केजीएमयू के बाद अब लोहिया में रिसर्च उपकरणों के लिए बनेगी पेटेंट सेल, पीजीआइ समान होगी रॉयल्टी दर Lucknow News
केजीएमयू के बाद अब लोहिया संस्थान में रिसर्च के लिए कानून बनाने की तैयारी रिसर्च में बने उपकरणों की तय होगी रायल्टी दर।
लखनऊ, जेएनएन। शहर के चिकित्सा संस्थानों के डॉक्टरों को रॉयल्टी डकारने की छूट खत्म होगी। दैनिक जागरण द्वारा भंडाफोड़ करने के बाद संस्थान प्रशासन हरकत में आए हैं। ऐसे में केजीएमयू के बाद अब लोहिया संस्थान ने भी रॉयल्टी कानून लागू करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। जल्द ही इस कानून पर जल्द ही अमल होगा।
डॉक्टरों ने संस्थान के संसाधन, धन, मरीज पर शोध कर बनाए उपकरणों का पेटेंट खुद करा लिए। वहीं बौद्धिक संपदा कंपनियों को बेचकर करोड़ों की रॉयल्टी डकार गए। डॉक्टरों ने संस्थान को रॉयल्टी की फूटी कौड़ी तक नहीं दी। ऐसे में तहकीकात में लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में भी रॉयल्टी कानून लागू न होने का खुलासा हुआ। 2008 में शुरू हुए लोहिया संस्थान में 137 शिक्षक हैं। 11 साल बाद अब निदेशक डॉ. एके त्रिपाठी ने रॉयल्टी कानून लागू करने का फैसला किया। उन्होंने शिक्षकों द्वारा पेटेंट कराए गए उपकरणों की सूची तलब की। साथ ही डीन व रिसर्च सेल की हेड डॉ. नुजहत हुसैन को रॉयल्टी कानून लागू करने का जिम्मा सौंपा है। डॉ. एके त्रिपाठी के मुताबिक लोहिया संस्थान में पीजीआइ की तर्ज पर रॉयल्टी में डॉक्टर का 60 फीसद व संस्थान का 40 फीसद शेयर तय किया जाएगा।
केजीएमयू में अब 90 फीसद हड़पने की तैयारी : भंडाफोड़ होने पर केजीएमयू में 114 वर्ष बाद रॉयल्टी कानून लागू करने पर मंथन चल रहा है। इसका ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है। डीन रिसर्च सेल डॉ. आरके गर्ग के मुताबिक कमेटी ने 10 फीसद संस्थान व 90 फीसद डॉक्टर को रॉयल्टी देने का सुझाव दिया है। अब सवाल यह है कि केजीएमयू के डॉक्टर वेतन, भत्ते व सुविधाएं पीजीआइ के समान ले रहे हैं, वहीं समान रॉयल्टी में आनाकानी क्यों की जा रही है। जोकि नहीं होनी चाहिए।
लोहिया हॉस्पिटल ब्लॉक की सीटी स्कैन मशीन की मरम्मत हो गई है। मरीजों को फिर मुफ्त जांच की सुविधा मिलने लगी है। लोहिया हॉस्पिटल ब्लॉक में 467 बेड हैं। वहीं चार से पांच हजार की ओपीडी है। यहां पीपीपी मॉडल पर सीटी स्कैन मशीन लगाई गई थी। इसमें मरीजों की मुफ्त जांच की सुविधा मिल रही थी, लेकिन पिछले पांच दिन से मशीन खराब थी। ऐसे में मशीन की मरम्मत को लेकर कंपनी और अस्पताल प्रशासन में खींचतान चल रही थी। डॉ. देवाशीष शुक्ला के मुताबिक मशीन की मरम्मत हो गई है। मरीजों की जांच फिर शुरू हो गई है।
संस्थान के माध्यम से होंगे पेटेंट
निदेशक डॉ. एके त्रिपाठी के मुताबिक कोई भी चिकित्सक आविष्कार का पेटेंट डायरेक्ट नहीं कराएगा। उसको शोध प्रोजेक्ट का ब्योरा पेटेंट सेल में देना होगा। इसके जरिए पेटेंट के लिए प्रोजेक्ट भेजा जाएगा।