कल्पवास : संगम तट पर एक समय भोजन और तीन बार स्नान
लखनऊ। एक समय भोजन और तीन बार स्नान, गंगा में नहाना, गंगा जल पीना, उसी में बना भोजन करना और गंगा
लखनऊ। एक समय भोजन और तीन बार स्नान, गंगा में नहाना, गंगा जल पीना, उसी में बना भोजन करना और गंगा की ही पूजा करना। कल्पवास की एक माह तक चलने वाली यह कठिन तपस्या गुरुवार से शुरू हो गई। पौष पूर्णिमा स्नान पर्व में हिस्सेदारी के साथ तीर्थराज प्रयाग में गंगा की रेती पर कल्पवासियों ने शिविर के सामने तुलसी रोप कर कल्पवास शुरू किया। यहां हजारों श्रद्धालु मोक्ष की आस में एक माह तक रहकर भजन-पूजन में लीन रहेंगे। मान्यताओं के अनुसार कुछ लोग पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा और कुछ लोग मकर संक्रांति से कुंभ संक्रांति तक कल्पवास करते हैं।
'मोक्ष' की आस में श्रद्धालु संगम तट पर कल्पवास करने आते हैं। मान्यता है कि माघ महीने में प्रयाग में न सिर्फ मानव कल्पवास के लिए आते हैं बल्कि करोड़ों देवी-देवता भी मौजूद रहते हैं। जो किसी न किसी रूप में कल्पवास करने वालों को दर्शन देते हैं। इसी कारण लोग यहां घर-गृहस्थी, मोह-माया से दूर रहकर एक माह तक धार्मिक कार्यो में लीन रहते हैं। भजन, पूजन, व्रत, धर्म चर्चा यही कल्पवासियों की दिनचर्या होती है। इसके माध्यम से वह परमात्मा को हासिल करने का प्रयत्न करते हैं। कल्पवासी पूजन पाठ के साथ-साथ संत महात्माओं के प्रवचन सुनते हैं।
पुरखों का स्मरण : पौष पूर्णिमा को गंगा स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने तीर्थ पुरोहितों के आचर्यत्व में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच मां गंगा, वेणी माधव व पुरखों का स्मरण कर त्याग व तपस्या का व्रत लिया। शिविर के बाहर तुलसी का पौधा लगाकर जौ बोया। कल्पवासी इसे घर लौटते समय प्रसाद स्वरूप वापस लेकर जाएंगे। कल्पवासी सिर्फ एक समय भोजन व दिन में तीन बार स्नान करते हैं।
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर