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राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः बेहतर इलाज के लिए छोटे अस्पताल कम करें बड़े अस्पतालों का बोझ

इस मौके पर शहर के बड़े सरकारी-गैर सरकारी अस्पतालों से आए वरिष्ठ चिकित्सकों ने जहां अपनी चुनौतियां बताईं, वहीं आम लोगों ने भी स्वास्थ्य सेवाएं मिलने में आ रहीं बाधाओं का जिक्र किया।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Sun, 15 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Sun, 15 Jul 2018 06:00 AM (IST)
राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः बेहतर इलाज के लिए छोटे अस्पताल कम करें बड़े अस्पतालों का बोझ

सेहत ऐसी नेमत है, जिससे न केवल व्यक्ति, समाज बल्कि पूरे शहर का विकास होता है। सुदृढ़ चिकित्सकीय सुविधाओं से ही यह खुशहाली संभव है। यही वजह है कि दैनिक जागरण ने माय सिटी, माय प्राइड कैंपेन के तहत स्वास्थ्य को एक अहम पिलर का दर्जा दिया है। शहरी कैसे सेहतमंद हों, उन्हें अस्पतालों में कैसे सम्मानजनक बेहतर इलाज मिले, चिकित्सकों के साथ कैसे उनके रिश्ते बेहतर हों, क्या कमी है और कैसे दूर होगी? जन समान्य, शासन, प्रशासन को क्या करना होगा सहयोग? ऐसे तमाम महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा के लिए शनिवार को जागरण कार्यालय में राउंड टेबल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया।

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इस मौके पर शहर के बड़े सरकारी-गैर सरकारी अस्पतालों से आए वरिष्ठ चिकित्सकों ने जहां अपनी चुनौतियां बताईं, वहीं आम लोगों ने भी स्वास्थ्य सेवाएं मिलने में आ रहीं बाधाओं का जिक्र किया। दैनिक जागरण के स्थानीय संपादक अभिजित मिश्र ने विशेषज्ञों का स्वागत किया। साथ ही कैंपेन में स्वास्थ्य क्षेत्र को शामिल करने का उद्देश्य बताया। उन्होंने कहा कि कोई भी अभियान तभी सफल हो सकता है, जब उसमें जनसमुदाय की भागीदारी हो। कोई शहर तभी तरक्की कर सकता है, जब उसके बाशिंदे स्वस्थ हों।

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कई घंटे चली इस सार्थक चर्चा में विशेषज्ञों ने बेहतर स्वास्थ्य के लिए सभी के सहयोग को जरूरी बताया। उन्होंने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और जिला अस्पतालों को अपग्रेड करने पर जोर दिया। पीजीआई, केजीएमयू और लोहिया संस्थान जैसे केंद्रों में चिकित्सकीय अनुसंधान पर भी फोकस करने के लिए कहा, ताकि चिकित्सा क्षेत्र की नवीनतम तकनीकों का इस्तेमाल इलाज में किया जा सके।

विशेषज्ञों ने स्वास्थ्य सेवा की प्राइमरी, सेकेंडरी और टर्शियरी केयर को एक कड़ी के रूप में काम करने पर बल दिया। मरीज और डॉक्टर के बीच भरोसा पैदा करने की जरूरत बताई। साथ ही डॉक्टरों की समस्याओं को समझने और उनका निदान करने के लिए भी कहा। कांफ्रेंस में दैनिक जागरण लखनऊ के महाप्रबंधक जेके द्विवेदी भी मौजूद रहे और संचालन रेडियो सिटी के आरजे मयंक ने किया।

विचार मंथनः डॉक्टर-मरीज में बढ़े विश्वास
केजीएमयू के पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में डॉक्टर और मरीज के बीच विश्वास में कमी आई है। इससे डॉक्टर रिस्क लेने से घबराता है और मरीज को हायर सेंटर रेफर कर देता है। ऐसे में सिस्टम चरमरा रहा है। जरूरी है कि मरीज और डॉक्टर के बीच विश्वास बहाल करने की कोशिशें हों।

हर व्यक्ति का हो हेल्थ बीमा
बलरामपुर अस्पताल के निदेशक डॉ. राजीव लोचन ने कहा कि हर व्यक्ति का हेल्थ बीमा हो, जिससे इलाज के दौरान उसे आर्थिक संकट न हो। ज्यादातर डॉक्टर-मरीज के बीच विवाद की जड़ इलाज पर आया खर्च होता है। हेल्थ बीमा से मरीजों को बेहतर इलाज सुनिश्चित किया जा सकता है। जरूरत इस बात की भी है कि इमरजेंसी सेवाओं को अपग्रेड किया जाए।

लावारिस मरीजों के लिए हों सेंटर
लोहिया अस्पताल के निदेशक डॉ.डीएस नेगी ने लावारिस व बेसहारा बुजुर्गों के लिए केयर सेंटर बनाए जाने की जरूरत बतायी। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों का अस्पताल में इलाज तो हो जाता है, लेकिन इलाज के बाद उन्हें फिर सड़क पर भटकना पड़ता है। साथ ही बेहतर स्वास्थ्य के लिए इलेक्ट्रिक व सीएनजी वाहनों के साथ ही साफ-सफाई और पौधरोपण को बढ़ावा देने की जरूरत है।

मेडिकल में खत्म हो वीआईपी कल्चर
सिविल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आशुतोष दुबे ने कहा कि पहले मेडिकल कॉलेज कम थे। स्थानीय स्तर पर ही डॉक्टर बड़ी बीमारियों का इलाज कर देते थे। अब वीआईपी कल्चर हावी है। ऐसे में डॉक्टर मरीज को हाथ लगाने से डर रहे हैं। नतीजतन सुपर स्पेशियलिटी डॉक्टरों के पास मरीज रेफर किए जा रहे हैं। दौड़-भाग के साथ उन्हें सामान्य बीमारियों के इलाज में भी अधिक धन खर्च करना पड़ रहा है। उन्होंने मरीज व डॉक्टरों के बीच बेहतर संबंध बनाए जाने पर भी जोर दिया।

टेक्नोलॉजी का हो इस्तेमाल
लोहिया संस्थान के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. सुब्रत चंद्रा ने कहा कि जब हर चीज की तुलना विदेशों से की जाती है तो हम उनकी तरह टेक्नोलॉजी को फॉलो क्यों नहीं कर रहे हैं। चिकित्सा क्षेत्र में बदलाव के लिए मल्टीडायमेंशनल सोच जरूरी है। टेली मेडिसिन को बढ़ावा दिया जाए। वहीं हायर सेंटर पर उसी मरीज को लिया जाए जो स्थानीय अस्पताल से रेफर होकर आया हो। इस नियम का कड़ाई से अनुपालन हो।

आईसीयू सेवाओं का हो विस्तार
केजीएमयू में क्रिटिकल केयर के एक्सपर्ट डॉ.वेद प्रकाश ने कहा कि क्रिटिकल केयर सेवाओं में डिमांड और सप्लाई का बड़ा अंतर है। स्थिति यह है कि 200 बेड के अस्पताल के मुकाबले दस बेड वेंटीलेटर के रखने वाला अधिक कमाई कर रहा है। ऐसे में परिवार इलाज के बाद पैसे से कंगाल हो जाता है। सरकारी अस्पतालों में आइसीयू यूनिट खुले और इसके संचालन के लिए हायर सेंटर से स्टाफ का प्रशिक्षण कराया जाए।

पीएचसी को करेंगे अपग्रेड
सीएमओ डॉ. नरेंद्र अग्रवाल ने बताया कि जिला अस्पतालों का बोझ कम करने के लिए पीएचसी को अपग्रेड कर वेलनेस सेंटर के रूप में विकसित किया जा रहा है। सामान्य बीमारियों के साथ-साथ प्रसव की भी सुविधा मुहैया कराने की योजना है। जनसमुदाय से भी अपेक्षा है कि छोटी-छोटी बात पर टकराव न कर डॉक्टरों को सहयोग करें, जिससे वह बिना किसी भय के बेहतर सेवाएं दे सकें।

ऐसे बनेगी बात...

बीमारियों के बचाव पर फोकस करना होगा। लोगों को आसपास की जड़ी-बूटियों का ज्ञान हो, ताकि बुखार-जुकाम जैसी सामान्य बीमारियों को घरेलू नुस्खों से ठीक कर सकें। ऐसे में अस्पतालों की ओपीडी में भीड़ कम होगी।
- डॉ. एसके पांडेय, आयुर्वेद चिकित्सक

पान-गुटखा, तंबाकू बीमारी के बड़े कारक हैं। इससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां हो रही हैं। सरकार इन्हें बैन नहीं कर सकती तो कम से कम अस्पतालों व स्कूलों के पास होने वाली बिक्री तो रोक दे। इससे समाज पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
- डॉ. अर्पिता आंनद, डेंटिस्ट

जेनेरिक दवाओं व ब्रांडेड दवाओं की एमआरपी समान है। यह जनता के साथ धोखा है। जेनेरिक दवाओं की दरें कम कर एमआरपी छापी जाए। इसके अलावा इंप्लांट व फूड सप्लीमेंट आइटम के मूल्य निर्धारण के लिए विभाग बने।
- अशोक भार्गव, हेल्थ एक्टिविस्ट

स्वास्थ्य में हर चीज इमरजेंसी नहीं है। डॉक्टर कम हैं तो अन्य स्टाफ व हेल्थ प्रोफेशनल को प्रशिक्षित किया जाए। इन्हें अधिक से अधिक काम करने का मौका मिले, ताकि सामान्य मरीजों को इलाज के लिए विशेषज्ञों तक की दौड़ न लगानी पड़े।
- डॉ. संतोष उपाध्याय (पीटी)

लोगों को सामान्य बीमारियों का स्थानीय स्तर पर इलाज मिले। इसके लिए पीएचसी को अपग्रेड किया जाए। वहीं डॉक्टरों का मरीजों के प्रति व्यवहार अच्छा हो, ताकि परेशान व्यक्ति को राहत मिल सके।
- जीके सेठ, समाज सेवी

लोगों को पौष्टिक आहार के प्रति सजग करना होगा। घरेलू खाने में ही सभी तत्व मौजूद होते हैं, मगर इसे साफ-सफाई कर कब और किस समय कितनी मात्रा में लेना चाहिए, इसकी जानकारी दी जाए। इससे कुपोषण की समस्या काफी हल होगी।
- नीलम गुप्ता, डॉयटिशियन

एक सॉफ्टवेयर बनाया जाए, जिसमें हॉस्पिटल में खाली बेडों की जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध हो। इमरजेंसी में आने वाले मरीजों को बिना समय गंवाए संबंधित अस्पतालों में रेफर किया जा सके। वहीं बीपीएल मरीजों के मुफ्त इलाज की प्रक्रिया व शर्तों को सरलीकरण किया जाए।
- सपना उपाध्याय, समाजिक कार्यकर्ता

प्रदूषित वातावरण बीमारियों की प्रमुख वजह है। लोग पौधरोपण पर जोर दें। साथ ही डॉक्टरों का मरीजों के प्रति व्यवहार में सुधार हो। पहले डॉक्टर सामान्य बीमारियों में नब्ज देखकर इलाज कर देते थे, वहीं अब हजारों की जांच लिख देते हैं।
- विनीत सक्सेना, वरिष्ठ नागरिक

डॉक्टर-मरीज दोनों के बीच अविश्वास काफी बढ़ गया है। रिश्तों में बहाली के लिए दोनों को पहल करनी होगी। इसमें डॉक्टर समझदारी दिखाएं। उनके अच्छे तरीके से बोलने से ही मरीज को काफी राहत मिल जाती है।
- एसके श्रीवास्तव, सामाजिक कार्यकर्ता

जनसहभागिता से हों कार्य
- अस्पताल व उसके आसपास साफ-सफाई रखें। घर के आसपास पानी न जमा होने दें, जिससे मलेरिया, डेंगू जैसी बीमारियों से बचा जा सके।
- लोग अपनी फिटनेस पर ध्यान दें। स्वैच्छिक रक्तदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लें।
- छोटी व सामान्य बीमारी का इलाज कराने के लिए सीधे बड़े अस्पताल न भागें। इलाज के लिए अस्पताल पहुंचने पर धैर्य रखें। अनावश्यक टकराव से बचें।

कॉरपोरेट सेक्टर से मिले मदद

- छोटे अस्पतालों को कॉर्पोरेट हाउस गोद लें।
- अस्पतालों में आवश्यकतानुसार बुनियादी जरूरतों जैसे पेयजल, स्ट्रेचर, व्हील चेयर, एंबुलेंस की व्यवस्था में सहयोग करें। तीमारदारों को शुद्ध सस्ता भोजन उपलब्ध कराने के लिए कैंटीन का संचालन करें।


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