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यूपी की राजधानी लखनऊ में जहरीली हवा रोज ले रही 11 लोगों की जान

जहरीली हवा से होने वाली बीमारियां राजधानी लखनऊ में रोजाना 11 लोगों की जान ले रही हैं।यहां हर साल 4127 लोगों की मौत हो जाती है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Tue, 22 May 2018 09:58 PM (IST)Updated: Thu, 24 May 2018 07:43 AM (IST)
यूपी की राजधानी लखनऊ में जहरीली हवा रोज ले रही 11 लोगों की जान
यूपी की राजधानी लखनऊ में जहरीली हवा रोज ले रही 11 लोगों की जान

लखनऊ (जेएनएन)। जहरीली हवा से होने वाली बीमारियां राजधानी लखनऊ में रोजाना 11 लोगों की जान ले रही हैं। सालाना कानपुर में सर्वाधिक 4173 मौतें होती हैं, जबकि लखनऊ में 4127 लोगों की मृत्यु हो जाती है। स्थिति यह है कि उत्तर प्रदेश में बीते दो दशकों में असमय मौतों की संख्या बढ़ गई है। 

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ये तस्वीर सेंटर फॉर एनवॉयरमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) और आइआइटी-दिल्ली द्वारा तैयार रिपोर्ट 'जानिए आप कैसी हवा में सांस ले रहे हैं' में सामने आई है। रिपोर्ट का हवाला देते हुए सीड की सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर अंकिता ज्योति ने कहा कि वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव दिनोंदिन बढ़ रहा है। लंबे समय तक प्रदूषित वातावरण में रहने वालों में बीमारियां बढ़ रही हैं, जिससे वह असमय मौत के शिकार हो रहे हैं। स्थिति यह है कि असमय मृत्यु-दर (प्रीमैच्योर मोर्टेलिटी) चिंताजनक ढंग से बढ़कर प्रति लाख आबादी पर 150-300 व्यक्ति के करीब पहुंच गई है। आइआइटी दिल्ली और मुंबई द्वारा इस संदर्भ में प्रदेश के जिला अस्पतालों से एकत्र किया गया यह आंकड़ा और भी ज्यादा हो सकता है। कारण यह है कि बहुत सी मौतें रजिस्टर ही नहीं होती हैं। यही नहीं, कई बार बीमारी की पहचान ही नहीं हो पाती है। 

 

रिपोर्ट के अनुसार, सभी शहरों में पर्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) का स्तर राष्ट्रीय मानक (40 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर) से दो गुना ज्यादा और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की वार्षिक औसत सीमा तीन से आठ गुना ज्यादा है। सीड द्वारा देश के जिन 11 शहरों में अध्ययन किया गया है उनमें उत्तर प्रदेश के लखनऊ सहित आगरा, इलाहाबाद, कानपुर, मेरठ, वाराणसी, गोरखपुर शामिल हैं। अंकिता ने बताया कि रिपोर्ट बीते 17 सालों में पीएम 2.5 के औसत पर आधारित है, जिसे सेटेलाइट डाटा की मदद से तैयार किया गया है। 

इन बीमारियों के हो रहे शिकार

वायु प्रदूषण की वजह से कई बीमारियां हो जाती हैं। मुख्य रूप से क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), इश्चिमिक हार्ट डिजीज (आइएचडी), स्ट्रोक, लंग कैंसर व एक्यूट लोअर रेस्पिरेट्री इंफेक्शन की बीमारियां जहरीली हवा की देन हैं। इनके चलते लोग असमय मौत के शिकार बने रहे हैं। 

 

गंगा के मैदानी क्षेत्र में समस्या अधिक

प्रदेश के जिन सात शहरों को अध्ययन में शामिल किया गया है, उनमें गंगा के मैदानी क्षेत्र के पश्चिमी छोर पर बसे मेरठ और आगरा जैसे शहरों में समस्या सबसे ज्यादा है। एयरोसोल पर आधारित विश्लेषण के अनुसार गंगा के मैदानी क्षेत्र में पीएम 2.5 पश्चिम से पूर्वी इलाकों की ओर जा रहा है। वाराणसी में पीएम 2.5 का विस्तार सबसे तेज पाया गया है। मेरठ, आगरा, लखनऊ, वाराणसी और गोरखपुर में पीएम 2.5 की बढ़ती रफ्तार अलार्मिंग स्तर पर आ चुकी है। वहीं कानपुर और इलाहाबाद में यह मॉडरेट स्तर पर है। मेरठ में वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है।

दम घोंट रही दूषित हवा

सीड के प्रोग्राम डायरेक्टर अभिषेक प्रताप ने कहा कि दूषित हवा फेफड़े खराब कर हमारा दम घोंट रही है। केंद्र व राज्य सरकारों को इस अलार्मिंग स्थिति पर तत्काल ध्यान देना चाहिए। नेशनल क्लीन एयर एक्शन प्लान तैयार कर उसे अमल में लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके लिए सबसे पहले एक समुचित एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग मैकेनिज्म को लागू करना होगा क्योंकि बगैर इसके प्रदूषण नियंत्रण का कोई भी प्रयास सफल नहीं हो पाएगा। 


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