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पर्यावरण को दरकिनार कर बांटे जा रहे छोटे खनन पट्टों पर एनजीटी ने जताई नाराजगी

एनजीटी ने साफ निर्देश दिए हैं कि हर पट्टे की मंजूरी के लिए पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्रबंधन योजना तथा जनसुनवाई अनिवार्य होगी।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sun, 16 Dec 2018 06:19 PM (IST)Updated: Sun, 16 Dec 2018 06:19 PM (IST)
पर्यावरण को दरकिनार कर बांटे जा रहे छोटे खनन पट्टों पर एनजीटी ने जताई नाराजगी
पर्यावरण को दरकिनार कर बांटे जा रहे छोटे खनन पट्टों पर एनजीटी ने जताई नाराजगी

लखनऊ [रूमा सिन्हा] । केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की शह पर जिलों में पर्यावरण को दरकिनार कर बांटे जा रहे बालू, मौरंग के खनन पट्टों पर नेशनल ग्रीन टिब्यूनल (एनजीटी) ने सख्त नाराजगी व्यक्त की है। टिब्यूनल ने इसे पूर्व में दिए गए अदालती आदेशों का उल्लंघन माना है और जिला पर्यावरण आंकलन प्राधिकरणों द्वारा 25 हेक्टेयर तक के पट्टे दिए जाने की 15 जनवरी, 2016 की अधिसूचना पर रोक लगा दी है।

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दरअसल, एनजीटी ने 13 सितंबर 2018 को जिला प्राधिकरण व विशेषज्ञ समितियों को निष्प्रभावी किए जाने का आदेश दिया था। वहीं, एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी जिला स्तरीय प्राधिकरणों पर रोक लगाने के निर्देशों दिए थे लेकिन उत्तर प्रदेश व केरल में अदालती आदेशों के उल्लंघन के मामले लगातार सामने आ रहे थे। नाराज एनजीटी ने 11 दिसंबर को विक्रांत तोंगड़ और सत्येंद्र पांडेय की अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए पर्यावरण मंत्रलय को कड़े शब्दों में अल्टीमेटम दिया है कि अगर 31 दिसंबर तक आदेशों का अनुपालन नहीं हुआ तो वह सख्त कार्रवाई के लिए तैयार रहें।

जिला स्तरीय पर्यावरण आंकलन प्राधिकरणों को लेकर शिकायतें आ रहीं थीं कि स्थानीय पर्यावरण हितों को दरकिनार कर पट्टे बांटे जा रहे हैं। पर्यावरण मंत्रलय की 15 जनवरी, 2016 की अधिसूचना के तहत 25 हेक्टेयर तक केखनन पट्टे जिला पर्यावरण प्राधिकरण द्वारा बिना जनसुनवाई और पर्यावरण प्रभाव आंकलन कराए बांटे जा रहे हैं। इससे स्थानीय पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचने का संकट पैदा हो गया है। बेलगाम खनन (खासकर बालू, मोरंग की खुदाई) होने से नदी क्षेत्र की इकोलॉजी, जलीय जीवजंतु तथा क्षेत्र की भूजलीय स्थिति पर बुरा असर पड़ रहा है जिसकी भरपाई नामुमकिन होगी।

एनजीटी के समक्ष यह भी लाया गया कि जिला पर्यावरण मूल्यांकन समितियों में ऐसे अधिकारी, नौकरशाह नामित हैं जिनके पास पर्यावरण व वैज्ञानिक विशेषज्ञता का अभाव है। वह खनन से होने वाले पर्यावरणीय दुष्प्रभावों का सही आंकलन नहीं कर पाते। छोटे खनन पट्टे देने में उत्तर प्रदेश अव्वल पाया गया जिसके चलते नदी का प्रवाह व भूजल रिचार्ज प्रभावित हो रहा है।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी दरकिनार

दीपक कुमार मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी पर्यावरण मंत्रलय ने अनुपालन नहीं किया। आदेश में कहा गया है कि खनन पट्टों के लिए प्रभावी विनियमन प्रणाली बनाई जाए। एनजीटी ने साफ निर्देश दिए हैं कि हर पट्टे की मंजूरी के लिए पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्रबंधन योजना तथा जनसुनवाई अनिवार्य होगी। दरअसल यह पूरा मामला मंत्रलय के अनुसचिव भारत प्रसाद के बीती 25 अक्टूबर के सभी जिलाधिकारियों को भेजे गए पत्र से शुरू हुआ। कहा गया है जिला स्तरीय प्राधिकरण व समितियों की नियमित बैठकगं नहीं हो रही है जिससे खनन के लिए किए गए आवेदनों का निस्तारण नहीं हो पा रहा है। जिलाधिकारी यह सुनिश्चित करें कि बैठके नियमित कर ऐसे मामले शीघ्र निस्तारित किए जाएं। एनजीटी ने मंत्रलय के इस पत्र को अदालती आदेशों का खुला उल्लंघन माना है। कहा है कि रोक के आदेशों पर कार्रवाई न करना गैरकानूनी माना जाएगा। रोक सभी राज्यों पर लागू होगी।


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