निकाह को नकार शबनम ने पढ़ाई के बल पर अमेरिका में दिखाया जलवा
राष्ट्रीय बालिका दिवस पर विशेष : अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने शबनम को न केवल ढाई सौ डॉलर का अवार्ड दिया बल्कि ग्लैमर मैग्जीन में उसकी फोटो भी प्रकाशित हुई थी।
लखनऊ, (जितेंद्र उपाध्याय)। आइए आपको एक ऐसी होनहार बेटी की कहानी बताते हैं जो शिक्षा के बल पर अपने जैसी बालिकाओं की प्रेरणास्रोत बनी है। बलरामपुर जिले के कस्बा मनकापुर के अल्पसंख्यक परिवार से निकलकर उसने न केवल शिक्षा के बल पर ग्लैमर गर्ल का खिताब लेकर अमेरिका तक उड़ान भरी बल्कि अपने कुनबे का भी मान बढ़ाया। यह कहानी है शबनम की। जिस उम्र में माता-पिता के प्यार की जरूरत थी, उस उम्र में अभिभावकों का साथ उसने सिर्फ इसलिए छोड़ दिया क्योंकि वे चाहते थे कि शबनम निकाह कर ले जबकि वह पढऩा चाहती थी। आर्थिक विपन्नता से जूझ रहे परिवार व समाज के लिए कुछ करना चाहती थी।
शबनम बताती है कि मनकापुर के मदरसे में कक्षा पांच तक की पढ़ाई के बाद उसके रिश्ते की तैयारी शुरू हो गई। पिता अब्दुल शमद मजदूरी करके बमुश्किल परिवार चला पाते थे। दो बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी, तो भाई अपने परिवार के साथ मुंबई चला गया। छोटा भाई परिवार चलाने में पिता का हाथ बंटाता, इससे पहले ही वह भी बड़े भाई के साथ मुंबई चला गया। शबनम मां मोमिना खातून की लाडली तो थी, लेकिन जहां दो जून की रोटी मुश्किल थी, वहां पढ़ाई की कौन सोच सकता था।
शबनम को यह कबूल न था। निकाह के बजाय शिक्षा को कबूल करने के जज्बे के साथ घर छोड़ा और फिर निकलकर अपनी टीचर से संपर्क किया। शबनम बताती है, पढ़ाई में वह तेज थी, ऐसा मदरसे के शिक्षक बताते थे। प्रवेश परीक्षा दी और मेरा प्रवेश बलरामपुर जिले में ही राजकीय कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय में हो गया। 2015 में हाईस्कूल की परीक्षा में 78 फीसद अंक आए तो जिले में सम्मान किया गया। शिक्षकों ने भी हौसला बढ़ाया।
ऐसे बन गई ग्लैमर गर्ल
हाईस्कूल के बाद शबनम को इंटर की पढ़ाई करनी थी। बलरामपुर में ही उसकी मुलाकात समाज सेविका फरीदा से हुई। मुलाकात के बाद प्रदेश में बालिका शिक्षा को लेकर काम करने वाली संस्था केयर इंडिया की यूपी हेड वंदना मिश्रा ने न केवल उसका साक्षात्कार लिया, बल्कि उसका नाम अमेरिका में होने वाले विश्वस्तरीय ग्लैमर अवार्ड के लिए भी प्रस्तावित किया। विपरीत परिस्थितियों में शिक्षा के बल पर मुकाम हासिल करने के लिए हर वर्ष अमेरिका में यह अवार्ड दिया जाता है। वर्ष 2015 में देश से शबनम इकलौती ग्लैमर गर्ल बनी। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने शबनम को न केवल ढाई सौ डॉलर का अवार्ड दिया बल्कि ग्लैमर मैग्जीन में उसकी फोटो भी प्रकाशित हुई।
प्रशासनिक अधिकारी बनना चाहती है शबनम
शबनम वर्तमान में बलरामपुर के एमएलके पीजी कॉलेज से बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रही है। आइएएस बनकर अपने जैसी बालिकाओं की शिक्षा का इंतजाम करना चाहती हैं। केयर इंडिया की वंदना मिश्रा उसकी किताबों और स्टेशनरी का इंतजाम करती हैं तो कुछ लोग चंदा लगाकर उसकी फीस भरते हैं।
50 रुपये में पढ़ाती थी ट्यूशन
बकौल शबनम, घर से दूर हो चुकी थी तो रोज के खर्चे के लिए पैसे नहीं होते थे। अपने क्लास के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी। एक बच्चे को पढ़ाने के 50 रुपये मिलते थे। उसी से खर्च चलता था।
ऐसा खाना कभी नहीं खाया
शबनम बताती हैं कि जब वह अमेरिका जा रही थीं तो वंदना मिश्रा ने माता-पिता को भी बुलाया था। पांच साल बाद पहली बार मां को गले लगाया तो जी भर के रोई। पिता की आंखों से मुफलिसी के आंसू निकले तो समझ गई कि मजबूरी अपनों को पराया बना देती है। न्यूयॉर्क के पांच सितारा होटल में गई तो पहली बार दाल रोटी, सब्जी से अलग कुछ नया खाया और उसका स्वाद चखा था। अमेरिका में मैंने हिंदी में अपनी कहानी बताई तो अंग्रेजी ट्रांसलेशन के बाद ऐसी तालियां बजीं, जिनकी गूंज मुझे आज भी आगे बढऩे की प्रेरणा देती है।