मुलायम - अखिलेश के मिलन से हाशिये पर शिवपाल, शरणागत हों या करें बगावत
पूरे विवाद को वह हमेशा मुलायम के सम्मान की लड़ाई के रूप में प्रस्तुत करते रहे और एकाध अवसरों को छोड़ दिया जाए तो अखिलेश पर सीधा हमला बोलने से भी परहेज करते रहे।
लखनऊ [हरिशंकर मिश्र]। समाजवादी पार्टी पर पूरी तरह बेटे अखिलेश यादव का आधिपत्य हो जाने के बाद पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने जिस तरह छोटे भाई के संदर्भ में चुप्पी साध ली है, उसने शिवपाल की भविष्य की सियासत पर सवाल खड़े कर दिए हैं। हालांकि शिवपाल ने अभी मौन को ही अपना हथियार बना रखा है लेकिन, इसमें कोई दो राय नहीं कि अब उनके सामने दो ही रास्ते बचे हैं। या तो वह पार्टी में अखिलेश की सत्ता के शरणागत हों या फिर बगावत की राह पकड़ें। इनमें कौन सी राह वह पकड़ेंगे, आने वाले दिनों में नजर आएगा।
पार्टी को लेकर परिवार में हुई कलह में शिवपाल हमेशा बड़े भाई मुलायम के साथ लक्ष्मण की तरह नजर आए हैं। पिछले साल सितंबर महीने में शुरू हुए इस विवाद में मुलायम की अंगुली पकड़कर ही उन्होंने भतीजे अखिलेश के सभी हमलों का सामना किया। यहां तक कि अक्टूबर 2016 में जब अखिलेश ने उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त किया तो भी उन्होंने कोई आक्रामक प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की।
पूरे विवाद को वह हमेशा मुलायम के सम्मान की लड़ाई के रूप में प्रस्तुत करते रहे और एकाध अवसरों को छोड़ दिया जाए तो अखिलेश पर सीधा हमला बोलने से भी परहेज करते रहे। उनकी सारी उम्मीदें मुलायम पर टिकी थीं और उनके सहारे ही उन्होंने अलग मोर्चा के गठन की तैयारी भी कर ली थी।
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लेकिन गत 25 सितंबर को जब मुलायम ने पलटी मारी और प्रेस कांफ्रेस बुलाने के बाद भी मोर्चा के गठन की घोषणा नहीं की तो यह तय हो गया कि घुटना पेट की ओर ही मुडऩे वाला है। अब शिवपाल अपनी उस पार्टी में ही पूरी तरह अलग-थलग थे, जिस पर कभी उनका सिक्का चला करता था। फिर भी एक उम्मीद बरकरार थी कि शायद पांच अक्टूबर को राष्ट्रीय सम्मेलन में उनका सम्मान बनाए रखने का कोई रास्ता निकाल लिया जाए। इस उम्मीद की वजह भी मुलायम ही थे जो शिवपाल और अखिलेश दोनों से ही अलग-अलग मुलाकात कर इस तरह का संकेत दे चुके थे।
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लेकिन, राष्ट्रीय सम्मेलन में मुलायम पहुंचे ही नहीं और पूरी तरह अखिलेश का समाजवादी पार्टी पर साम्राज्य स्थापित हो गया। इसके बाद से शिवपाल हाशिये पर हैैं। हालांकि मुलायम ने लोहिया ट्रस्ट की जिम्मेदारी उन्हें देकर उनके घावों पर मरहम लगाने की कोशिश की है लेकिन सियासी भविष्य पर सवालिया निशान अभी भी लगे हुए हैैं। इसके लिए दो ही रास्ते हैैं।
या तो वह अखिलेश की शरण लें या फिर अपनी ताकत दिखाएं। शिवपाल के करीबियों के अनुसार वह आसानी से हार मानने वाले नेता नहीं हैैं। निकाय चुनाव में वह अपने लोगों को चुनाव जिताने के लिए पूरी तरह सक्रिय हैैं और आने वाले दिनों में कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं।
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2019 से पहले कर सकते हैं कोई धमाका
शिवपाल को जानने वाले उनकी चुप्पी को तूफान से पहले की खामोशी की संज्ञा देते हैं और 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले वह कोई धमाका कर दें तो कोई आश्चर्य नहीं।
बीते विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा के कई नेताओं से उनकी नजदीकी चर्चा का विषय रही थी और उन्होंने राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को खुलेआम मत भी दिया था। वह अपने समर्थकों के लगातार संपर्क में हैं और उनकी सलाह पर ही अलग मोर्चा बनाने की तैयारी की थी। माना जा रहा है कि वह 2019 से पहले कोई निर्णायक फैसला करेंगे।