अब केवल प्रेम कहानी ही परोसकर आप दर्शक को बहला नहीं सकते
फिल्म में किरदार के चाल-चरित्र की पूरी जानकारी देने की बजाय हम दर्शकों पर यह छोड़ते हैं कि वह फिल्म देखकर उस किरदार के बारे में अपना मत खुद रखें।
लखनऊ (जेएनएन)। फिल्म की पटकथा लिखते समय हम इस बात का विशेष ख्याल रखते हैं कि इसमें दर्शकों की सहभागिता बढ़े। फिल्म में किरदार के चाल-चरित्र की पूरी जानकारी देने की बजाय हम दर्शकों पर यह छोड़ते हैं कि वह फिल्म देखकर उस किरदार के बारे में अपना मत खुद रखें। अब फिल्म में किरदार छोटे शहर व कस्बे से भी चुने जा रहे हैं और जहां तक मेरी कोशिश होती है कि वह रीयल लाइफ से ही हों। यह कहना है मशहूर पटकथा लेखक रीतेश शाह का। दैनिक जागरण संवादी में नया सिनेमा, नई कहानी विषय पर आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने मशहूर फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज के सवालों का जवाब दिया और बताया कि किस तरह सिनेमा बदल रहा है।
कविता और साहित्य से लोगों को कनेक्ट करने की जरूरत
अजय ब्रह्मात्मज ने पूछा कि आखिर पिंक में किरदार फलक को लखनऊ का क्यों दिखाया? इस पर रीतेश शाह ने कहा कि इसके पीछे कारण यह था कि अब सिनेमा बदल रहा है और सिर्फ बड़े शहर ही नहीं बल्कि छोटे शहर व कस्बे के किरदार चुनकर भी फिल्म को आराम से सफल बनाया जा सकता है। खासकर वर्ष 2000 के बाद से यह तब्दीली आई है। सिर्फ प्रेम कहानी दिखाकर अब दर्शकों को बहला नहीं सकते। अब दर्शक काफी समझदार हैं। रितेश शाह ने कहा कि हम फिल्म की पटकथा लिखते समय सामाजिक सरोकार का पूरा ख्याल रखते हैं। वर्ष 2008 में मेरी बेटी का जन्म हुआ और उसके अगले वर्ष ही एक फिल्म की पटकथा लिखने का मुझे ऑफर मिला, लेकिन मुझे लगा कि यह तो केवल एक कलाकार का प्रमोशन भर है। कहीं बड़ी होकर बेटी यह न कहे कि पापा यह क्या काम किया आपने, इसलिए मैंने उसे छोड़ दिया।
पहले हल्ला होगा फिर चुप्पी और उसके बाद स्वीकार्यता
हिंदी फिल्मों में पटकथा लेखन को कॅरियर बनाने के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि पहले उन्होंने टेलीविजन शो लिखा। इसमें कगार, कश्मीर और जोश आदि शामिल हैं। वर्ष 2005 से फिल्मों के लिए लिखना शुरू किया। इसमें होम डिलिवरी, नमस्ते लंदन, डी-डे, एयरलिफ्ट व पिंक आदि फिल्में शामिल हैं। वहीं आगे 2017 में कमांडो-टू रिलीज होगी। उन्होंने बताया कि वह सलीम अली व जावेद अख्तर के लेखन से प्रभावित होकर इस क्षेत्र में आए।
स्क्रिप्ट व डायलॉग लिखना कितनी बड़ी चुनौती है, इस पर उन्होंने कहा कि इसमें सामन्जस्य जरूरी है। इसमें डायरेक्टर से लेकर अभिनेता व अभिनेत्री स्तर तक कहीं पर भी आपका अहम न टकराए। उन्होंने कहा कि पिंक में अमिताभ बच्चन का एक डायलॉग 28 शब्द का था। उन्होंने दो बार उसे बोला तो मैंने बड़ी सहजता से कहा कि आप चाहें तो इसे छोटा कर सकते हैं। उन्होंने बड़े प्रेम से कहा कि आप प्लीज एक मौका तो दें और उन्होंने बड़प्पन दिखाते हुए उसे आराम से बोला।
हिंदी फिल्मों में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के योगदान के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मनोज बाजपेई से लेकर आशीष विद्यार्थी और तमाम नगीने वहां से निकले। मैंने भी बहुत कुछ सीखा। क्योंकि एक नाटक 1400 पन्ने का लिखने के बाद वह मूलरूप में केवल 60 पन्ने का ही रह जाता था। उन्होंने कहा कि फिल्म के लिए लिखना चुनौती भरा काम है।