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World Cancer Day : कीमोथेरेपी नहीं, अब सिर्फ टेबलेट से होगा कैंसर का इलाज

आने वाले समय में ब्लड कैंसर के इलाज में इंजेक्शन और कीमोथेरेपी कम हो जाएगी या बहुत कम हो जाएगी। केवल टेबलेट खाकर ही कैंसर से निजात मिल सकेगी।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 02 Feb 2019 07:34 PM (IST)Updated: Sun, 03 Feb 2019 08:56 AM (IST)
World Cancer Day : कीमोथेरेपी नहीं, अब सिर्फ टेबलेट से होगा कैंसर का इलाज
World Cancer Day : कीमोथेरेपी नहीं, अब सिर्फ टेबलेट से होगा कैंसर का इलाज

लखनऊ, जेएनएन। ब्लड कैंसर के इलाज में अब आने वाले समय में कीमोथेरेपी बीती बात हो जाएगी। कैंसर का पता चलते ही सबसे पहले कीमोथेरेपी का ख्याल डरा देते हैं। कीमोथेरेपी के चलते बाल गिरना, शरीर कमजोर होना व उसके अन्य साइड इफेक्ट मरीज को भयभीत कर देते हैं। वजह यह है कि कीमोथेरेपी में जो दवाएं दी जाती हैं काफी जहरीली होती हैं। लेकिन ब्लड कैंसर के इलाज में अब कीमोथेरेपी बीती बात हो जाएगी। कैंसर का इलाज महज एक टेबलेट से ही संभव हो गया है। इससे मरीज को बाल गिरने व अत्यधिक कमजोरी जैसी स्थिति से दो-चार नहीं होना पड़ेगा और न ही अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ेगी।

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किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के क्लीनिकल हिमेटोलॉजी विभाग के हेड डॉ.एके त्रिपाठी कहते हैं कि कीमोथेरेपी में कैंसर कोशिकाओं के साथ दूसरी कोशिकाएं भी जल जाती हैं। अभी तक कैंसर के इलाज में कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी और सर्जरी होती है जिसकी अपनी सीमाएं हैं। लेकिन इलाज में अब बहुत बदलाव आया है। खासकर मॉलिक्यूलर बायोलॉजी से बहुत सफलता मिली है। ह्यूमन जिनोम की खोज हुई तो क्रोमोसोम और मानव जीन के बारे में जानकारी मिली और मानव की पूरी जीन संरचना को डिकोड किया गया।

डॉ.त्रिपाठी बताते हैं कि इससे यह पता चला कि  अलग-अलग मरीज में कैंसर भी अलग-अलग तरीके से होता है। इसके बाद टारगेटेड ड्रग या पर्सनलाइज्ड ड्रग की शुरुआत हुई जो सीधे जाकर कैंसर कोशिकाओं पर वार करती हैं। वर्तमान में बहुत सारी टारगेटेड ड्रग आ चुकी हैं जिनका प्रयोग कैंसर के उपचार में किया जा रहा है। इन्हें पर्सनलाइज्ड ड्रग या व्यक्तिगत दवा भी कहते हैं यानी हर इंसान के लिए अलग दवा। आने वाले समय में ब्लड कैंसर के इलाज में इंजेक्शन और कीमोथेरेपी कम हो जाएगी या बहुत कम हो जाएगी। केवल टेबलेट खाकर ही कैंसर से निजात मिल सकेगी। इससे मरीज को कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी और उसे अस्पताल में भी नहीं रहना पड़ेगा। सबसे बड़ी मदद यह मिलेगी कि मरीज कैंसर को भी अन्य बीमारियों की तरह ही समझेगा जिसमें महज दवा खाकर बीमारी से निजात मिल जाती है।

नई दवाओं से बढ़ी उम्मीद

शोध में देखा गया कि कैंसर जब शुरू होता है तो वह कैसे सफेद रक्त कोशिकाएं जो हमारे शरीर का डिफेंस सिस्टम है उसे परास्त करने या धोखा देने की कोशिश करता है। इम्यून सिस्टम को जिस-जिस तरह से परास्त करता है उसे ब्लॉक कर कैंसर पर विजय प्राप्त की जा सकती है। इस शोध को  बीते वर्ष नोबेल पुरस्कार दिया गया था।

ब्लड कैंसर से न डरें, इलाज उपलब्ध

संजय गांधी पीजीआइ के हिमेटोलॉजी विभाग की हेड डॉ.सोनिया नित्यानंद कहती हैं कि ब्लड कैंसर जैसे एक्यूट मायलॉयड ल्यूकीमिया (एएमएल) या एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकीमिया (एएलएल) आदि से डरने या निराश होने की जरूरत नहीं। 50 से 60 फीसद मरीज केमोथेरेपी से पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं और जिनमें कीमोथेरेपी से सफलता नहीं मिलती उनका बोन मेरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) किया जाता है जिसके बाद वह स्वस्थ हो जाते हैं। बहुत सारी नई दवाएं आ चुकी हैं जो बेहद असरदार हैं।

डॉ.नित्यानंद कहती हैं कि पीजीआइ में बीएमटी के साथ-साथ सफेद रक्त कणिकाएं (डब्ल्यूबीसी) चढ़ाने जैसी सुविधा है जो देश में कुछ गिनेचुने सेंटर में ही है। दरअसल कीमोथेरेपी से शरीर में डब्ल्यूबीसी की संख्या बहुत कम रह जाती है जिससे इंफेक्शन होने का जबर्दस्त खतरा रहता है। ऐसे में मरीजों को डब्ल्यूबीसी चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। लेकिन इसके लिए ब्लड डोनर की जरूरत पड़ती है। इसलिए अधिक से अधिक लोग ब्लड डोनेट करें। इससे किसी की जिंदगी बचेगी।


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