिए छोड़ी है लेकिन, जिन दो सीटों पर पत्ता नहीं खोला उसको लेकर कयासों का दौर शुरू हो गया है। तात्कालिक झटका रालोद के लिए है जिसे गठबंधन का अंग माना जा रहा था लेकिन, पहले दौर में वह सीन से गायब रहा। इससे रालोद से दूरी भी बढ़ी है। राष्ट्रीय लोकदल के साथ बसपा की भले न करीबी हो लेकिन, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ उनकी नजदीकी उपचुनाव से बढ़ी है। कैराना लोकसभा उपचुनाव में अखिलेश की पार्टी की नेता तबस्सुम को ही रालोद कोटे से टिकट दिया गया और वह जीत गईं।

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अब दो ही सीटें बचीं

रालोद ने इसके पहले गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव में सपा को समर्थन दिया था। माना जा रहा था कि पहली ही खेप में रालोद गठबंधन का हिस्सा होगा। रालोद के बारे में यह भी चर्चा रही कि चार से पांच सीटें उसकी झोली में जाएंगी लेकिन, सीटों के बंटवारे में उसके हिस्से के लिए दो ही बचीं। सूत्रों का कहना है कि अगर रालोद दो सीटों पर राजी हुआ तो वह गठबंधन में रहेगा अन्यथा राहें जुदा हो जाएंगी। बहुत हुआ तो अखिलेश यादव अपने कोटे से एक सीट दे सकते हैं।  इस स्थिति में रालोद की ओर भाजपा की भी नजर टिकी है। भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट मतों को मजबूती से पकडऩे के लिए चौधरी अजित सिंह के साथ समझौता कर सकती है। चौधरी पहले भी भाजपा के साथ गठबंधन करके फायदे में रह चुके हैं। 

पीस पार्टी और निषाद पार्टी की सीटें 

समाजवादी पार्टी ने निषाद और पीस पार्टी जैसे दलों के साथ भी नजदीकी बढ़ाई है। सपा-बसपा गठबंधन में पीस पार्टी और निषाद को भी एक-एक सीट मिल सकती है। अगर रालोद दो सीटों पर राजी हो गया तो यह भी संभव है कि अखिलेश यादव अपने कोटे में पीस और निषाद को मौका दे दें। संकेत यह भी मिल रहे हैं कि अखिलेश यादव अपने हिस्से में भी कुछ छोटे दलों का साथ ले सकते हैं। 


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