कांग्रेस के भारत बंद में अपनी-अपनी ढपली बजाते दिखे विपक्षी दल
सभी प्रमुख विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ता अपने- अपने स्तर पर महंगाई का विरोध जताते नजर आए। यह अवसर था एकता की नजीर पेश करने का लेकिन, पूरा विपक्ष इसमें चूक गया।
लखनऊ (जेएनएन)। कांग्रेस के भारत बंद को जिस तरह गैर-भाजपाई दलों ने समर्थन देने का एलान किया था, सोमवार को ऐसा देखने को नहीं मिला। सभी प्रमुख विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ता अपने- अपने स्तर पर महंगाई का विरोध जताते नजर आए। यह अवसर था एकता की नजीर पेश करने का लेकिन, पूरा विपक्ष इसमें चूक गया।
भारत बंद को सफल बनाने के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजबब्बर गत कई दिन से लखनऊ में डेरा डाले हुए थे। सोमवार को राजबब्बर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं डॉ.आरपी त्रिपाठी, ओंकार नाथ सिंह, द्विजेंद्र त्रिपाठी, फजले मसूद, हनुमान त्रिपाठी, विनोद मिश्र व सतीश अजमानी आदि के साथ हजरतगंज चौराहे से होकर शहर के विभिन्न बाजारों में बंद की अपील करने निकले। महत्वपूर्ण बात यह रही कि अन्य दलों के कार्यकर्ता उसका साथ देते कहीं नहीं दिखे। प्रवक्ता डॉ. उमाशंकर पांडेय ने बताया कि लगभग सभी जिलों में बंद सफल बनाने को वरिष्ठ नेता सड़कों पर निकले। मेरठ व कानपुर में पुलिस ने भय कायम करने के लिए जबरन गिरफ्तारियां कराई।
भारत बंद को समर्थन देने वाले प्रमुख विपक्षी दलों में समाजवादी पार्टी भी शामिल थी। सोमवार को सपा के कार्यकर्ता बंद के बजाए धरना प्रदर्शन करते हुए दिखे। तहसील मुख्यालयों पर प्रदर्शन में पार्टी के विधायकों व पूर्व जनप्रतिनिधि भी शामिल हुए और राज्यपाल को प्रेषित किए ज्ञापनों में महंगाई के अलावा अन्य जनसमस्याओं के समाधान की मांग की गयी।
रालोद भी भारत बंद के साथ रहा लेकिन, उनके कार्यकर्ताओं की टोली अपने स्तर से बाजारों में घूमी। राष्ट्रीय प्रवक्ता अनिल दुबे ने बताया कि सभी जिलों में कार्यकर्ताओं ने पैदल मार्च निकाले। लखनऊ में प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मसूद अहमद व पूर्व विधायक शिवकरण सिंह के नेतृत्व में बाजारों में बंद की अपील की गई लेकिन, रालोद व कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में आपसी दूरी बनी रही।
बसपा ने बनाया फासला
भारत बंद को सफल बनाने को अधिकतर प्रमुख विपक्षी दलों की ओर से कोशिशें की गई लेकिन, बसपा कार्यकर्ता कहीं सक्रिय नहीं दिखे। लोकसभा चुनाव से पूर्व महागठबंधन की चर्चा के बीच बसपा के रवैये को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं। एक पूर्व विधायक का कहना है कि भारत बंद को लेकर सभी प्रमुख दल सशंकित रहे क्योंकि तैयारियां पूरी तरह से अनियोजित थी। सफलता के लिए विपक्षी नेताओं में आपसी तालमेल नहीं था और न ही कार्ययोजना तैयार की गई थी।