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यूपी में NGT के आदेश के बावजूद व्‍यर्थ बहाया जा रहा STP का पानी, उपचारित पानी का दोबारा उपयोग बड़ी चुनौती

प्रदेश में हर रोज एसटीपी से 225 करोड़ लीटर उपचारित जल उत्पादित हो रहा है। जाहिर है कि 80 फीसद शोधित पानी शोधन के बाद यूं ही नदियों में बहाया जा रहा है जो एनजीटी के आदेशों का सीधा उल्लंघन है।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 25 Jan 2021 12:17 PM (IST)Updated: Mon, 25 Jan 2021 12:17 PM (IST)
यूपी में NGT के आदेश के बावजूद व्‍यर्थ बहाया जा रहा STP का पानी, उपचारित पानी का दोबारा उपयोग बड़ी चुनौती
अरबों की लागत से शोधित पानी के इस्तेमाल की कोई योजना नहीं।

लखनऊ, [रूमा सिन्हा]। सूबे में नदियों को प्रदूषण मुक्त करने की योजना के तहत सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) से निकलने वाला करोड़ों लीटर उपचारित पानी बगैर इस्तेमाल के व्यर्थ बहाया जा रहा है। एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल) ने एसटीपी से उपचारित पानी के इस्तेमाल के आदेश दिए हैं। समय सीमा जून 2020 तय की गई थी। हालात यह है कि उपचारित पानी का बमुश्किल 20 फीसद ही पुन: उपयोग किया जा पा रहा है। मकसद था कि पेयजल आपूर्ति को छोड़कर उद्योगों, कृषि, सड़कों की सफाई, पार्कों-पौधों की सि‍ंचाई, निर्माण कार्य सहित अन्य उपयोगों में करोड़ों रुपये की लागत से उपचारित किए गए पानी का पुन: इस्तेमाल किया जा सके। इन कार्यों में पेयजलापूर्ति के लिए निकाले जा रहे स्वच्छ पानी का इस्तेमाल किया जा रहा है।

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प्रदेश में हर रोज एसटीपी से 225 करोड़ लीटर उपचारित जल उत्पादित हो रहा है। जाहिर है कि 80 फीसद शोधित पानी शोधन के बाद यूं ही नदियों में बहाया जा रहा है, जो एनजीटी के आदेशों का सीधा उल्लंघन है। दरअसल, विभिन्न कार्यों में जिस प्रकार पानी की मांग लगातार बढ़ रही है, उसको देखते हुए यह आवश्यक हो गया है कि जलापूर्ति की चुनौतियों से निपटने के लिए अन्य विकल्पों पर ध्यान दिया जाए। सीवेज उपचार से निकलने वाला वेस्ट वाटर पानी के संकट से उबरने में एक प्रमुख जरिया बन सकता है। इजराइल में तो इसके लिए बकायदा राष्ट्रीय वेस्ट वाटर इंफ्रास्ट्रक्चर स्थापित किया गया है।

प्रदेश की 653 शहरी निकायों में जलापूर्ति के लिए प्रतिदिन 780 करोड़ लीटर की आपूर्ति की जाती है, जिसमें से लगभग 600 करोड़ लीटर केवल भूजल स्रोतों से निकाला जाता है। साफ है कि सीवेज उपचार से प्राप्त जल को यदि उपयोग में लाया जाए तो भूजल और सतही जल पर बढ़ते दबाव को काफी कम किया जा सकता है। शहरों में पेयजल आपूर्ति में भूजल स्रोतों पर बढ़ती निर्भरता के कारण इन शहरों में भूजल स्तर बहुत तेजी से नीचे जा रहा है। साफ है कि यदि भूजल पर बढ़ती निर्भरता कम की जाए तो भूजल स्रोत संकट से उबर सकेंगे।

गंगा सीवेज प्रदूषण को संपदा में बदलने की जरूरत

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार गंगा के किनारे छोटे शहरों से रोजाना 550 करोड़ लीटर सीवेज गंगा में पहुंचता है, जिसमें से लगभग 330 करोड़ सीवेज के शोधन की व्यवस्था की गई है। इसके लिए वर्तमान में 106 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित हैं तथा 56 प्लांट निर्माणाधीन हैं। साफ है कि यदि इन संयंत्रों से भारी मात्रा में निकलने वाले उपचारित पानी को विभिन्न कार्यों में इस्तेमाल कर लिया जाए तो प्रदेश को जल संकट से ही छुटकारा नहीं मिलेगा बल्कि भूजल संकट से भी निजात मिल सकेगी।

एसटीपी से निकले पानी का प्रयोग केवल सि‍ंंचाई के लिए किया जा सकता है क्योंकि भरवारा व दौलतगंज एसटीपी काफी पहले बने हुए थे जिन से उपचारित पानी का बीओडी (बायोक्मेकिल ऑक्सीजन डिमांड) 30 मिलीग्राम प्रति लीटर और टीएसएस (टोटल सस्पेंडेड सॉलिड) 30 के करीब रहता है। ऐसे पानी का प्रयोग केवल ङ्क्षसचाई में किया जा सकता है। ङ्क्षसचाई के लिए इस पानी का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। हैदर कैनाल पर निर्माणाधीन एसटीपी से निकलने वाला उपचारित पानी का बीओडी 10 मिलीग्राम प्रति लीटर होगा। इस पानी का प्रयोग कहीं भी किया जा सकता है।    - आरके अग्रवाल, महाप्रबंधक, गोमती प्रदूषण इकाई,जल निगम 


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