अब टाइप-टू डायबिटीज मेलाइटस पर शोध करेगा लखनऊ विश्वविद्यालय, तीन साल में पूरा होगा रिसर्च
लखनऊ विश्वविद्यालय टाइप-टू डायबिटीज मेलाइटस पर शोध करेगा। इसके लिए केंद्र सरकार से विश्वविद्यालय को 30 लाख रुपये का प्रोजेक्ट मिला है। इस विषय पर शोध कार्य करीब तीन साल में पूरा हो सकेगा। इस पर बहुत जल्द कार्य शुरू होगा।
लखनऊ, जागरण संवाददाता। लखनऊ विश्वविद्यालय टाइप-टू डायबिटीज मेलाइटस (टीटूडीएम) के कारक एवं उसकी रोकथाम पर जल्द ही शोध कार्य शुरू करेगा। इसके लिए विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड मॉलिक्युलर जेनेटिक्स एंड इनफेक्टियस डिसीजेस की निदेशक प्रोफेसर मनीषा बनर्जी को साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड, डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (डीएसटी) भारत सरकार की ओर 30 लाख रुपये का शोध प्रोजेक्ट मिला है। यह शोध कार्य तीन साल में पूरा होगा।
प्रोफेसर मनीषा बनर्जी के मार्गदर्शन में कार्य कर रहे वरिष्ट शोधार्थी अतर सिंह कुशवाह ने बताया कि सीडी 36 (क्लस्टर आफ डिफरेंसिएशन) महत्व एक जरूरी प्रोटीन है, जो हमारे शरीर में लिपिड्स के मेटाबॉलिज्म में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह प्रोटीन शरीर की विभिन्न कोशिकाओं की मेंब्रेन पर एक रिसेप्टर की तरह कार्य करता है जो फ्री फैटी एसिड को सेल्स के अंदर पहुंचाने में सहायक है। साथ ही शरीर की विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं में भी पाया जाता है। 2011 में मालीकुलर एंड ह्यूमन जेनेटिक्स डिपार्टमेंट ऑफ जूलॉजी की टीम ने टीम ने सबसे पहले टाइप-टू डायबिटीज के विकास में इस प्रोटीन के कारकीय गुण तथा जेनेटिक स्टडी के आधार पर खतरे को बताया था।
शोध में इन कारणों का पता लगाया जाएगा : सीडी 36 तथा टाइप-टू डायबिटीज के कारक, विकास एवं रोकथाम की दिशा में कैसे इंसुलिन स्राव तथा उसके फंक्शन को रोका जाता है। साथ ही ऐसे और कौन-कौन से प्रोटीन हैं जो इस प्रोटीन की मदद से हमारे शरीर में इंसुलिन के स्राव एवं उसके फंक्शन को रोकते हैं, जिससे शरीर में इंसुलिन बनती तो है, लेकिन उसका उपयोग शरीर नहीं कर पाता। इसी वजह से व्यक्ति को डायबिटीज जैसी घातक बीमारी हो जाती है। आगे शोध कार्य में सीडी 36 को निष्क्रिय एवं सक्रिय करके टाइप-टू डायबिटीज के विकास का गहन अध्ययन तथा रोकथाम की संभावनाओं को खोजने पर कार्य किया जाएगा।