Albinism Day: 30 हजार में कोई एक होता है इस बीमारी का शिकार
त्वचा का गंभीर रोग है एल्बिनिज्म। ज्यादा समय तक जीवित नहीं रहते हैं इस रोग से पीडि़त लोग।
लखनऊ [कुसुम भारती]। विवेक (बदला हुआ नाम) को स्कूल में दाखिला नहीं मिल रहा था, वजह सिर्फ इतनी थी कि उसके शरीर और बालों का रंग सफेद था और उसकी आंखें भी मुश्किल से खुलती थीं। उसके माता-पिता के लिए स्कूल में उसका दाखिला कराना किसी चुनौती से कम नहीं था। मगर, जब उन्होंने स्कूल प्रशासन को समझाया तो, उसे दाखिला मिल गया। विवेक की चुनौतियां अभी कम नहीं हुईं थी क्योंकि वह स्कूल तो जाने लगा था, मगर वहां उसका कोई ऐसा दोस्त नहीं बना जो उसके साथ खेलता, उसका टिफिन शेयर करता। आठ साल का वह मासूम खुद को दूसरे बच्चों के बीच अलग-थलग पाता था। यह बात जब उसने माता-पिता से बताई तो, वे उसको लेकर डॉक्टर के पास गए। तब उनको पता चला कि यह एक प्रकार की अनुवांशिक बीमारी है, जिसे एल्बिनिज्म कहते हैं। जो 20 से 30 हजार लोगों में किसी एक को होती है।
अनुवांशिक रोग है एल्बिनिज्म
डॉ. राममनोहर लोहिया अस्पताल में त्वचा रोग विशेषज्ञ, डॉ. सुरेश अहिरवार कहते हैं, यह एक अनुवांशिक बीमारी है। परिवार में यदि माता-पिता में से किसी एक को भी यह रोग होता है, तो बच्चे में 25 फीसद होने की संभावना होती है। त्वचा और बालों का रंग बिल्कुल सफेद होता है, चेहरे पर काले-काले बिंदी जैसे दाने होते हैं।
30 से 35 वर्ष ही होती है औसत आयु
डॉ. अहिरवार कहते हैं, ऐसे मरीजों का जीवनकाल बहुत कम होता है। इनकी औसत आयु 30 से 35 वर्ष ही होती है क्योंकि ये गंभीर त्वचा संबंधी रोगों से ग्रस्त रहते हैं और ज्यादा दिन जी नहीं पाते। हालांकि, जागरूक मरीजों की आयु कुछ बढ़ भी जाती है।
स्किन कैंसर होने का खतरा
बलरामपुर अस्पताल में त्वचा रोग विशेषज्ञ, डॉ. एमएच उस्मानी कहते हैं, रोगी की त्वचा में मिलेनिन नहीं बनता है। मिलेनिन सूर्य की अल्ट्रा वॉयलेट किरणों से त्वचा की रक्षा करता है। ऐसे में, स्किन कैंसर की संभावना भी बढ़ जाती है। रोगी को शरीर में जलन, त्वचा का लाल होना, छाले पड़ जाने जैसी समस्या होती है। रोगी को फोटो फोबिया हो जाता है, रोशनी में वह आंखों को बंद करके देखने की कोशिश करता है। मेंटल रिटार्डेशन का शिकार हो जाता है। फिलहाल, इस रोग का कोई प्रभावी इलाज नहीं है।
मेलेनोसाइट लगाकर करते हैं इलाज
केजीएमयू में प्लास्टिक सर्जरी विभाग में प्रोफेसर, डॉ. विजय कुमार कहते हैं, छोटे दागों को टांका लगाकर हटा देते हैं। जब रोगी की दवाइयां चल चुकी होती हैं और रोग बढऩा रुक जाता है तब ऐसे मरीजों के छोटे एरिया में टांका लगाकर और बड़े एरिया में उसी की स्किन की लेयर का टुकड़ा लेकर लगाते हैं या मेलेनोसाइट लगाते हैं।
ऐसे करते हैं बचाव
- रोगी को मल्टी विटामिन दवाएं दी जाती हैं।
- 40 से 50 (सन प्रोटेक्शन फैक्टर) एसपीएफ की सन स्क्रीन क्रीम लगाने को दी जाती हैं।
- आंखों को अल्ट्रा वॉयलेट रेडिएशन से बचाने के लिए यूवी प्रोटेक्टिव सनग्लास लगाने को देते हैं।
- शरीर को ढककर व सूर्य की रोशनी से बचाकर रखने को कहते हैं।
- परिवार में यदि ऐसा बच्चा हो तो डॉक्टर से परामर्श लें।
- यह छुआछूत का रोग नहीं है।
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