'हेपेटाइटिस बी' से बचाव के लिए ओरल वैक्सीन 'बिस्किट' तैयार
'हेपेटाइटिस बी' से बचने के लिए चिकित्सा वैज्ञानिकों ने बिस्किट के रूप में एक ऐसा ओरल वैक्सीन तैयार किया है जिसे कोई भी व्यक्ति बड़े चाव से खाना पसंद करेगा। इस वैक्सीन का मनुष्य पर प्रयोग के लिए एफडीए से अनुमोदन लिया जा रहा है। कोई बाधा नहीं आई तो
लखनऊ। 'हेपेटाइटिस बी' से बचने के लिए चिकित्सा वैज्ञानिकों ने बिस्किट के रूप में एक ऐसा ओरल वैक्सीन तैयार किया है जिसे कोई भी व्यक्ति बड़े चाव से खाना पसंद करेगा। इस वैक्सीन का मनुष्य पर प्रयोग के लिए एफडीए से अनुमोदन लिया जा रहा है। कोई बाधा नहीं आई तो वैक्सीन वर्ष 2018 तक व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हो जाएगी। बिस्किट रूपी वैक्सीन को अमेरिकी चिकित्सा वैज्ञानिकों ने तैयार किया है और उनकी टीम के प्रमुख सदस्यों में बनारस की बेटी व बीएचयू की पूर्व छात्रा डा. श्वेता शाह का नाम भी शुमार है।
हेपेटाइटिस बी से बचाव के लिए लगभग 30 वर्ष पूर्व वैक्सीन बनाया गया था जो इंजेक्शन के माध्यम से लगाया जाता है। इसे कोल्डचेन में रखना होता है, जिसके लिए निरंतर विद्युत आपूर्ति जरूरी है। वैक्सीन का सुरक्षित प्रयोग भी चिकित्सकीय टीम द्वारा ही संभव होता है। इन्हीं सब परेशानियों को ध्यान में रख कर चिकित्सक जान होवार्ड पीएचडी अध्यक्ष, एप्लाइड बायो टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (अमेरिका) ने कोल्डचेन रहित वैक्सीन बनाने के बारे में सोचा जिसे इंजेक्शन की जगह टैबलेट या ड्राप के रूप में लिया जा सके। आइवा स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक भारतीय मूल के डा. गुरु राव तथा राव जे. कार्नर अपनी टीम के साथ इस प्रयोग में जुट गए और आनुवांशिक रूप से संशोधित मक्के से ओरल वैक्सीन तैयार कर लिया। इस दवा की एक डोज की लागत एक डालर (करीब 60 रुपये) से भी कम होगी, जो प्रचलित वैक्सीन से दस गुना कम है। इस टीम की प्रमुख सदस्य डा. श्वेता शाह अथक परिश्रम कर इस अनुसंधान को पूर्णता की तरफ ले गईं। उन्होंने अमेरिकन सोसाइटी फॉर बायोकेमिस्ट्री एंड मालीक्युलर बायोलॉजी की वार्षिक बैठक में भी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। यह शोध इसी वर्ष मार्च महीने में शोध पत्रिका साइंस डेली में भी प्रकाशित हो चुका है।
यह है 'हेपेटाइटिस बी'
हेपेटाइटिस बी यकृत का वायरस जन्य गंभीर संक्रामक रोग है। इससे पीडि़त व्यक्तियों के उपचार हेतु कोई गुणकारी औषधि उपलब्ध नहीं है। इसके संक्रमण का प्रभाव जीवन भर रह सकता है। अंतत: रोगी यकृत के सिरोसिस, लीवर कैंसर तथा लीवर फेल्योर का शिकार हो जाता है और उसकी मृत्यु हो जाती है।
श्वेता बीएचयू की पूर्व छात्रा
वाराणसी के महमूरगंज स्थित शिवाजी नगर कॉलोनी निवासी डा. श्वेता शाह की प्रारंभिक शिक्षा सेंट्रल ङ्क्षहदू गल्र्स स्कूल में हुई। फिर बीएचयू से एमएससी रसायन विज्ञान में किया। आइआइटी दिल्ली से एमटेक तथा पीएचडी किया। उच्च वैज्ञानिक अध्ययन तथा अनुसंधान के लिए उन्होंने अमेरिका की राह पकड़ी। इनके परिश्रम तथा लगन को देख कर आइवा स्टेट यूनिवर्सिटी के डा. गुरुराव ने अपने वैज्ञानिक टीम में शामिल कर लिया।