नौ घंटे चला ऑपरेशन, ठीक हुई रीढ़ की हड्डी
- इंट्रा ऑपरेटिव नर्व मॉनीटरिंग और न्यूरो नेवेगेशन तकनीक की मदद से किया गया ऑपरेशन -
- इंट्रा ऑपरेटिव नर्व मॉनीटरिंग और न्यूरो नेवेगेशन तकनीक की मदद से किया गया ऑपरेशन
- लोहिया संस्थान में पहली बार हुआ स्कोलियोसिस का इलाज
जागरण संवाददाता, लखनऊ : लोहिया इंस्टीट्यूट में 13 वर्षीय प्रतिष्ठा की रीढ़ की हड्डी के टेढ़ेपन को ठीक किया गया है। यह पहली बार है कि संस्थान में इतना बड़ा ऑपरेशन किया गया। इसमें इंट्रा ऑपरेटिव नर्व मॉनीटरिंग और न्यूरो नेवेगेशन तकनीक की मदद ली गई। तकरीबन नौ घंटे तक चले इस ऑपरेशन में लड़की को 28 स्क्रू लगाए गए। वहीं ऑपरेशन के बाद अभी प्रतिष्ठा को अंडर आब्जर्वेशन रखा गया है।
कानपुर निवासी प्रतिष्ठा को करीब साल भर से कमर व पीठ में दर्द होता था। इसकी वजह से उसे चलने में परेशानी हो रही थी और वह दाहिनी तरफ झुककर चलती थी। परिवारीजन प्रतिष्ठा की चाल में गड़बड़ी को देखकर परेशान थे। स्थानीय डॉक्टरों के इलाज से फायदा न होने पर वह उसे लोहिया संस्थान लेकर आए। यहा न्यूरोसर्जरी विभाग में डॉ. दीपक सिंह, डॉ. राकेश कुमार और डॉ. कुलदीप यादव ने उसका इलाज शुरू किया।
स्कोलियोसिस से ग्रसित थी प्रतिष्ठा
डॉक्टरों ने पहले एक्सरे करवाया। इसके बाद उसकी एमआरआइ और सीटी स्कैन जाच कराई तो स्कोलियोसिस बीमारी की पुष्टि हुई। डॉ. दीपक सिंह ने बताया कि यह रीढ़ की हड्डी की बीमारी है। इसमें रीढ़ की हड्डी टेढ़ी हो जाती है। अक्सर यह जन्मजात बीमारी होती है। यह बीमारी तीन प्रतिशत बच्चों में होती है। शुरुआत में इस बीमारी के लक्षण नजर नहीं आते हैं। इस बीमारी के लक्षण 10 से 20 साल की उम्र में प्रकट होते हैं। यह बीमारी लड़कों की तुलना में लड़कियों को ज्यादा होती है।
नौ घंटे चला जटिल ऑपरेशन
डॉ. राकेश कुमार ने बताया कि प्रतिष्ठा की रीढ़ की हड्डी बहुत ज्यादा टेढ़ी हो गई थी। न्यूरो नेवीगेशन मशीन से रीढ़ की हड्डी से निकलने वाली नसों को बारीकी से देखा गया और नेवीगेटर से ऑपरेशन करने में काफी मदद मिली। प्रतिष्ठा की गर्दन के नीचे से कमर तक चीरा लगाया गया जिसके बाद वरटिब्रा कॉलम रोटेटर, वरटिब्रा कॉलम मैनीपुलेट और स्पाइनल सिस्टम विद रॉड कैप्चर सिस्टम के माध्यम से रीढ़ की हड्डी को सीधा किया गया। दोबारा हड्डी टेढ़ी न हो इसकेलिए दो रॉड गर्दन से कमर तक लगाई गई और उसमें लगभग 28 स्क्रू लगाए गए।
कम हुआ ब्लड लॉस
डॉ. कुलदीप यादव ने बताया कि ऑपरेशन नौ घटे तक चला, लेकिन उसे केवल एक यूनिट ब्लड चढ़ाया गया। इतने बड़े ऑपरेशन में कम से कम ब्लड लॉस हुआ। उन्होंने बताया कि ऑपरेशन के बाद उसे होश आ गया और वो सामान्य लोगों की तरह चल रही है। उन्होंने बताया कि इस ऑपरेशन पर करीब साढ़े पाच लाख रुपये का खर्च आया है।