अब अपनी पसंद के निजी अस्पताल में इलाज करा सकेंगे कोरोना मरीज
लखनऊ में कोरोना के इलाज के लिए निजी अस्पताल के नोडल ऑफिसर को बेड खाली होने व मरीज का ब्यौरा स्वास्थ्य विभाग को होगा भेजना।
लखनऊ, जेएनएन। कोरोना संक्रमित मरीजों को अब अपनी पसंद के निजी अस्पताल में इलाज कराने का मौका स्वास्थ विभाग की ओर से मिल सकेगा। बशर्ते इसके लिए जिस भी निजी अस्पताल में मरीज अपना इलाज कराना चाहता है, उस अस्पताल के नोडल ऑफीसर की तरफ से बेड खाली होने की गारंटी मरीज के ब्योरे के साथ लिखित में स्वास्थ्य विभाग के पास भेजना होगा। ब्यौरा मिलने के लगभग एक घंटे में संबंधित मरीज को भर्ती करने की अनुमति सीएमओ कार्यालय की ओर से जारी कर दी जाएगी। इसके बाद मरीज अपनी पसंद के निजी अस्पताल में भर्ती होकर अपना इलाज करा सकेगा।
अभी तक कोरोना पॉजिटिव मरीजों को पसंद के निजी अस्पताल में इलाज कराने का मौका नहीं मिल पा रहा था। अगर कोई मरीज निजी अस्पताल में भर्ती होना चाहता था तो स्वास्थ्य विभाग की टीम सभी निजी अस्पतालों में संपर्क करती थी। अगर उसमें से मरीज की च्वाइस वाले अस्पताल में बेड खाली नहीं होता था तो किसी अन्य निजी अस्पताल में उसको भर्ती कराया जाता था।अनुमति पत्र के लिए मरीजों को अभी पड़ता है भटकना: अभी तक अपने पसंद के निजी अस्पतालों में भर्ती होने के इच्छुक मरीजों को सीएमओ दफ्तर की ओर से अनुमति पत्र पाने के लिए भटकना पड़ता है। कई मरीजों की शिकायत होती है कि उन्होंने निजी अस्पताल में संपर्क साध लिया है और वहां से कहा जाता है कि सीएमओ दफ्तर से एडमिट करने का अनुमति पत्र लाइए। तब आपको भर्ती कर लिया जाएगा, लेकिन समय पर अनुमति पत्र नहीं मिलने से ऐसे मरीजों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था।
बेड की गारंटी देकर भर्ती नहीं करने पर निजी अस्पताल होंगे जिम्मेदार: कोरोना के नोडल प्रभारी व एसीएमओ डॉ एमके सिंह ने कहा कि अगर कोई मरीज यह कहता है कि उसे अपनी पसंद के निजी अस्पताल में इलाज कराना है तो हम उसे अनुमति पत्र देंगे। मगर इसके लिए उस अस्पताल के नोडल अधिकारी की तरफ से मरीज को अपने ब्यौरे के साथ स्वास्थ्य विभाग के पास एक पत्र व्हाट्सएप पर भेजवाना पड़ेगा। सिर्फ़ मौखिक आधार पर कहने से अनुमति नहीं मिलेगी, क्योंकि ऐसा कई बार हुआ है कि मरीज दावा करता है कि बेड खाली होने की बात अस्पताल में हो गई है। बाद में जब अनुमति दी जाती है तो निजी अस्पताल कहते हैं कि बेड खाली नहीं है। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग का सिर्फ समय ख़राब होता है और मरीज को मुश्किल भी होती है। पत्र जारी करने के बाद भर्ती नहीं करने पर निजी अस्पताल जिम्मेदार होंगे।