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अब घर-घर होगी 'सेहत' की खेती, कुपोषण से लडऩे में मदद करेगा ये उपाय Lucknow News

स्वास्थ्य एवं पोषण-वाटिका की स्थापना फ्लोराफौना साइंस फाउंडेशन की एक पहल।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Fri, 06 Sep 2019 09:58 AM (IST)Updated: Sat, 07 Sep 2019 08:08 AM (IST)
अब घर-घर होगी 'सेहत' की खेती, कुपोषण से लडऩे में मदद करेगा ये उपाय Lucknow News
अब घर-घर होगी 'सेहत' की खेती, कुपोषण से लडऩे में मदद करेगा ये उपाय Lucknow News

लखनऊ [रूमा सिन्हा]। ग्रामीण अंचल में रहने वाली महिलाओं और बच्चों में कुपोषण और उससे उत्पन्न होने वाली विभिन्न प्रकार की बीमारियां दिनों-दिन गंभीर रूप लेती जा रही हैं। हाल में ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार पांच वर्ष से कम आयु वाले लगभग 38 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के कारण बौनेपन और अपर्याप्त मस्तिष्क के समुचित विकास की समस्या से ग्रसित हैं। 

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कुपोषण का समाधान है 'पोषण- वाटिका'

दूसरी ओर, लगभग 51 प्रतिशत विवाहित महिलाएं एनीमिया (रक्त की कमी) से जूझ रही हैं, जो मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालती है। कुपोषण से निपटने के लिए जहां एक ओर सरकारी स्तर पर प्रयास किये जा रहे हैं, स्थानीय स्तर पर भी कुछ प्रभावकारी उपाय कर इनसे कुछ हद तक निजात पाई जा सकती है। इनमें से एक महत्वपूर्ण समाधान है पोषण- वाटिका (न्यूट्रीशन गार्डेन) की स्थापना करना। ऐसी वाटिका घरों के आसपास तथा खेतों अथवा बागों में स्थापित जा सकती है। जिनमें विभिन्न प्रकार की मौसमी सब्जियां, फल, मसाले, जड़ी बूटी, आदि लगाकर दैनिक खानपान में उनका  प्रयोग कर सकते हैं और शरीर के लिए जरूरी पोषण तत्वों की पूर्ति के साथ स्वास्थ्य लाभ भी उठा सकते हैं।  प्राय: यह भी देखा गया है कि अपने आसपास खाली पड़े स्थानों अथवा खेतों की मेड़ों किनारे आदि जगहों पर कई प्रकार के उपयोगी पौधे स्वत: उगते हैं जिन्हें जानकारी के अभाव में या खरपतवार समझकर उन्हें उखाड़ कर फेंक दिया जाता है। इन पौधों की विधिवत पहचान कर उन्हें विशेषज्ञ/ चिकित्सक के मार्गदर्शन में स्वास्थ्य रक्षा तथा छोटी-मोटी बीमारियो के इलाज में किया जा सकता है।

फ्लोराफौना साइंस फाउंडेशन द्वारा एक ऐसी ही परियोजना पर कार्य करने की पहल की जा चुकी है जिसमें सेवानिवृत और कार्यरत वैज्ञानिक, शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोग, उद्यमी, कृषकों आदि का सक्रिय सहयोग लिया जा रहा है। फाउंडेशन के अध्यक्ष एवं सीमैप के पूर्व निदेशक डॉ. सुमन प्रीत सिंह खनुजा ने बताया की प्रारंभ में  उत्तर प्रदेश के प्रत्येक चार जिलों (लखनऊ, सीतापुर, बाराबंकी तथा रायबरेली) के चयनित एक एक विद्यालयों में स्वत: उगने वाले पौधों की पहचान, उपयोग और संरक्षण संबंधी जानकारी देने हेतु  एक दिवसीय जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा और उन स्थानों पर मॉडल के रूप में एक पोषण वाटिका की भी स्थापना की जाएगी। जिनमे मौसमी सब्जियों वाले पौधों के अतिरिक्त फलदार और औषधीय पौधे भी रोपित किया  जायेगा। 

डॉ. खनुजा ने आगे बताया कि ऐसे कार्यक्रमों से न केवल स्कूली बच्चों बल्कि उनके अभिभावकों तथा स्थानीय लोगों को भी जानकारी मिलेगी तथा रोपित पौधों के उपयोग से कुपोषित बच्चे व महिलाएं भी लाभान्वित होंगी । यह मॉडल पोषण वाटिकाएं स्थापित होने के उपरांत आसपास के क्षेत्रों में भी ऐसी वाटिकाएं स्थापित करने में मदद मिल सकेगी। इसी क्रम में लखनऊ के एक गांव सरोसा भरोसा में कुछ फलदार और औषधीय पौधों तथा मौसमी सब्जियों का रोपण किया जा चुका है तथा कुर्सी रोड के समीप स्थित फ्लोराफौना साइंस फाउंडेशन के प्रायोगिक प्रक्षेत्र में फलदार पौधों के रोपण के अतिरिक्त जैव उर्वरक तथा कल्चर युक्त कम्पोस्ट खाद बनाने की तकनीक विकसित की गई है। 

जिसके द्वारा जैविक पोषण वाटिका स्थापित करने में मदद मिल सकेगी। सरोसा भरोसा गांव की को-ओर्डीनेटर डॉ. अनीता यादव ने बताया की अब तक विभिन्न औषधीय पौधों जैसे कि तुलसी, नींबूघास, हल्दी, अश्वगंधा, कालमेघ, सतावर, घृतकुमारी  (एलो वेरा) तथा फलदार पौधों जैसे कि आंवला, जामुन, अमरूद, कटहल, नींबू और कई मौसमी सब्जियों का रोपण किया गया है। जिसमें पोषक और और स्वास्थ्य वर्धक गुण निहित होते हैं। परियोजना से जुड़े पूर्व वैज्ञानिक डॉ. ए.के. सिंह ने बताया की शीघ्र ही चयनित स्थानों पर  जागरूकता शिविर आयोजित कर  स्कूली बच्चों सहित ग्रामवासियों को पोषण एवं स्वास्थ्य रक्षा के लिए उपयोगी पौधों से परिचित करवाया जाएगा।


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