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प्लेटलेट कम होने पर हर बार डेंगू समझने की न करें भूल, चूहे चढ़ा रहे बुखार lucknow news

लेप्टोस्पाइरोसिस बैक्टीरिया की चपेट में आ रहे लोग। मुंबई की बीमारी ने लखनऊ में भी दी दस्‍तक।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 21 Sep 2019 10:34 AM (IST)Updated: Sat, 21 Sep 2019 10:34 AM (IST)
प्लेटलेट कम होने पर हर बार डेंगू समझने की न करें भूल, चूहे चढ़ा रहे बुखार lucknow news
प्लेटलेट कम होने पर हर बार डेंगू समझने की न करें भूल, चूहे चढ़ा रहे बुखार lucknow news

लखनऊ, जेएनएन। मुंबई की बीमारी ने लखनऊ में दस्तक दे दी है। घरों में उछल-कूद कर चूहे जानलेवा साबित हो रहे हैं। उनकी पेशाब (यूरिन) से व्यक्ति में लेप्टोस्पाइरोसिस बैक्टीरिया फैल रहा है। केजीएमयू में अब तक 12 मरीज आ चुके हैं। इनमें दो की मौत हो गई है। यह खुलासा डॉ. डी हिमांशु ने कांफ्रेंस में देशभर के आए डॉक्टरों के समक्ष किया।

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केजीएमयू के कलाम सेंटर में शुक्रवार को तीन दिवसीय एपीआइ-यूपीकॉन शुरू हुई। इस दौरान डॉ. डी हिमांशु ने कहा कि घरों में चूहे खतरनाक हैं। यह हर वक्त बिस्तर, किचन, फर्श व नाली में उछल-कूद करते रहते हैं। वहीं खाने-पीने की वस्तुएं व पानी पर यूरिन भी कर देते हैं। इनके यूरिन में मौजूद लेप्टो स्पाइरोसिस बैक्टीरिया लोगों को चपेट में ले रहा है। उन्होंने बताया कि जुलाई से सितंबर तक 12 लोगों में बीमारी की पुष्टि हुई। इस दौरान दो लोगों की इलाज के दरम्यान मौत भी हो गई।

बारिश में बीमारी का खतरा अधिक

डॉ. डी हिमांशु के मुताबिक, बारिश में बीमारी का खतरा अधिक बढ़ जाता है। खासकर बाढ़ वाले इलाकों में बीमारी जानलेवा बन जाती है। कारण, जलभराव से चूहे बिल से बाहर आते हैं। वह पानी में यूरिन करते हैं। ऐसे में बीमारी का प्रकोप व्यापक हो जाता है। हाल में मुंबई में बाढ़ आने से कई मरीज बीमारी की चपेट में आए।

बुखार के साथ आंख लाल हों तो हो जाएं सतर्क

डॉ. डी हिमांशु के मुताबिक लेप्टोस्पाइरोसिस की चपेट में आने से तेज बुखार आता है। इसमें प्लेटलेट भी कम होते हैं। ब्लीडिंग भी होती है। मगर, लोग इसे डेंगू समझते रहते हैं। यही उनके लिए जानलेवा बन जाता है। ऐसे में तेज बुखार के साथ आंखें लाल होने पर सतर्क हो जाएं। वह एंटीबॉडी व पीसीआर टेस्ट कराएं। 

किडनी-गुर्दा कर देता है खराब

डॉ. डी हिमांशु के मुताबिक, लेप्टो स्पाइरोसिस पहले सात दिन में होने पर एंटीबायोटिक से काबू किया जा सकता है। वहीं देर होने पर व्यक्ति के गुर्दे पर इफेक्ट पड़ जाता है। ऐसे में उसकी डायलिसिस करनी पड़ती है। वहीं लिवर में दिक्कत होने पर पीलिया हो जाता है। अधिक ब्लीडिंग से मरीज शॉक में चला जाता है। ऐसे में उसकी जान चली जाती है। 

डॉक्टरों को दिया प्रशिक्षण

पहले दिन कार्यशाला में 200 के करीब फिजीशियन को प्रशिक्षण दिया गया। इसमें केजीएमयू के डॉ. राजीव गर्ग व दिल्ली के डॉ. अजुर्न खन्ना ने नॉन इनवेसिव वेंटिलेटर का प्रशिक्षण दिया। इसमें सांस के रोगियों को वेंटिलेटर सपोर्ट को कम करने के उपाय बताए। पीजीआइ के डॉ. रुपाली खन्ना ने टू-डी ईको का प्रशिक्षण दिया।


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