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बकरीद को लेकर बुलाई गई बैठक, हर साल की तरह इस बार भी त्योहार मनाने का लिया निर्णय

ईद उल अजहा यानी बकरीद के त्योहार के मद्देनजर बुलाई गई पीस कमेटी की बैठक। तय हुआ- किसी भी तरह की अव्यवस्था की कोई गुंजाइश नहीं रहे। शांति भाव से त्योहार संपन्न हो।

By JagranEdited By: Published: Sun, 19 Aug 2018 12:06 PM (IST)Updated: Sun, 19 Aug 2018 12:06 PM (IST)
बकरीद को लेकर बुलाई गई बैठक, हर साल की तरह इस बार भी त्योहार मनाने का लिया निर्णय
बकरीद को लेकर बुलाई गई बैठक, हर साल की तरह इस बार भी त्योहार मनाने का लिया निर्णय

लखनऊ(जेएनएन)। ईद उल अजहा यानी बकरीद का त्योहार 22 अगस्त को मनाया जाएगा। राजधानी में जहां एक तरफ लोग तैयारियों में लगे हुए हैं, वहीं आलाधिकारी चाक-चौबंद व्यवस्था करने में लगें हैं। इसके मद्देनजर रविवार को थाना कैंट में पीस कमेटी की बैठक बुलाई गई। बैठक में तनु उपाध्याय, क्षेत्राधिकारी कैट रंजना सचान, कैट व नगर निगम पार्षद संभ्रात और थाना प्रभारी कैट छावनी परिषद के अधिकारीगण पहुंचे। इस दौरान तय किया हुआ कि हर साल की तरह कुर्बानी का त्योहार इस वर्ष भी मनाया जाएगा। किसी भी तरह की अव्यवस्था की कोई गुंजाइश नहीं रहे। शांति भाव से त्योहार संपन्न हो।

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। बैठक में तनु उपाध्याय, क्षेत्राधिकारी कैट रंजना सचान, कैट व नगर निगम पार्षद संभ्रात और थाना प्रभारी कैट छावनी परिषद के अधिकारीगण पहुंचे। इस दौरान तय किया हुआ कि हर साल की तरह कुर्बानी का त्योहार इस वर्ष भी मनाया जाएगा। किसी भी तरह की अव्यवस्था की कोई गुंजाइश नहीं रहे। शांति भाव से त्योहार संपन्न हो। समुदाय दो भागों में बटा:

जिल्हिज का चाद 12 अगस्त की रात दिखते ही सुन्नी समुदाय दो भागों में बट गया है। काजी ए शहर मुफ्ती इरफान फरंगी महली ने चाद की तस्दीक न होने पर 23 अगस्त को बकरीद मनाने का एलान किया। तो वहीं मरकजी चाद कमेटी के अध्यक्ष मौलाना खालिद रशीद ने चाद होने के साथ 22 अगस्त को बकरीद मनाने का एलान किया।

कब मनाई जाती है बकरीद?

इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, 12वें महीने धू-अल-हिज्जा की 10 तारीख को बकरीद मनाई जाती है। यह तारीख रमजान के पवित्र महीने के खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद आती है।

क्यों दी जाती है कुर्बानी?

हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आखों पर पट्टी बाध ली थी। जब अपना काम पूरा करने के बाद पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने पुत्र को अपने सामने जिन्दा खड़ा हुआ देखा। बेदी पर कटा हुआ दुम्बा (सउदी में पाया जाने वाला भेंड़ जैसा जानवर) पड़ा हुआ था, तभी से इस मौके पर कुर्बानी देने की प्रथा है।


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