अब आ गए पितरों को प्रसन्न करने के दिन
लखनऊ। शास्त्रों में पितरों का ऋण उतारने के लिए महालया का विधान है जो भाद्र शुक्ल पूर्णिमा से प
लखनऊ। शास्त्रों में पितरों का ऋण उतारने के लिए महालया का विधान है जो भाद्र शुक्ल पूर्णिमा से प्रारंभ होकर आश्रि्वन (कुवार) कृष्ण अमावस्या तक रहता है। मान्यता है कि इन 16 दिनों में तर्पण और विशेष तिथियों पर श्राद्ध से पितर प्रसन्न होते हैं। इस बार महालया का आरंभ आठ सितंबर को तथा समाप्ति 23 सितंबर को पितृ विसर्जन से हो रही है।
ज्योतिर्विद ऋषि द्विवेदी के अनुसार इस बार पितृ पक्ष में आश्रि्वन कृष्ण प्रतिपदा का क्षय तथा त्रयोदशी की वृद्धि भी हो रही है। ऐसे में क्षय-वृद्धि मिलाकर 16 दिन पूर्ववत पूर्ण हो रहे हैं। देखा जाए तो माता पिता हमारी आयु, आरोग्य व सुख, सौभाग्यादि के लिए सर्वस्व लुटा देते हैं, उनके ऋण से मुक्त होने के लिए शास्त्रों में पितृपक्ष या पितृव्रत का वर्णन मिलता है। अत: उनकी मृत्यु तिथि अनुसार घाट कुंडों पर जल, तिल, यव, कुश तथा पुष्प आदि से श्राद्ध किया जाता है। गौ ग्रास देकर अपनी सामर्थ्य अनुसार ब्राह्मंणों को भोजनादि करा देने मात्र से भी पितरगण प्रसन्न होते हैं। उनकी प्रसन्नता से जीवन सुखमय तथा सौभाग्य वृद्धि होती है।
खास श्राद्ध तिथिया
पितृपक्ष में प्रतिदिन पितरों का तर्पण तथा तिथि अनुसार विशेष श्राद्ध करना चाहिए। इसमें विशेषतया पंचमी का श्राद्ध (13 सितंबर) व पितृपक्ष में भरणी का श्राद्ध करने से विशेष पुण्य मिलता है। इस श्राद्ध से गया श्राद्ध के समान फल की प्राप्ति होती है। नवमी अर्थात मातृनवमी का श्राद्ध सौभाग्यवती स्त्रियों का होता है। द्वादशी का श्राद्ध संन्यासी यति व वैष्णवों के निमित्त किया जाता है। शस्त्र आदि से मृत व्यक्तियों का श्राद्ध चतुर्दशी को करना चाहिए। सर्वपैत्री यानी अज्ञात तिथि वालों का श्राद्ध पितृ विसर्जन पर 23 सितंबर को किया जाएगा।
अंग्रेजी कैंलेडर में पितृपक्ष तिथिया
प्रतिपदा का श्राद्ध नौ सितंबर, द्वितीया का श्राद्ध 10 सितंबर, तृतीया का श्राद्ध 11 को, चतुर्थी का 12 को, पंचमी का श्राद्ध 13 को, षष्ठी का श्राद्ध 14 को, सप्तमी का श्राद्ध 15 को, अष्टमी का श्राद्ध 16 को, नवमी का 17 को, दशमी का 18 को, एकादशी का श्राद्ध 19 को, द्वादशी का श्राद्ध 20 को, त्रयोदशी का 21 को, चतुर्दशी 22 को, 23 को सर्वपैत्री श्राद्ध की अमावस्या यानी पितृविसर्जन।