धूल पर सवार 'धातु' के कण दे रहे बीमारियां, दिल्ली से आगे सूबे के सात शहर
हवा में दो गुना तक बढ़ गई लेड व निकिल धातु की मात्रा। इंदिरा नगर, चारबाग व अमौसी में निकिल की मात्रा में भारी तुलनात्मक वृद्धि पाई गई है। बावजूद इसके प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भारी धातुओं की नापजोख नहीं करता है।
लखनऊ, रूमा सिन्हा। वायु प्रदूषण की चर्चा होती है तो बात केवल निलंबित कणकीय पदार्थ (एसपीएम) पर ही आकर रुक जाती है। हकीकत यह है कि वातावरण में मौजूद धूल पर सवार लेड व निकिल जैसी धातुएं शरीर में पैबस्त होकर गंभीर बीमारियों का कारण बन रही हैं। बीते आठ सालों में हवा में मौजूद इन धातुओं की मात्रा बढ़कर लगभग दो गुना हो गई है लेकिन, जिम्मेदार विभाग एसपीएम व पीएम 2.5 से आगे सोच ही नहीं पा रहे हैं।
भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (आइआइटीआर) की लखनऊ के पर्यावरण पर रिपोर्ट के अनुसार वायुमंडल में बीते आठ सालों में लेड और निकिल की मात्रा कई स्थानों पर बढ़कर दो गुना तक हो गई है। अलीगंज, विकासनगर, इंदिरानगर, गोमती नगर, चारबाग व अमौसी में लेड के स्तर में वर्ष 2010 के मुकाबले 2018 में भारी वृद्धि हुई है। अमौसी में तो लेड में इजाफा दो गुना से भी अधिक हो गया है।
आइआइटीआर के निदेशक प्रो. आलोक धावन कहते हैं कि हवा में मौजूद भारी धातुएं बड़ों के साथ-साथ खासतौर पर बच्चों को नुकसान पहुंचाती हैं। वायुमंडल में इनके मौजूदगी का स्रोत क्या है इस पर कार्य करने के जरूरत है जिससे रोकथाम के उपाय किए जा सकें। वाहनों के टायरों में होने वाले फ्रिक्शन (रगड़)से भी भारी धातुओं का उत्सर्जन होता है। इसलिए हमें माइक्रो एंवायरमेंट को दुरुस्त करने पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
क्या कहते हैं अफसर?
- केजीएमयू विभागाध्यक्ष न्यूरोलॉजी विभाग डॉ.आरके गर्ग का कहना है कि लेड खासतौर पर बच्चों के ब्रेन व हड्डियों को प्रभावित करता है। बढ़ती उम्र के बच्चों का आइ क्यू कम रह जाता है। ब्लड में पहुंचकर नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है। वहीं वयस्कों में भी इससे कई तरह की न्यूरोलॉजिकल समस्याएं हो सकती हैं।
- केजीएमयू क्लीनिकल हिमेटोलॉजी विभाग डॉ. एके त्रिपाठी, विभागाध्यक्ष का कहना है कि बोनमेरो से ब्लड बनने प्रक्रिया को लेड प्रभावित करता है। इससे लाल रक्त कणिकाएं (आरबीसी) टूटती हैं जिससे एनीमिया हो जाता है। मुश्किल यह है कि आयरन की कमी व लेड से होने वाले एनीमिया दोनों में ही आरबीसी का साइज छोटा हो जाता है। ऐसे में जब मरीज को आयरन देने के बाद भी एनीमिया से निजात नहीं मिलती तो मानते हैं कि लेड का असर हो सकता है।
वायु प्रदूषण में दिल्ली से आगे सूबे के सात शहर
वायु प्रदूषण के मामले में दिल्ली को सूबे के एक-दो नहीं, सात शहरों ने पछाड़ दिया है। यह बात अलग है कि वायु प्रदूषण पर हल्ला दिल्ली में सबसे ज्यादा है। बुधवार को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा जारी बुलेटिन में दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) 373 रिकार्ड हुआ। वहीं राजधानी लखनऊ में एक्यूआइ 388 रहा जो मंगलवार (381) के मुकाबले अधिक रहा। दरअसल, लगातार कई दिनों से एक्यूआइ यहां दिल्ली से अधिक रिकार्ड हो रहा है।
सूबे के अन्य शहरों की बात करें तो हापुड़ 395, ग्रेटर नोएडा 392, गाजियाबाद 383, कानपुर 388, नोएडा 377, वाराणसी 376 में वायु प्रदूषण दिल्ली के मुकाबले अधिक रहा। बागपत 371, बुलंदशहर 367 व मुजफ्फरनगर में एक्यूआइ 335रिकार्ड किया गया।
गौरतलब यह है कि सीपीसीबी के अनुसार 300 से 400 के बीच एक्यूआइ को रेड कैटेगरी में रखा गया है। यानी ऐसी दूषित हवा में लंबे समय तक रहना अस्थमा व सांस के अन्य रोगों का कारण बन सकता है।