लखनऊ: मुन्ना लाल शुक्ला ने भ्रष्टाचार की जंग लड़ी 'आरटीआई' के संग
2005 में जन सूचना अधिकार अधिनियम के रूप में भ्रष्टाचार से लड़ने का हथियार मिला। इसके जरिए अब तक डेढ़ हजार से अधिक सूचनाएं मांगी।
वह सरकारी कर्मचारी होने के नाते विभागीय भ्रष्टाचार से वाकिफ थे। गरीबों के लिए आवंटित सरकारी धन का किस कदर दुरुपयोग होता है यह देख भी चुके थे। अधिकारी-कर्मचारी दीन-हीन लोगों की मदद करने की बजाए उस पैसे से ऐश करते थे, तब उनके मन को बहुत पीड़ा होती थी। कई बार इसका विरोध किया। इस पर उनका ट्रांसफर कर दिया गया।
आखिर उन्होंने नौकरी से खिन्न होकर त्याग पत्र दे दिया। इसके बाद निकल पड़े भ्रष्टाचारियों को सबक सिखाने। वर्ष 2005 में जन सूचना अधिकार अधिनियम के रूप में भ्रष्टाचार से लडऩे का हथियार मिला। इसके जरिए 2005 से अब तक डेढ़ हजार से अधिक सूचनाएं मांगी हैं। 1200 में जवाब मिला, जबकि कई प्रकरणों में कार्रवाई भी हुई। भ्रष्टाचार के विरुद्ध इस लड़ाई में वह उतरे तो अकेले थे, लेकिन अब उनके साथ कई लोग शामिल हो चुके हैं।
लखनऊ में बाजार खाला निवासी 47 वर्षीय मुन्ना लाल शुक्ला मूल रूप से भरावन (हरदोई) के रहने वाले हैं। बेसिक शिक्षा विभाग में ब्लॉक समन्वयक पद से करियर शुरू किया था। इसी दौरान शिक्षा विभाग के भ्रष्टाचार से पाला पड़ा। वहां बच्चों की पढ़ाई के लिए आवंटित धन की बंदरबांट होती थी। उन्होंने जब-जब इसका विरोध किया तब-तब ट्रांसफर के रूप में खामियाजा भुगतना पड़ा।
कुछ ही महीनों में कन्नौज से लखनऊ और यहां से हरदोई भेज दिए गए। 2007 में गलत तरीके से पैसे के लेन-देन के मामले में खिलाफत की तो फिर स्थानांतरण कर दिया गया। इस बार उन्होंने नए स्थान पर कार्यभार ग्रहण करने की बजाय नौकरी से ही तौबा की ली।
लड़ी लड़ाई तो उजागर हुआ भ्रष्टाचार
मुन्ना लाल भ्रष्टाचार के विरोध में युवावस्था से ही रहे। नौकरी में आने के बाद इससे सरोकार भी हुआ। वर्ष 2003 की बात है, ग्राम पंचायतों में भ्रष्टाचार के विरोध में भरावन ब्लॉक परिसर में 11 जनवरी से 20 जनवरी तक धरना दिया। आखिर अधिकारी चेते। जांच हुई तो सात लाख का घोटाला पकड़ा गया। तत्कालीन प्रधान के अधिकार सीज किए गए और विभागीय सचिव पर कार्रवाई हुई। वर्ष 2005 में आरटीआई एक्ट के अस्तित्व में आने के बाद उनके प्रयासों को बल मिला। बताते हैं कि विधायक बेनीगंज (अब संडीला) की निधि के खर्च की आरटीआई के तहत सूचना मांगी। काफी मशक्कत के बाद जवाब मिला। इसके बाद शिकायत पर जांच हुई। गड़बड़ी पकड़ी गई, लेकिन कार्रवाई के लिए मामला शासन में दब गया। वर्ष 2007 में एक अन्य मामले में ब्लॉक भरावन की सूचना नहीं मिली तो डीएम कार्यालय में प्रदर्शन किया।
बाद में सूचना मिली और जांच भी हुई तो कई सड़कों के मरम्मतीकरण में गड़बड़ी सामने आई। अधिकारियों पर कार्रवाई हुई और ब्लॉक प्रमुख के भ्रष्टाचार का नतीजा रहा कि वह अगला चुनाव हार गए। ऐसे डेढ़ हजार से अधिक मामलों में उन्होंने सूचनाएं मांगी और जवाब लेकर भ्रष्टाचार के विरोध में लड़ते रहे हैं।
अन्ना के आंदोलन में भी रहे सक्रिय
मुन्ना लाल शुक्ला समाज सेवी अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में भी सक्रिय रहे। राजधानी में कई बार प्रदर्शन की अगुवाई की और जन सूचना अधिकार के प्रति लोगों को जागरूक भी किया। अब हरदोई के भगवान दीन, मनीष शुक्ल, लखनऊ के राजेश त्रिवेदी, उमेश शुक्ल, वीरेंद्र मिश्र आदि के साथ सामूहिक आरटीआई दाखिल करते हैं। साथ ही भ्रष्टाचार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन करते रहे हैं।
प्रयासों से हुआ सूचना सार्वजनिक करने का आदेश
मुन्ना लाल बताते हैं कि विभागीय मामलों में अधिकारी जन सूचना देने में हीलाहवाली करते हैं। ऐसे ही एक प्रकरण में उन्होंने राज्य सूचना आयोग में अपील की। वर्ष 2006 में तत्कालीन सूचना आयुक्त वीरेंद्र सक्सेना ने एक्ट की धारा-4, 1-बी का अनुपालन कराने का आदेश दिया। इसके तहत सूचनाएं सार्वजनिक तौर पर दी गईं।
सूचना आयुक्त की नियुक्ति पर भी मांगी सूचना
मुन्ना कहते हैं कि सूचना पाना हमारा अधिकार है। इसका सदुपयोग होना चाहिए। वर्ष 2007-08 में राज्य सूचना आयुक्त की नियुक्त का मामला विवादित चल रहा था, यह नियुक्ति किस आधार पर हुई? इस बारे में सूचना मांगने पर उनको धमकी मिली। शासन में शिकायत की तो मामला दब गया। बाद में कुछ लोगों ने कोर्ट में रिट याचिका दर्ज की, लेकिन उस पर स्थगन आदेश लग गया।
अब चला रहे जागरूकता अभियान
मुन्ना लाल ने जनवरी 2018 में भरावन से आरटीआई चौपाल शुरुआत की। इसके जरिए वह जन सूचना अधिकार के बारे में लोगों को बताते हैं। अब तक ऐशबाग, दुबग्गा समेत राजधानी के कई स्थानों पर चौपाल लगा चुके हैं। वह कहते हैं कि पहले अधिकारी व नेता एकल आरटीआई लगाने पर धमकी देते थे। इसीलिए चौपाल के जरिए लोगों को सामूहिक आरटीआई दाखिल करने को प्रेरित करते हैं। जून में उतरदहा गांव के एक मामले में लोगों ने सामूहिक आरटीआई लगाई। गांव में शौचालय के निर्माण में भ्रष्टाचार हो रहा था। सामूहिक आरटीई के बाद लोगों की एकजुटता का नतीजा रहा कि अधिकारियों ने प्रधान व एजेंसी से काम छीन लिया और ग्रामीणों ने स्वयं लग कर 150 शौचालयों का निर्माण कराया।