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अब ज्यादा गन्ना भी मुसीबतः पैदावार के सापेक्ष खपत नहीं होने से मुश्किल में किसान

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा गन्ने की पैदावार घटाने की अपील को विपक्ष भले ही मुद्दा बनाए लेकिन प्रतिवर्ष बढ़ता गन्ना उत्पादन परेशानी बन रहा है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Wed, 12 Sep 2018 09:43 PM (IST)Updated: Thu, 13 Sep 2018 11:43 AM (IST)
अब ज्यादा गन्ना भी मुसीबतः पैदावार के सापेक्ष खपत नहीं होने से मुश्किल में किसान
अब ज्यादा गन्ना भी मुसीबतः पैदावार के सापेक्ष खपत नहीं होने से मुश्किल में किसान

लखनऊ (अवनीश त्यागी)। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा गन्ने की पैदावार घटाने की अपील को विपक्ष भले ही मुद्दा बनाने की कोशिश करे लेकिन, सच यही है कि प्रतिवर्ष बढ़ता गन्ना उत्पादन परेशानी बन रहा है। पैदावार के सापेक्ष गन्ना उठान कम होने से किसानों की मुश्किलें भी बढ़ रही हैं। बीते सत्र में चीनी मिलें जून के अंत तक पेराई न करतीं तो किसानों को गन्ना खेतों में ही जलाने के लिए मजबूर होना पड़ता।  

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चीनी उत्पादन में अव्वल

किसानों की मेहनत का नतीजा है कि गत सत्र में प्रदेश गन्ना व चीनी उत्पादन में देश में अव्वल रहा। चीनी का रिकार्ड 120 लाख टन से अधिक उत्पादन हुआ। मिलों के गोदाम चीनी से अटे पड़े हैं और बाजार में अपेक्षाकृत दाम भी कम मिल रहा है। वहीं शीरे का अत्याधिक उत्पादन होने से मिलों के लिए भंडारण की समस्या बनी है। यही वजह है कि गन्ने का 10,186 करोड़ रुपये से अधिक का बकाया भुगतान लटका है। प्रदेश की चीनी मिलें केवल साठ फीसद गन्ने की ही पेराई कर पाती हैं। शेष गन्ना किसानों को सस्ते में कोल्हुओं पर बेचना पड़ता है।

नकदी फसल ने बढ़ाया आकर्षण

गन्ना बेहतर कैशक्रॉप होने के कारण ही उसके प्रति किसानों का आकर्षण बढ़ता जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2018-19 में गन्ना क्षेत्र में 18 प्रतिशत तक वृद्धि होगी। इस सीजन में अनुकूल वर्षा व मौसम होने से गन्ने की उत्पादकता बढऩा तय है। इसके चलते चीनी का उत्पादन 133 लाख टन से अधिक होना संभव है। उप्र शुगर मिल्स एसोसिएशन के सचिव दीपक गुप्तारा का कहना है कि चीनी का अधिक उत्पादन और उठान कम होने से मिलों के सामने वित्तीय संकट बना है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी चीनी सस्ती है। ऐसे में अत्याधिक गन्ने का खपाना एक विकट चुनौती होगा। 

फसल असंतुलन की आशंका बढ़ी 

गन्ना पैदावार अधिक होने की समस्या से किसानों को वर्ष 1977-78 में भी जूझना पड़ा था। किसान नेता विजयपाल तोमर का कहना है कि तब जनता पार्टी के शासन में किसानों को गन्ना जलाने के लिए मजबूर होना पड़ा था। कृषि विशेषज्ञ डॉ. एमपी उपाध्याय का कहना है कि किसी फसल विशेष का क्षेत्रफल अत्याधिक हो जाने से असंतुलन बढ़ता है। आमतौर से सब्जी की फसलों में ऐसा संकट किसानों को अक्सर झेलना पड़ता है। ऐसे में गन्ने की फसल आवश्यकता से बढ़ेगी तो निश्चित समस्या बनेगी। वहीं अन्य फसलों का क्षेत्रफल कम होने से उनकी किल्लत भी बढ़ेगी। फसलों के असंतुलन का नतीजा है कि दलहन व तिलहन का आयात करना पड़ता है।

गन्ना व चीनी उत्पादन

वर्ष    गन्ना उपज  चीनी परता  उत्पादन

2015-16  1364.2  10.62     68.55

2016-17  1486.6  10.61     87.73

2017-18  1820.8  10.84    120.50

(नोट-गन्ना उपज व चीनी उत्पादन लाख टन में और चीनी परता प्रतिशत में।)


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