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    UP News: कैसे मिले मानसिक रोगियों को इलाज? 26 जिलों में डॉक्टर ही नहीं

    Updated: Wed, 20 Aug 2025 09:42 AM (IST)

    उत्तर प्रदेश में मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की भारी कमी है खासकर 26 जिलों में जहाँ एक भी डॉक्टर नहीं है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के प्रयासों के बावजूद आकर्षक वेतन की पेशकश के बावजूद विशेषज्ञ सरकारी सेवा में आने को तैयार नहीं हैं। हर साल 110 विशेषज्ञ निकलने के बावजूद रिक्त पद भरने के लिए सरकार प्रयासरत है और पुन विज्ञापन जारी करने की तैयारी में है।

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    कैसे मिले मानसिक रोगियों को इलाज, 26 जिलों में डॉक्टर ही नहीं

    राज्य ब्यूरो, लखनऊ। राज्य में मानसिक रोगियों के इलाज के लिए पर्याप्त मनोरोग विशेषज्ञ नहीं मिल रहे हैं। प्रदेश में 26 जिले तो ऐसे हैं जहां एक भी डॉक्टर नहीं है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन(एनएचएम) ने संबंधित जिलों के लिए संविदा पर मनोरोग विशेषज्ञ नियुक्त करने की कोशिश की लेकिन सिर्फ एक डॉक्टर ही सरकारी अस्पताल में इलाज करने के लिए आया। यह स्थिति तब है जब एनएचएम डॉक्टरों को मुंहमांगी कीमत देने के लिए तैयार है।

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    सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पूरे देश में मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम की निगरानी करता है। राज्यों में हाईकोर्ट समय-समय पर मानसिक रोगियों के इलाज के संबंध में याचिकाओं की सुनवाई करते हुए दिशा-निर्देश जारी करता है।

    केंद्र में केंद्रीय मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण, प्रदेश स्तर पर राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण इसकी निगरानी का कार्य करता है। इसके नोडल प्रभारी प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य होते हैं। वहीं जिला स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य पुनरावलोकन बोर्ड (एमएचआरबी) जो जिला जज की देखरेख में काम करता है।

    वहीं, स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारी को जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का नोडल अधिकारी होता है। हाईकोर्ट से समय-समय पर दिशा-निर्देश जारी होने के बावजूद प्रदेश में मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के लिए मनोरोग विशेषज्ञ नहीं मिल रहे हैं।

    स्थिति ये है कि मिशन ने मैनपुरी, बलरामपुर, बदायूं, सोनभद्र, संत कबीर नगर, गाजीपुर, हरदोई, हाथरस, जालौन, जौनपुर, मऊ, सिद्धार्थ नगर, सुलतानपुर, ललितपुर, रामपुर, एटा, गोंडा, हमीरपुर, बाराबंकी, संभल, कानपुर देहात, रायबरेली, प्रतापगढ़, मथुरा, फतेहपुर, फिरोजाबाद, फर्रुखाबाद में एक-एक मनोरोग विशेषज्ञ के लिए पद के लिए भर्ती निकाली थी, लेकिन लंबी कवायद के बाद भी सिर्फ रायबरेली के लिए ही मनोरोग विशेषज्ञ मिला है।

    स्थिति ये है कि सरकारी सेवा में आने के लिए मनोरोग विशेषज्ञ तैयार नहीं हैं, जबकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन इनको पांच लाख रुपये प्रतिमाह देने के लिए तैयार है। अब एक बार फिर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन पदों को निकालने की तैयारी कर रहा है, जबकि प्रदेश के मेडिकल कालेजों और चिकित्सा संस्थानों से हर साल 110 मनोरोग विशेषज्ञ निकल रहे हैं। लेकिन सरकारी सेवा में आने के लिए इनमें से अधिकतर तैयार नहीं हैं।

    मनोरोग विशेषज्ञों के रिक्त पदों को भरने के लिए उप्र लोक सेवा आयोग और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन फिर से विज्ञापन निकाल रहा है। कोशिश की जा रही है कि सभी जिलों में एक-एक विशेषज्ञ की तैनाती हो जाए। छोटे जिलों के लिए विशेषज्ञ नहीं मिल रहे हैं। इसके लिए संविदा विशेषज्ञों को अधिकतम भुगतान की व्यवस्था की गई है।

    -डाॅ. अरविंद कुमार श्रीवास्तव, नोडल अधिकारी, जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम