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पतंजलि उत्पादों के कारोबार का कोआपरेटिव में बढ़ेगा दायरा

योगगुरु रामदेव की संस्था पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के उत्पादों का कारोबार सहकारी समितियों के जरिये कराये जाने का फैसला अप्रैल में हुआ।

By Nawal MishraEdited By: Published: Mon, 06 Aug 2018 07:58 PM (IST)Updated: Mon, 06 Aug 2018 07:58 PM (IST)
पतंजलि उत्पादों के कारोबार का कोआपरेटिव में बढ़ेगा दायरा
पतंजलि उत्पादों के कारोबार का कोआपरेटिव में बढ़ेगा दायरा

लखनऊ (जेएनएन)। योगगुरु रामदेव की संस्था पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के उत्पादों का कारोबार सहकारी समितियों के जरिये कराये जाने का फैसला अप्रैल में हुआ। तब यह तय हुआ कि मेरठ, मुरादाबाद और सहारनपुर मंडल में इसे पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चलाया जाएगा लेकिन, अब इसे प्रदेश स्तर पर चलाये जाने की तैयारी हो रही है। हालांकि इस अभियान में सबसे बड़ी अड़चन यह है कि पश्चिम के मुकाबले पूर्वी उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड और मध्य उप्र की सहकारी समितियां आर्थिक रूप से कमजोर हैं। 

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प्रदेश में करीब साढ़े सात हजार प्रारंभिक कृषि ऋण सहकारी समितियां (पैक्स) हैं। मुरादाबाद, मेरठ एवं सहारनपुर मंडलों में सुपर डिस्ट्रिीब्यूटर के रूप में मुजफ्फरनगर जिला सहकारी संघ को जिम्मेदारी दी गई। पूर्वी उत्तर प्रदेश में समितियों को सक्रिय करने के लिए उसका कारोबार बढ़ाना है। चूंकि पतंजलि के उत्पादों की प्रदेश व्यापी मांग है इसलिए यह योजना प्रदेश भर में संचालित करने से मुनाफा बढ़ सकता है। सहकारिता विभाग के प्रवक्ता का कहना है कि सर्वाधिक अड़चन यह है कि पश्चिम की समितियों के पास संसाधन है जबकि पूर्वांचल और बुंदेलखंड में संसाधन नहीं है।

समितियां कमजोर हैं और सहकारी बैंक भी कर्ज देने की स्थिति में नहीं है। इस कारोबार में एक बड़ी शर्त यह भी है कि पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड द्वारा सुपर डिस्ट्रीब्यूटर को 30 दिन का क्रेडिट अवधि दिये जाने की सहमति है। इसी के सापेक्ष नीचे भी सुविधा दी गई है लेकिन, डिस्ट्रीब्यूटर द्वारा जो पहला खरीद आर्डर सुपर डिस्ट्रीब्यूटर का दिया जाना है उसके सापेक्ष पूरी धनराशि का अग्रिम भुगतान करना है। ऐसे में पूर्वी उत्तर प्रदेश की समितियों के सामने आर्थिक चुनौती है। आयुक्त एवं निबंधक सहकारिता के स्तर पर प्रदेश व्यापी संभावनाओं का अवलोकन शुरू हो गया है। किस माध्यम से प्रदेश भर की समितियों को इस कारोबार के लिए सक्रिय किया जाए, इस पर मंथन शुरू हो गया है। चूंकि प्रदेश भर में 80 फीसद से ज्यादा समितियों पर भाजपा का कब्जा है इसलिए भाजपा सरकार इन्हें साधन संपन्न बनाने की दिशा में पहल कर रही है। 


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