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Memories of World Cup 1983: उल्टा दौड़ कैच लपक कपिल देव ने कर ली दुनिया मुठ्ठी में, ताजा हुई वर्ल्डकप की यादें

कोरोना काल में ठप खेल गतिविधियों के बीच क्रिकेट के दीवानों को याद आया 1983 का विश्व कप फाइनल मैच।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 25 Jun 2020 08:45 AM (IST)Updated: Thu, 25 Jun 2020 01:15 PM (IST)
Memories of World Cup 1983: उल्टा दौड़ कैच लपक कपिल देव ने कर ली दुनिया मुठ्ठी में, ताजा हुई वर्ल्डकप की यादें
Memories of World Cup 1983: उल्टा दौड़ कैच लपक कपिल देव ने कर ली दुनिया मुठ्ठी में, ताजा हुई वर्ल्डकप की यादें

लखनऊ [विकास मिश्र]। कोरोना काल है। लॉकडाउन ने सबकुछ थामा है। अनलॉकन-1 तो हुआ मगर खेल के दिवानों का इंतजार अभी खत्म नहीं हुआ है। खासकर क्रिकेट के शौकीनों का इंतजार लंबा होता जा रहा है। स्टेडियम का शोर गुम है, विराट का बल्ला खामोश है...। मनोरंज के साधन तमाम हैं मगर, टीवी उनके लिए बेमानी बनी है। ऐसे में सिर्फ पुराने और यादगार मैच के रिपीट टेलीकास्ट देखकर टाइमपास चल रहा है। हां, अच्छी बात यह है कि खेल मैदानों पर पसरे सन्नाटे के बीच 25 जून की तारीख आ गई है...। नहीं समझे, हम याद दिलाते हैं। अरे भाई, भारतीय क्रिकेट में कमाल का वह दिन, जिसकी अपेक्षा शायद किसी ने नहीं की थी...। जी, 1983 का वर्ल्डकप फाइनल मैच, जो चल तो इंग्लैंड में रहा था मगर सांसें पूरे देश की रुकी हुई थीं। नवाबी शहर की सड़कों पर भी सन्नाटा पसरा था, टीवी बेहद कम थे। रेडियो एक मात्र सहारा था, जिसके सहारे झुंड के झुंड एक-एक गेंद का हिसाब किताब  जोड़ने में लगे थे। आखिर कैसा था वो यादगर  दिन, क्या महसूस किया, क्या माहौल था..., पहली बार विश्व विजेता बनने के 37 साल पूरे होने पर उस पल को मीलों दूर जीने वालों की जुबानी आप भी सुनिए...। 

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रोंगटे खड़े कर देने वाली रोमांचक कहानी से पहले फ्लैशबैक जान लीजिए। तमाम पूर्वानुमानों को झुठलाते हुए टीम इंडिया क्रिकेट वर्ल्ड कप (1983) के फाइनल में पहुंची, जहां उसका सामना पिछले दो बार के चैंपियन और दिग्गज खिलाडिय़ों से सजी वेस्टइंडीज से था। 25 जून, वेस्टइंडीज के घातक गेंदबाजों के सामने बौनी मानी जाने वाली टीम इंडिया के सामने परीक्षा देने की तारीख थी। कप्तान कपिल देव की अगुआई में टीम उतरी। पहले खेलते हुए तब 60 ओवर वाले मैच में हमारी पूरी टीम 54.4 ओवर ही खेल पाई और महज 183 रन पर ढेर हो गई। हालांकि, भारत का जवाबी हमला भी बेहद तगड़ा था। पूरी कैरेबियाई टीम को उन्होंने 52 ओवर में 140 रन पर समेट दिया। इसी के साथ पहली बार कब्जा लिया क्रिकेट वर्ल्ड कप। इस मैच के हीरो बने थे अपने पा-जी यानी कपिलदेव। जबकि गेंदबाजी में मोहिंदर अमरनाथ और मदनलाल ने कमाल कर दिखाया था। 

कपिल के कैच ने बाजी पलट दी : नीरू कपूर

सच कहूं तो फाइनल देखने की कोई तैयारी नहीं थी। मैैं उस दौरान आगरा में था। टीवी भी मेरे पास नहीं था। एक मित्र के घर रेडियो पर मैच की कमेंट्री सुनी। इसी दौरान पता चला कि भारतीय कप्तान कपिल ने लगभग 80 गज उलटा दौड़कर रिचर्ड्स का बेहतरीन कैच लपक लिया है। मेरे ख्याल से यह मैच का टर्निंग प्वाइंट था। उस विश्व कप में जिंब्बावे के खिलाफ कपिल की पारी हमेशा के लिए सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गई। आप उस पल को महसूस कर सकते हैैं, जब विश्व कप जैसे क्रिकेट के महाकुंभ का सेमीफाइनल हो और किसी टीम के चोटी के पांच बल्लेबाज सिर्फ 17 रन पर पवेलियन लौट गए हों। इस दौरान कपिल ने एक कप्तान की तरह न सिर्फ आगे बढ़कर जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली बल्कि 175 रनों की तूफानी पारी खेलकर भारत की जीत की नींव रख दी। इस मैच के बाद हम लोगों की उम्मीद बढ़ गई कि विश्व विजेता बनेगा भारत। हालांकि फाइनल में सामना  वेस्टइंडीज से था जिसमें एक से बढ़कर एक धुरंधर थे। यह मैच शायद अब तक विश्व कप का सबसे यादगार मैच रहा। यहां की जीत के बाद देश में ही नहीं पूरी दुनिया में भारतीय क्रिकेट की तस्वीर बदल गई। लखनऊ की बात करें तो यहां पर हमेशा से ही हॉकी का बोलबाला रहा, लेकिन टीम इंडिया के चैैंपियन बनने के बाद क्रिकेट के दीवानों की बाढ़ आ गई। 

टीम कंबीनेशन की बदौलत बना यादगार पल: यूसुफ अली

विश्व कप में भारत एक अंडरडॉग टीम के रूप में उतरा थी। किसी को विश्वास नहीं था कपिल की अगुवाई वाली टीम इंडिया विश्व विजेता बनेगी। मेरे विचार से टीम कंबीनेशन और अनुशासन ने भारत को चैैंपियन बनाया। एक खिलाड़ी होने के नाते यह कह सकता हूं कि जिंब्बावे के खिलाफ ऐतिहासिक जीत ने भारतीय क्रिकेट का नक्शा ही बदल दिया और इसके बाद दुनियाभर भारतीय क्रिकेट का दबदबा बढ़ गया। हो भी क्यों न। सेमीफाइनल और फाइनल मुकाबलों में टीम इंडिया ने जिस तरह का प्रदर्शन किया उसे एक प्रशंसक के तौर पर मैैं आज तक नहीं भूल पाया हूं। अभी भी मैैं सोचता हूं कि अगर मदन लाल की उस गेंद पर कपिल ने चमत्कारिक कैच नहीं पकड़ा होता तो शायद भारत को जश्न मनाने का मौका नहीं मिलता। हालांकि, फाइनल में मोहिंदर अमरनाथ और मदन लाल ने लाजवाब गेंदबाजी की। तभी हम छोटे लक्ष्य को भी बचाने में सफल रहे। तब और अब के क्रिकेट में बहुत बदलाव आए हैं। अब के बल्लेबाजों को उस दौरान जैसे खतरनाक गेंदबाजों का सामना नहीं करना पड़ता है।

स्विंग ने कैरेबियाई बल्लेबाजों को चौंकाया: अशोक बांबी

लीग दौर में जब भारत ने विंडीज को हराया तो सभी आश्चर्यचकित रह गए। और यह जीत इसलिए में खास थी कि कैरेबियाई टीम इस विश्व कप से पहले दो बार की चैैंपियन थी। इसके बाद जिंब्बावे के खिलाफ कपिल की अगुवाई में मिली जीत ने भारतीय टीम में विश्वास सातवें आसमान तक पहुंचा दिया। ये कपिल का ही भरोसा था कि फाइनल में छोटे लक्ष्य के जवाब में भारतीय गेंदबाजों ने अपनी बेहतरीन स्विंग से कैरेबियाई बल्लेबाजों को चौंका दिया। भारतीय खिलाडिय़ों के मजबूत इरादे और बेजोड़ प्रदर्शन ने उन्हें जीत की दहलीज तक पहुंचाया। इस जीत के बाद पूरे देश में क्रिकेट का परिदृश्य ही बदल गया। इसके पहले भारत में हॉकी का बोलबाला था। टीम इंडिया का मुंबई में यागदार स्वागत किया गया। इसी दौरान मुझे महसूस हो गया कि एक दिन क्रिकेट भारत की पहचान बनेगा और परिणाम आपके सामने है। विश्व कप

वो रोमांच और पा-जी का कमाल 


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