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Mobile के बिना रात को न आए बच्चे को नींद तो है कुछ गड़बड़, इन बातों को न करें नजरअंदाज Lucknow News

अलग दुनिया में रहकर अपनी दिल की बात नहीं बता पा रहे बच्चे। अवसाद और उनकी टेंशन को न भांपने से हो रही अनहोनी।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Sat, 28 Sep 2019 10:30 AM (IST)Updated: Sat, 28 Sep 2019 10:39 AM (IST)
Mobile के बिना रात को न आए बच्चे को नींद तो है कुछ गड़बड़, इन बातों को न करें नजरअंदाज Lucknow News
Mobile के बिना रात को न आए बच्चे को नींद तो है कुछ गड़बड़, इन बातों को न करें नजरअंदाज Lucknow News

लखनऊ, जेएनएन। स्कूल से आने के बाद यदि बच्चा खेलने नहीं जा रहा। वह गुमसुम एक तरफ मोबाइल फोन पर लगा हो। मोबाइल फोन के बिना रात में नींद तक न आती हो या फिर बच्चा मोबाइल के लिए जिद्द करता हो तो यह आपके लिए शुभ संकेत नहीं हैं। बच्चों की मानसिक क्षमता पर मोबाइल फोन असर डाल रहा है। 

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एक तरफ जहां उनकी याद करने की क्षमता कम हो रही है। वहीं, दूसरी ओर पढ़ाई से ध्यान बंटने के कारण अभिभावकों और शिक्षक की डांट का सामना भी करना पड़ रहा है। यह डांट इन बच्चों के जीवन पर भारी भी पड़ती है। जैसा कि गुरुवार को राजधानी लखनऊ के लामार्टीनियर गल्र्स कॉलेज की कक्षा आठ की छात्रा शिबानी राय चौधरी के साथ हुआ। 

बच्चों में तेजी से बढ़ रही इस लत को देखते हुए ही पांच महीने पहले केजीएमयू के मनोचिकित्सा विभाग में 'प्रॉब्लोमेटिक यूज ऑफ टेक्नोलॉजी क्लीनिक' की स्थापना की गई। इस क्लीनिक की ओपीडी में रोजाना पांच साल से लेकर 18 साल तक के लगभग पांच से छह केस मोबाइल एडिक्शन के आ रहे हैं। यह एडिक्शन न केवल मोबाइल फोन से हो रहा है, स्मार्ट वॉच, टैब, लैपटॉप भी इसका बड़ा कारण है। 

इनमें खो रहे हैं बच्चे 

छोटे बच्चे अधिकतर यूट्यूब पर और बड़े बच्चे ऑनलाइन गेम में अपना समय बिताते हैं। बच्चे कंपनियों के बनाए कभी खत्म न होने वाले खेल में फंस जाते हैं। 

फ्रंटल लोब पर असर

वैज्ञानिक रिसर्च के मुताबिक, मस्तिष्क के सही गलत का निर्णय लेने में मदद करने वाले फ्रंटल लोब पर असर पड़ता है। यह बच्चों में सही व गलत का निर्णय लेने की क्षमता को कमजोर बना रहा है। उनकी सोच, विचार व भावनाओं को प्रभावित करता है। इसीलिए अक्सर बच्चे एग्रेसिव होकर पेरेंट्स पर हमला तक कर देते हैं।

मामूली बात पर जान से खेल रहे नौजवान

इंदिरानगर में 14 साल के छात्र आदित्य ने ब्लू व्हेल गेम के कारण नौ सितंबर 2017 को फांसी लगाकर जान दे दी। इसके बाद पुलिस को स्कूलों में जाकर बच्चों की काउंसिलिंग तक करनी पड़ी। जबकि इसी साल दो मार्च को मडिय़ांव के गौरभीट इलाके में इंटर की छात्रा प्रियंका ने फांसी लगा ली। 

दरअसल, मामूली बात भी बच्चों को विचलित कर रही हैं। अपना कॅरियर संवारने की जगह छात्र और छात्राएं मौत को गला लगा ले रहे हैं। पिछले साल 23 फरवरी को केकेसी कॉलेज के वॉशरूम में बीएससी तृतीय वर्ष की छात्रा ने आत्महत्या का प्रयास किया था। जबकि पिछले साल ही बीडीएस के छात्र ने चिनहट में अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। इसी तरह 12 अप्रैल 2019 को चौक में नर्सिंग स्टूडेंट सुधीर कुमार पाल ने आत्महत्या कर ली। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े के मुताबिक, वर्ष 2015 में देश में कुल 8934 छात्र और छात्राओं ने आत्महत्या की थी। इसमें 18 साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या 1360 है। जबकि वर्ष 2014 में यह संख्या 8068 थी। 

इन लक्षणों को न करें नजरअंदाज

  • याददाश्त कमजोर होना
  • पढऩे-लिखने या एकाग्रता वाले कामों में ध्यान न लगा पाना
  • लीड लगाकर मोबाइल पर गाने सुनना या गेम खेलने से कानों में सीटी जैसी आवाज होना
  • जरा-जरा सी बात पर एग्रेसिव हो जाना, आपस में मारपीट, झगड़ करना
  • एडिक्ट बच्चे में मोबाइल व इंटरनेट इस्तेमाल करने की निरंतर इच्छा का होना
  • नशा या शराब जैसी लत की तरह मोबाइल न मिलने पर कष्ट महसूस होना, बेचैन रहना
  • यदि बच्चा मोबाइल या इंटरनेट एडिक्ट है तो काउंसिलिंग के जरिये इलाज हो जाता है, मगर गंभीर अवस्था में दवाएं भी चलाई जाती हैं
  • दुखी रहना या चिड़चिड़ापन होना
  • सिरदर्द, आंख का कमजोर होना
  • 12 से 14 वर्ष तक के बच्चों में नर्व, स्पाइन और मसल्स की समस्याएं होना
  • स्पॉन्डिलाइटिस, लंबर स्पॉन्डिलाइटिस, वजन बढऩा, ऊर्जा की कमी, थकान होना जैसी दिक्कतों का बढऩा।

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