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कमजोर नेटवर्क से इंटरनेट डाटा में 'डाका' के सिग्नल, टेलीकॉम को फायदा-कट रही लोगों की जेब

05 गुना तक बढ़ गया शहर के हर बीटीएस पर लोड नहीं बढ़ रही ट्रांस रिसीवर कार्ड की क्षमता। 22 लाख लखनऊ के उपभोक्ता रोजाना करते साढ़े सात लाख जीबी डाटा।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Wed, 29 Jan 2020 10:24 AM (IST)Updated: Wed, 29 Jan 2020 10:24 AM (IST)
कमजोर नेटवर्क से इंटरनेट डाटा में  'डाका' के सिग्नल, टेलीकॉम को फायदा-कट रही लोगों की जेब
कमजोर नेटवर्क से इंटरनेट डाटा में 'डाका' के सिग्नल, टेलीकॉम को फायदा-कट रही लोगों की जेब

लखनऊ, जेएनएन। बार-बार कॉल कट जाना, अचानक इंटरनेट के सिग्नल गुल हो जाना..., इन दिनों बड़े पैमाने पर मोबाइल उपभोक्ता इस मुश्किल से दो चार हैं। इससे न केवल लोगों के जरूरी कामकाज प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि उनकी जेब भी कट रही है। वो इसलिए क्योंकि कमजोर नेटवर्क सिर्फ बातचीत में ही बाधा नहीं बन रहा, इसकी आड़ रोजाना करीब चार लाख जीबी इंटरनेट डाटा व्यर्थ चला जाता है। जानकार बताते हैं, इसका सीधा फायदा टेलीकॉम कंपनियों को होता है। यही कारण है, हालात जानने के बावजूद नेटवर्क दुरुस्त करने के प्रयास नहीं किए जा रहे। 

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टैरिफ प्लान की तरह ही कमजोर मोबाइल नेटवर्क को भी 'गेम प्लान' बताया जा रहा है। तकनीकि जानकारों  मुताबिक, हर रोज तमाम कंपनियों के मोबाइल उपभोक्ता तो तेजी से बढ़ रहे हैं मगर, उस लिहाज से वे अपनी क्षमता नहीं बढ़ा पा रहीं।  आलम यह है कि अधिकांश बेस ट्रांसीवर सिस्टम (बीटीएस) टॉवरों पर इस समय निर्धारित क्षमता से पांच गुना नंबरों का लोड है। उपभोक्ताओं को मजबूत नेटवर्क और तेज गति की इंटरनेट तभी मिल पाएगा, जब अधिक बीटीएस लगेंगे। मौजूदा बीटीएस टॉवरों की ट्रांस रिसीव कार्ड की क्षमता बढ़ाई जाए। 

फिलहाल इतने बीटीएस 

लखनऊ के उपभोक्ताओं को 2जी, 3जी और 4जी के नौ हजार बीटीएस टॉवरों से इंटरनेट और कॉल का नेटवर्क मिल रहा है। इसमें बीएसएनएल के 4जी के 146 टॉवर भी शामिल हैं। लखनऊ में टेलीकॉम कंपनियों के रिकॉर्ड के मुताबिक, रोजाना करीब 750 टेराबाइट (टीबी) इंटरनेट डाटा का इस्तेमाल होता है। इसमें निजी टेलीकॉम कंपनियों की हिस्सेदारी 670 टीबी से अधिक की है। जबकि सरकारी कंपनी बीएसएनएल की हिस्सेदारी रोजाना 80 से 90 टीबी के बीच रहती है। 

इसलिए जाम हो रहा मोबाइल ट्रैफिक 

टेलीकॉम कंपनियों के बीटीएस के सिस्टम पर इस समय ट्रांस रिसीव कार्ड के जरिए एक समय में 5200 उपभोक्ता कॉल व इंटरनेट का इस्तेमाल कर सकते हैं। जबकि स्थिति बिल्कुल उलट है। इस समय पांच गुना अधिक तक उपभोक्ता कॉल व इंटरनेट का इस्तेमाल करने को मजबूर हैैं। 

ऐसा चूना लगाता धीमा इंटरनेट

प्राइज वार के बीच निजी टेलीकॉम कंपनियां बीटीएस को अपग्रेड न करके इंटरनेट की गति धीमी से उपभोक्ताओं को चूना लगाती है। ये कंपनियां अपने टैरिफ में रोजाना औसतन 1.5 जीबी इंटरनेट डाटा और प्लान के अनुसार उनकी वैद्यता की अवधि देती है। ऐसे में कमजोर नेटवर्क के कारण यूटयूब पर वीडियो और सोशल मीडिया का अधिक इस्तेमाल नहीं हो पाता। औसतन एक उपभोक्ता प्रतिदिन 1.5 जीबी में से केवल 600 से 800 एमबी इंटरनेट डाटा का इस्तेमाल कर पा रहा है। 

उपद्रव में उपभोक्ताओं की खूब कटी जेब

पिछले महीने ही लखनऊ में उपद्रव के कारण निजी टेलीकॉम कंपनियों की इंटरनेट सेवाएं बंद कराई गई थीं। इसका सीधा नुकसान उपभोक्ताओं को हुआ। कंपनियों ने 19 लाख उपभोक्ताओं को बंदी के समय का करीब साढ़े छह लाख जीबी डाटा दिया ही नहीं। एक अनुमान के मुताबिक, लखनऊ में रोजाना जियो, वोडाफोन-आइडिया, एयरटेल और बीएसएनएल के उपभोक्ता साढ़े सात लाख इंटरनेट डाटा की खपत करते हैं। 

घनत्व बढ़ा सुविधा नहीं 

वर्ष 1997-98 में देश में दूरसंचार घनत्व 1.97 प्रतिशत था। मतलब केवल 1.97 लोगों के पास ही टेलीफोन की सुविधा थी। ट्राई की रिपोर्ट के अनुसार, अब दूरसंचार घनत्व 90.05 प्रतिशत से अधिक है। इसमें बिना तार वाले फोन का दूरसंचार घनत्व 88.42 और तार वाले बेसिक फोन का दूरसंचार घनत्व 1.63 प्रतिशत बचा है।  हालांकि सबसे अधिक दूरसंचार घनत्व 239.54 प्रतिशत दिल्ली का जबकि 68.85 प्रतिशत के साथ उत्तर प्रदेश 18वें स्थान पर है। 


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