हर साल डिजिटल होंगे 20 लाख अभिलेख, खर्च किए जाएंगे सवा करोड़ रुपये
अभी तक 27 लाख अभिलेखों को डिजिटल रूप दिया जा चुका है जबकि आठ लाख प्रक्रिया में हैं।
लखनऊ[जागरण संवाददाता]। संस्कृति विभाग ने राजकीय अभिलेखागार में संरक्षित अभिलेखों को डिजिटल करने का लक्ष्य तय कर दिया है। अब प्रत्येक वर्ष करीब 20 लाख अभिलेखों का डिजिटाइजेशन कराया जाएगा। विभाग ने (राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र) एनआइसी के साथ इसकी तैयारी कर पूरी ली है। राजकीय अभिलेखागार में सवा करोड़ से अधिक अभिलेख संरक्षित किए गए हैं। अभी तक 27 लाख अभिलेखों को डिजिटल रूप दिया जा चुका है जबकि आठ लाख प्रक्रिया में हैं। ये सभी अभिलेख सचिवालय व राजस्व विभाग से संबंधित हैं, जो आजादी से पहले और वर्ष 1803 के बाद के हैं। अभिलेखों को सुरक्षित रखने के लिए इसे डिजिटल रूप देने की योजना बनी थी। नियमानुसार 30 साल पुराने अभिलेखों को ही अभिलेखागार में संरक्षित किया जाता है और इसे ही डिजिटल रूप दिया जाएगा। खर्च होंगे सवा करोड़ रुपये
राजकीय अभिलेखागार के तकनीकी सहायक अंजनी त्रिपाठी बताते हैं कि अभिलेखों व पाडुलिपियों का प्रति पेज डिजिटाइजेशन करने में लगभग एक रुपये का खर्च आता है। इस तरह से 1.25 करोड़ पेज के अभिलेखों को डिजिटल रूप देने में इतनी ही रकम व्यय होगी।
पाडुलिपिया भी होंगी डिजिटल
देश की संस्कृति के बारे में जानने की हर किसी की इच्छा होती है, लेकिन यह तभी संभव हो पाता है जब हमें उससे संबंधित साहित्य या अभिलेख मिलते हैं। इसी उद्देश्य से राजकीय अभिलेखागार ने प्राचीन पाडुलिपियों को भी संरक्षित किया है। अब इसे भी अभिलेखों के साथ ही डिजिटल रूप दिया जाएगा। अभिलेखागार में ऋग्वेद, श्रीराम चरित मानस सचित्र, श्रीमद्भागवत गीता सचित्र, गज चिकित्सा, वाल्मीकि रामायण, कबीर दास की साखी, हरिवंश पुराण आदि की पाडुलिपिया हैं। क्या कहना है डायरेक्टर का?
राजकीय अभिलेखागार असिस्टेंट डायरेक्टर मो. मोहसिन नूरी का कहना है कि पुराने अभिलेखों का डिजिटाइजेशन एनआइसी के जरिए कराया जा रहा है। अभी तक 27 लाख अभिलेखों को डिजिटल रूप दिया जा चुका है, जबकि आठ अभिलेख प्रक्त्रिया में है।