रीता बहुगुणा का घर जलाने के मामले में पुलिसकर्मियों को मिली फौरी राहत
रीता बहुगुणा जोशी का घर जलाने का मामला सर्वप्रथम अभियोजन स्वीकृति के मुद्दे को निर्णित करेंगे संबंधित मजिस्ट्रेट।
लखनऊ, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने रीता बहुगुणा जोशी का घर जलाने के मामले में अभियोजन स्वीकृति के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर पुलिसकर्मियों को फौरी राहत दी है। कोर्ट ने याचिका निस्तारित करते हुए याची पुलिसकर्मियों को अनुमति दी है कि वे आरोप पत्र दाखिल होने के पश्चात संबंधित मजिस्ट्रेट की अदालत में यह तर्क दे सकते हैं कि उनके खिलाफ अभियोजन स्वीकृति विधि सम्मत नहीं है। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि संबंधित मजिस्ट्रेट सर्वप्रथम अभियोजन स्वीकृति के मुद्दे को निर्णित करेगा और तब तक याचियों पर कोई भी उत्पीड़नात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।
यह आदेश जस्टिस अनिल कुमार और जस्टिस मनीष माथुर की पीठ ने तत्कालीन सीओ हजरतगंज बीएस गर्बयाल, तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक थाना हुसैनगंज बलराम सरोज, तत्कालीन आरक्षी हजरतगंज वीरेंद्र कुमार व हुसैनगंज के तत्कालीन आरक्षियों अशोक कुमार यादव व चंद्रशेखर की ओर से दाखिल दो अलग-अलग याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया। इस मामले में हुसैनगंज थाने में दर्ज एफआइआर के क्रम में अपर मुख्य सचिव, गृह के 27 अगस्त 2018 के अभियोजन स्वीकृति संबंधी आदेश को याचियों ने चुनौती दी थी।
याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एचजीएस परिहार ने दलील दी कि जांच एजेंसी सीबी-सीआइडी ने कुल दस पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों के विरुद्ध अभियोजन स्वीकृति की मांग की थी, जिसमें तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक अरविंद कुमार जैन, तत्कालीन उप महानिरीक्षक प्रेम प्रकाश, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक पूर्वी हरीश कुमार व कुछ अन्य पुलिसकर्मी तथा याचीगण शामिल थे। लेकिन, सरकार ने सिर्फ याचियों के विरुद्ध ही अभियोजन स्वीकृति दी है। परिहार ने यह भी दलील दी कि सरकार की यह कार्रवाई विधि के समक्ष समता के मौलिक अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है।
जबकि याचिका का राज्य सरकार की ओर से अपर शासकीय अधिवक्ता एसपी सिंह ने विरोध किया। उल्लेखनीय है कि 15 जुलाई 2009 को रीता बहुगुणा जोशी के सरोजिनी नायडू मार्ग स्थित आवास को जला दिया गया था। इस घटना को अंजाम देने का आरोप कुछ बसपा नेताओं पर है।