जमीन ही नहीं तो बांड कैसे जारी करेगा नगर निगम
ग्राम समाज की जमीनें राजस्व विभाग की हैं, निगम सिर्फ प्रबंधक। हकीकत: नगर निगम ने आंकी 14.25 अरब भूमि की कीमत। क्षेत्रफल- 15.29 लाख वर्ग मीटर कुल 3
लखनऊ[अजय श्रीवास्तव]। नगर निगम के जारी होने वाले बांड में जमीन रोड़ा बन सकती है। नगर निगम 14.25 अरब की जिन जमीनों के सहारे बांड जारी करना चाहता है, हकीकत में वह उसकी हैं ही नहीं। जमीन का मालिक राजस्व विभाग है। 18 अप्रैल 2018 को प्रमुख सचिव आवास नितिन रमेश गोकर्ण की तरफ से जारी शासनादेश में भी यह स्पष्ट कर दिया गया था कि सरकारी भूमि का संरक्षक राजस्व अधिकारी व जिला अधिकारी होता है। नगर निगम केवल प्रबंधक होता है। इसलिए ग्राम सभा और स्थानीय प्राधिकारियों के प्रबंधन में रखी गई राजस्व सरकार की पुनर्ग्रहीत भूमि का मूल्य राज्य सरकार के राजकोष में ही जमा कराई जाए। इस नए शासनादेश के बाद ही एलडीए ने पूर्व में अपनी आवासीय व व्यावसायिक योजनाओं के लिए ग्राम समाज की अधिग्रहीत जमीनों की कीमत सरकारी कोष में ही जमा करने का निर्णय लिया था। इसे लेकर नगर निगम व एलडीए के बीच विवाद इस कदर बढ़ा कि प्रमुख सचिव आवास को अपने यहां बैठक बुलानी पड़ी थी, जो बेनतीजा रही थी।
लखनऊ में आयोजित स्मार्ट सिटी कार्यशाला में प्रधानमंत्री ने लखनऊ के साथ ही गाजियाबाद नगर निगम की तरफ से एक- एक अरब के बांड जारी करने की घोषणा की थी। इस घोषणा के बाद ही शासन से लेकर नगर निगम के अधिकारी तैयारियों में जुट गए हैं और लगातार बैठक हो रही है। नगर निगम ने उनके अधीन वाली जमीनों की कीमत और क्षेत्रफल भी आंक लिया है। उधर,जानकार मनाते हैं कि नगर निगम का जब जमीनों पर कोई हक ही नहीं है तो बांड जारी करने पर जमीनों को अपनी बताकर नगर निगम फंस सकता है। यह बांड भी चयनित कंपनियों के एडवाइजर नगर निगम की हैसियत का आकलन करके ही जारी करने की आगे करने की कार्यवाही करेंगे। बहुमंजिला इमारतें भी फंसी :
औरंगाबाद खालसा में भी नगर निगम आवासीय और व्यवसायिक अपार्टमेंट का निर्माण करा रहा है, लेकिन यह अपार्टमेंट फुस हो गया है। कई बार विज्ञापन देने के बाद भी आवंटन के लिए लोगों का रुझान नहीं बढ़ा। दरअसल, इस अपार्टमेंट के पास पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं है और रास्ते का मामला अदालत में लंबित हैं। - कैसरबाग में चकबस्त कोठी परिसर में भी निर्माणाधीन अपार्टमेंट का निर्माण भी धनाभाव में बंद हो गया।
- नगर निगम पर ही करीब ढ़ाई अरब से अधिक की देनदारी है।
नए शासनादेश में संशोधन किए जाने की उम्मीद:
' वर्ष 2001 में जारी शासनादेश के तहत नगर निगम को ही जमीन की कीमत मिलनी चाहिए। पुराना शासनादेश खत्म किए बिना ही नया शासनादेश जारी हो गया है। उन्हें उम्मीद है कि नए शासनादेश में संशोधन किया जाएगा और प्रमुख सचिव आवास से उनकी वार्ता हो चुकी है। वैसे भी नगर निगम ग्राम समाज की जमीनों का प्रबंधन देखता है और वह उसका उपयोग बांड में कर सकता है।