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NGT ने निगरानी समिति से 23 सितंबर तक मांगी इटावा व जालौन में बालू के अवैध खनन की जानकारी

एनजीटी ने हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एसवीएस राठौर की अगुआई में गठित निगरानी समिति से इटावा और जालौन में नदी के पेटे से बालू के अवैध खनन की जानकारी हासिल करने के लिए कहा है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Thu, 18 Jun 2020 06:43 PM (IST)Updated: Thu, 18 Jun 2020 06:43 PM (IST)
NGT ने निगरानी समिति से 23 सितंबर तक मांगी इटावा व जालौन में बालू के अवैध खनन की जानकारी
NGT ने निगरानी समिति से 23 सितंबर तक मांगी इटावा व जालौन में बालू के अवैध खनन की जानकारी

लखनऊ, जेएनएन। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने हाई कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एसवीएस राठौर की अगुआई में गठित निगरानी समिति से इटावा और जालौन में नदी के पेटे से बालू के अवैध खनन के मामले की जानकारी हासिल करने के लिए कहा है। अवैध खनन से इनकार करने वाली रिपोर्ट को एनजीटी के समक्ष तीन मार्च को दिए गए हलफनामे के माध्यम से चुनौती दी गई है। इसमें कहा गया है कि अवैध खनन अब भी हो रहा है।

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एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता में गठित पीठ ने समिति से कहा है कि वह दोनों जिलों के जिलाधिकारियों और प्रशासनिक तंत्र से इस बारे में मालूमात करें। समिति को अपनी रिपोर्ट 23 सितंबर तक ई-मेल के जरिए देने के लिए कहा गया है। एनजीटी ने गौर किया कि इस मामले में स्टेट इन्वायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट अथॉरिटी की ओर से पर्यावरण विभाग के उपनिदेशक द्वारा और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से दी गई रिपोर्ट में कहा गया था कि दोनों जिलों में कोई अवैध खनन नहीं हो रहा है। एनजीटी के समक्ष इस रिपोर्ट को उत्तर प्रदेश के निवासी अजय पांडे व अन्य की ओर से चुनौती दी गई है।

अवैध खनन से इनकार करने वाली रिपोर्ट को एनजीटी के समक्ष तीन मार्च को दिए गए हलफनामे के माध्यम से चुनौती दी गई है। इसमें कहा गया है कि अवैध खनन अब भी हो रहा है। सुबूत के तौर पर अवैध खनन करने वाले बिना नंबर प्लेट वाले ट्रकों के फोटोग्राफ और अखबारों में इस बाबत प्रकाशित समाचारों को संलग्न किया गया है। अखबार में प्रकाशित समाचार में बताया गया है कि अवैध खनन के आरोप में 10 कांस्टेबल के खिलाफ कार्रवाई की गई है। इन सब पर गौर फरमाते हुए एनजीटी ने कहा है की जो साक्ष्य उपलब्ध कराए गए हैं, उसके आधार पर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट को बिना जांच पड़ताल के स्वीकार करना मुश्किल है।


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