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गंगा की दुर्दशा पर एनबीआरआइ के वैज्ञानिकों के शोध में चौंकाने वाली जानकारी

वैज्ञानिक विश्लेषण : गंगाजल में सीवेज ही नहीं, कीटनाशक और खतरनाक रासायनिक तत्व भी मौजूद। गलतियों से सबक लें तो प्रदूषण मुक्त हों गंगा।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Tue, 27 Nov 2018 09:51 AM (IST)Updated: Tue, 27 Nov 2018 09:51 AM (IST)
गंगा की दुर्दशा पर एनबीआरआइ के वैज्ञानिकों के शोध में चौंकाने वाली जानकारी
गंगा की दुर्दशा पर एनबीआरआइ के वैज्ञानिकों के शोध में चौंकाने वाली जानकारी

लखनऊ, (रूमा सिन्हा)। गंगा के पानी में सीवेज ही नहीं, भारी मात्रा में कैंसरकारक धातुएं, रासायनिक तत्व और कीटनाशकों के अवशेष भी मौजूद हैं। सीवेज प्रदूषण को रोककर गंगा को पुनर्जीवित करने का सपना दिखाने वाले नीति निर्धारकों के लिए यह चौंकाने वाली खबर है। नमामि गंगे परियोजना में यदि इससे सबक नहीं लिया गया तो गंगा को निर्मल व अविरल करना नामुमकिन होगा। राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआइ) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध में प्रदूषण के तमाम पहलुओं को उजागर किया गया है।

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28 फीसद सीवेज का ही उपचार

वैज्ञानिकों के अनुसार गंगा में घातक रासायनिक तत्वों की सर्वाधिक मात्रा उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में पाई गई है। वहीं, सबसे ज्यादा कीटनाशक बिहार से गुजरने वाली जल धारा में मिले हैं। यह भी सामने आया है कि 1985 से 2015 के दरम्यान गंगा में गिरने वाले गैर उपचारित सीवेज की मात्रा में नौ गुना तक इजाफा हुआ है, जबकि28 फीसद सीवेज उपचार की व्यवस्था ही हो सकी है। गंगा जल की गुणवत्ता को परखने के लिए यह पहला ऐसा समग्र वैज्ञानिक विश्लेषण है, जो विश्वस्तरीय एनवायरमेंट इंटरनेशनल जर्नल के हालिया अंक में इंपैक्ट फैक्टर 7.8 के साथ प्रकाशित हुआ है। भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे बड़ी नदी गंगा पर डॉ. संजय द्विवेदी, डॉ. सीमा मिश्रा व डॉ. रुद्रदेव त्रिपाठी की इस पर्यावरणीय पड़ताल को एक बड़ी उपलब्धि के साथ नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा व जिम्मेदार संस्थाओं के लिए 'आई ओपनर' माना जा रहा है। शोध में गंगा नदी की 2525 किलोमीटर में फैली जलधारा में व्याप्त प्रदूषण के आकलन से जुड़े बीते पचास वर्षों के तमाम अध्ययन और निष्कर्षों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है।

शहरी सीवेज मुख्य दोषी

एनविस सेंटर के वर्ष 2015 के आकलन के अनुसार गंगा में कुल जनित सीवेज 15435 एमएलडी है, जबकि गंगा एक्शन प्लान व नमामि गंगे के तहत कुल सीवेज शोधन क्षमता बमुश्किल 35 सौ एमएलडी ही विकसित हो पाएगी। वैज्ञानिक डॉ. संजय द्विवेदी बताते हैं कि एनबीआरआइ के निदेशक डॉ. एसके बारिक नमामि गंगे परियोजना के तहत गंगा पर एक विस्तृत अध्ययन परियोजना भेजने की तैयारी में हैं।

यूपी और पश्चिम बंगाल में हालात चिंताजनक

  • यूपी में कानपुर तथा वाराणसी में जीवाणुओं की संख्या सर्वाधिक
  • गंगा बेसिन में प्रवाहित होने वाला औद्योगिक कचरा 25 सौ एमएलडी मिला। सबसे ज्यादा प्रदूषणकारी 764 उद्योग यूपी में हैं। कन्नौज से वाराणसी का क्षेत्र प्रदूषण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है
  • कैडमियम, क्रोमियम व लेड सबसे अधिक यूपी में मिले
  • आर्सेनिक और मरकरी सबसे अधिक पश्चिम बंगाल व उसके बाद यूपी में मिले। 

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