KGMU: मरीजों को नहीं मिल रही हैं सस्ती दरों पर दवाएं, 80 करोड़ की दवाओं का हिसाब नहीं
केजीएमयू में बजट के बावजूद भी मरीजों को सामान्य दवाएं भी बाहर से खरीदनी पड़ रहीं हैं।
लखनऊ ,[संदीप पांडेय] । केजीएमयू में फार्मेसी सेवा चार लेयर में है। ऐसे में रेट कांट्रैक्ट (आरसी) के जरिये करीब दस हजार दवाओं को सस्ती दर पर मुहैया कराने का दावा किया जाता है। बावजूद, अधिकतर मरीज मेडिकल स्टोर पर महंगी दवाएं खरीदने को लोग मजबूर हैं। ऐसे में सवाल है कि वर्षभर में खरीदी जा रही 80 करोड़ की दवाएं खा कौन रहा है।
केजीएमयू में 70 के करीब विभाग हैं। इनमें 4400 के करीब बेड हैं। यहां हर रोज औसतन आठ हजार के अधिक मरीज ओपीडी में इलाज के लिए आते हैं। ऐसे में सामान्य मरीज हो या गंभीर, हर कोई दवा के संकट से जूझ रहा है। स्थिति यह है कि हड्डी रोग विभाग, गठिया रोग, नेत्र रोग विभाग, यूरोलॉजी, जनरल सर्जरी, पीडियाटिक, पीडियाटिक सर्जरी, मेडिसिन, गांधी वार्ड और ईएनटी में जहां सामान्य दवाएं नहीं हैं, वहीं ट्रॉमा सेंटर, लारी, सीटीवीएस, क्वीनमेरी इमरजेंसी ड्रग्स, इंजेक्शन व मेडिकल डिवाइस की कमी से जूझ रहे हैं।
एक संस्थान में चार तरह की फार्मेसी केजीएमयू में फार्मेसी सेवा चार तरह की है। इसमें 16 काउंटर सीएसजेएमयू वेलफेयर सोसाइटी के हैं। छह काउंटर हॉस्पिटल रिवॉल्विंग फंड, एक आमा मेडिकल स्टोर का, दो एमएस-डीएमएस फार्मेसी व पांच अमृत फार्मेसी के हैं। इनमें एचआरएफ में एक करोड़, सोसाइटी में 40 करोड़ व एमएस-डीएमएस द्वारा भी शासन के बजट से 40 करोड़ की दवाएं हर वर्ष खरीदी जा रही हैं। अमृत फार्मेसी का अपना अलग कारोबार है। बावजूद मरीज दवा को तरस रहे हैं।
अंदर के 30 काउंटर खाली, मेडिकल स्टोर पर भीड़ : केजीएमयू में चारों तरह की फार्मेसी के कुल 30 काउंटर हैं। अधिकारियों ने यहां 20 से 70 फीसद तक सस्ती दवा का दावा किया जाता है। बावजूद काउंटरों पर सन्नाटा रहता है। बाहर खुले 300 मेडिकल स्टोर सुबह 10 बजे से शुरू होती भीड़ शाम तक खत्म नहीं होती है। फार्मेसी सेवा सवालों के घेरे में है।
एलपी में उड़ रहा धन : केजीएमयू में टेंडर के नाम पर सस्ती दवा खरीदने का दावा किया जाता है। इसमें सोसाइटी की सूची में जहां 3600 के करीब दवाएं हैं, वहीं एचआरएफ में एक हजार दवाओं का दावा है। ऐसे ही एमएस-डीएमएस कार्यालय की सूची में भी चार हजार के करीब सस्ती दवाएं होने का दावा है। अमृत फार्मेसी में भी डेढ़ हजार दवाओं की लिस्ट बनी है। हकीकत ये है कि एमएस-डीएमएस व सोसाइटी की सूची में शामिल सस्ती दवा के बजाय लोकल पर्चेज के तहत महंगी दरों पर दवा खरीद कर सरकारी धन उड़ाया जा रहा है।
12 सौ की खरीदी दवा
हरदोई निवासी आरती (32) को सांस की समस्या है। उसे अंदर दवा नहीं मिली। ऐसे में 1200 रुपये की दवा उसने मेडिकल स्टोर से खरीदी। वहीं पारा निवासी अमृत लाल हृदय रोगी हैं। शुक्रवार को ओपीडी में दिखाया। इस दौरान उन्हें 18 सौ की दवाएं मेडिकल स्टोर से लेनी पड़ी।
डिस्चार्ज के बाद 21सौ की दवा
उन्नाव निवासी सत्यनारायण (50) को फेफड़े की समस्या है। वे 23 मार्च से भर्ती थे। शुक्रवार को डिस्चार्ज हुए। परिजन मेडिकल स्टोर से 21 सौ की दवा खरीद कर लाए। निरंजन सिंह को दिमाग में चोट है। उन्हें ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया है। उन्हें डॉक्टर बाहर से दवा लाने की पर्ची दे रहे।
केजीएमयू प्रवक्ता डॉ. सुधीर कुमार ने बताया कि मरीजों को अधिकतर दवा उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाता है। कभी-कभार वार्ड से इंटेंड बनाने में देरी हो जाती है, तो कभी मुख्य स्टोर में दवा खत्म हो जाती है। इसकी वजह से समस्या हो जाती है। अब सब दुरुस्त किया जा रहा है।