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औद्योगिक विवादों के लिए तय होगी एक साल की समयसीमा, विधेयक के ड्राफ्ट को योगी कैबिनेट की मंजूरी

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने औद्योगिक इकाइयों में कर्मकारों की छंटनी या उन्हें सेवा से हटाये जाने से जुड़े विवादों के लिए समयसीमा तय करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Wed, 11 Mar 2020 12:48 PM (IST)Updated: Wed, 11 Mar 2020 12:49 PM (IST)
औद्योगिक विवादों के लिए तय होगी एक साल की समयसीमा, विधेयक के ड्राफ्ट को योगी कैबिनेट की मंजूरी
औद्योगिक विवादों के लिए तय होगी एक साल की समयसीमा, विधेयक के ड्राफ्ट को योगी कैबिनेट की मंजूरी

लखनऊ [राजीव दीक्षित]। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने औद्योगिक इकाइयों में कर्मकारों की छंटनी या उन्हें सेवा से हटाये जाने से जुड़े विवादों के लिए समयसीमा तय करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। किसी औद्योगिक इकाई में कर्मकार की छंटनी या उसे सेवा से हटाये जाने की तारीख से एक साल की अवधि में यदि यह विवाद सुलह प्रक्रिया में नहीं उठाया गया हो, तो उसे औद्योगिक विवाद नहीं समझा जाएगा। शर्त यह होगी कि कोई प्राधिकारी इस एक वर्ष की अवधि को तब बढ़ाने पर विचार कर सकेगा, जब आवेदक कर्मकार उसे संतुष्ट कर दे कि विवाद को एक साल की अवधि के अंदर न उठा पाने का उसके पास पर्याप्त कारण था।

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इस व्यवस्था को लागू करने के लिए सरकार ने उप्र औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 में संशोधन करने के लिए कदम उठाया है। इसके लिए बीते दिनों उप्र औद्योगिक विवाद (संशोधन) विधेयक 2020 को कैबिनेट बाई सर्कुलेशन मंजूरी दी गई है। उप्र औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 में औद्योगिक विवादों के लिए अभी तक कोई समयसीमा नहीं निर्धारित है। राज्य सरकार ने एक बार शासनादेश के जरिये इसके लिए छह महीने की समयसीमा तय की थी, लेकिन हाई कोर्ट ने इसे रद कर दिया था, यह कहते हुए कि समयसीमा तय करने के लिए अधिनियम में संशोधन किया जाए।

औद्योगिक विवादों के लिए समयसीमा नहीं तय होने की वजह से औद्योगिक इकाइयां संचालित करने वाले नियोक्ताओं को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। औद्योगिक विवादों के लिए कोई समयसीमा तय न होने के कारण कोई भी कर्मकार वर्षों बाद भी नियोक्ता के खिलाफ मुकदमा कर सकता है। वहीं नियोक्ता को लंबे समय तक कर्मकार के सेवा संबंधी अभिलेखों को सहेज कर रखना पड़ता है। सरकार ने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के तहत औद्योगिक इकाइयों की सहूलियत के लिए यह कदम उठाने का फैसला किया है। इसके लिए उप्र औद्योगिक विवाद (संशोधन) विधेयक 2020 को बीते दिनों कैबिनेट बाई सर्कुलेशन मंजूरी दी गई है।

इसमें प्रावधान है कि किसी औद्योगिक इकाई में यदि पिछले कैलेंडर माह में 100 से कम मजदूर नियुक्त हों तो कुछ दशाओं में वहां कामबंदी की व्यवस्था लागू नहीं होगी। पहले यह व्यवस्था 50 मजदूरों के लिए लागू थी। सरकार को यह विधेयक विधानमंडल से पारित कराकर राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को भेजना होगा।

पहले भी केंद्र को भेजा गया था विधेयक

उप्र औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 में संशोधन के लिए राज्य विधानमंडल की ओर से पारित विधेयक वर्ष 2018 में भी राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को भेजा गया था। उसमें इन दोनों प्रावधानों के अलावा छटनी और बंदी मुआवजा राशि को दोगुना करने का प्राविधान था जिससे केंद्र सरकार असहमत थी। लिहाजा राज्य सरकार ने केंद्र को भेजे गए उस विधेयक को भी वापस लेने का फैसला किया है।


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