अपनों ने सताया तो गैरों के यहां मिली शरण, अब चहारदीवारी से निकल तय किया खुले आसमान का सफर
दर्द प्रबंधन से होटल मैनेजमेंट की यात्रा पर निकलीं पीड़ित युवतियां। राजकीय महिला शरणालय की चार युवतियों ने लिखी ज्ञान की नई इबारत।
लखनऊ[जितेद्र उपाध्याय]। जब अपने घर की दहलीज पार की थी, तो मुझे बिलकुल भी एहसास नहीं था कि मैं एक दिन इस मुकाम पर पहुंच सकूंगी। राजकीय महिला शरणालय में रहकर प्रथम श्रेणी में हाई स्कूल करने पर प्रदेश सरकार की ओर से मुझे 51 हजार रुपए का पुरस्कार राशि मिली। इसके बाद मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। महिला कल्याण विभाग ने मुझे हवाई जहाज से बेंग्लुरू होटल मैनेजमेंट के लिए भेजा है। अब मैं जीवन के दर्दसे बाहर निकल कर होटल प्रबंधन करूंगी।
यह कहानी अकेले एक युवती की नहीं ऐसी कई युवतियों की है जो अपने परिवार व रिश्तेदारों की प्रताड़ना से तंग आकर घर से भागने पर मजबूर हुई। फिर शरणालय में रहकर उन्होंने खुले आसमान में उड़ने का सफर तय किया। आज शरणालय में रहने वाली ऐसी ही चार पीड़ित युवतियों को होटल मैनेजमेंट के लिए बेंग्लुरू भेजा गया है। इनमें से एक युवती ने अपनी छलकती आंखों के साथ दैनिक जागरण से अपनी दास्ता बयां की, जो आपको बता रहा है। पिता के मन में मुझे लेकर था खोट:
युवती ने बताया कि जब मैं पैदा हुई तो मेरे माता पिता बहुत खुश हुए थे। मिठाईयां तो नहीं बांटी थी, लेकिन रिश्तेदारों से खुशी का इजहार जरूर किया था। मां से ज्यादा मैं अपने पिता की लाडली थी। मां जब मेरी दो चोटियां बांधती थी, तो पिता मां से कहते थे कि मेरी बेटी को देहाती बनाना चाहती हो। हंसते-हंसते मैं कब 14 साल की हो गई पता ही नहीं चला। मेरे बढ़ने के साथ ही मुझे इसका एहसास नहीं था कि जिस पिता कि मैं लाडली बिटिया थी, उनके मन में खोट थी। वह मेरे ऊपर बुरी नजर रखते है। आए दिन भला बुरा कहना, मुझे प्रताड़ित करना। फिर एक दिन तो पिता ने हैवानियत की सारी हदें ही पार कर दी। जैसे तैसे खुद को बचाकर मुझे अपने ही घर से भागना पड़ा। इसके बाद भी मुझे चैन नहीं मिला।
शरणालय में मिली एक बेहतर जिंदगी :
पिता ने थाने में मेरी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस ने मेरी तलाश कर मुझे कोर्ट में पेश किया। बाद में कोर्ट के आदेश पर मुझे प्राग नारायण रोड स्थित राजकीय महिला शरणालय में शरण मिली। यहां मैं अपने घर से दूर एक बेहतर जिंदगी गुजार सकती थी। शरणालय की अधीक्षिका ने मुझे बहुत सपोर्ट किया। जो प्यार मुझे घर से नहीं मिला वह मुझे शरणालय आकर मिला। अधीक्षिका ने मेरी काउंसिलिंग की। समय के साथ सबकुछ बेहतर होने लगा। यहां लोगों के मिल रहे भरपूर प्यार ने मुझे हौसला दिया। इसी का नतीजा था कि मैंने प्रथम श्रेणी में हाईस्कूल की परीक्षा पास की। इसको लेकर सरकार की ओर से मुझे 51 हजार रुपए का पुरस्कार भी मिला। मैं अब चहारदिवारी से निकलकर आसमान के सफर पर निकल चुकी हूं। बदलेगा समय, संवरेगा भविष्य :
कहते हैं प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती, बस सही दिशा देने की जरूरत है। राजकीय महिला शरणालय में ऐसी युवतियों को शिक्षा के साथ ही तकनीकी ज्ञान देकर अपने पैरों पर खड़ा करने की मुहिम चल रही है। बदलते समय के अनुसार भविष्य को संवारने की हर कोशिश यहां की जाती है। सिलाई कढ़ाई से लेकर कंप्यूटर तक की शिक्षा युवतियों को देकर यहां उन्हें सशक्त बनाया जाता है। वर्तमान में 74 महिलाएं व युवतियां यहां अपने जीवन को संवार रही हैं।
क्या कहती हैं लखनऊ शरणालय अधीक्षिका का?
लखनऊ राजकीय शरणालय अधीक्षिका आरती सिंह का कहना है कि मेरे लिए हर युवती खास होती है। सबकी अपनी मजबूरी होती है, इन सबके बीच उन्हें बेहतर जिंदगी देने का प्रयास यहां किया जाता है। महिला कल्याण मंत्री डॉ. रीता बहुगुणा जोशी के प्रयास से पहली बार चार युवतियों को बेंगलुरु होटल मैनेजमेंट के लिए भेजा गया है। यहां भी तकनीकी कोर्स के माध्यम से युवतियों के भविष्य को संवारा जा रहा है।