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लखनऊः जरूरतमंदों बच्‍चों को निशुल्क दाखिला दिलाने का मिशन, समीना बानो दिला रहीं हक

33 वर्षीय समीना बानो ने वर्ष 2005 में पुणे के गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की पढ़ाई की और वर्ष 2010 में आईआईएम बंगलुरू से मैनेजमेंट की पढ़ाई की।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Tue, 24 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Tue, 24 Jul 2018 06:00 AM (IST)
लखनऊः जरूरतमंदों बच्‍चों को निशुल्क दाखिला दिलाने का मिशन, समीना बानो दिला रहीं हक

जरूरतमंद बच्चों को निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटों पर निशुल्क दाखिला दिलाने का मजबूत हथियार शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) वर्ष 2014 तक कुंद पड़ा हुआ था। सूबे में वर्ष 2011 से लेकर 2014 तक निजी स्कूलों में छह लाख सीटों के मुकाबले केवल 108 बच्चों के ही निशुल्क दाखिले हुए थे। इसी बीच सामाजिक कार्यकर्ता समीना बानो जरूरतमंदों के लिए एक मजबूत सहारा बनकर सामने आईं।

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उन्होंने बच्चों के हक की लड़ाई लड़नी शुरू की तो सरकार की भी नींद टूटी। धीरे-धीरे आंकड़ा बढ़ा और अब 90 हजार जरूरतमंद बच्चों के दाखिले के लिए अभिभावकों ने आवेदन किया है। यही नहीं ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से आवेदन की पारदर्शी व्यवस्था भी बन गई है। अब एक क्लिक पर जरूरतमंद बच्चों का दाखिले के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराया जा सकता है।

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33 वर्षीय समीना बानो ने वर्ष 2005 में पुणे के गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक की पढ़ाई की और वर्ष 2010 में आईआईएम बंगलुरू से मैनेजमेंट की पढ़ाई की। इसके बाद वह अमेरिका में एक मल्टी नेशनल कंपनी में मैनेजमेंट कंसल्टेंट के तौर पर नौकरी करने लगीं, लेकिन उनके मन में अपने वतन और गरीबों के लिए कुछ करने की ललक थी। बेटी की इस इच्छा को देखकर पिता इमामुद्दीन जो कि इंडियन एयरफोर्स से रिटायर हो चुके हैं, उन्होंने उसका हौसला बढ़ाया। कहा, पैसा तो कमाना आसान है, लेकिन नाम और शोहरत कमाना कठिन होता है।

समीना ने इस चैलेंज स्वीकार किया और वह विषय ढूंढ़ने लगीं कि किस पर काम करें। बकायदा रिसर्च किया और यूपी में आकर जरूरतमंद बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में दाखिला दिलाने का बीड़ा उठाया। समीना द्वारा शुरू की गई लड़ाई के बाद वर्ष 2014 में दाखिले का जो आंकड़ा सिर्फ 108 तक सीमित था, वह वर्ष 2015 में यूपी के 26 जिलों में 3853 हो गया।

इसके बाद समीना बानो ने बेसिक शिक्षा विभाग के साथ काम किया और कारवां बढ़ता गया। वर्ष 2016 में 49 जिलों में 17209 जरूरतमंद बच्चों को दाखिला मिला। अब 90 हजार आवेदन दाखिले के लिए आए हैं और इसमें से 50 हजार जरूरतमंद बच्चे दाखिले के लिए अर्ह पाए गए। इनमें से 27620 जरूरतमंद बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला मिला भी है।

सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी लड़ाई
प्राइवेट स्कूल जरूरतमंद बच्चों को दाखिला देने में अपनी मनमर्जी चलाते थे। राजधानी में एक प्रतिष्ठित स्कूल ने दाखिला नहीं दिया तो समीना बानो ने आंदोलन छेड़ दिया। इसके बाद मामला हाईकोर्ट में गया तो छह अगस्त 2015 को कोर्ट ने दाखिला देने का आदेश दिया।

इसके बाद स्कूल ने आदेश के खिलाफ डबल बेंच में अपील कर दी, मगर यहां भी स्कूल हार गया। फिर भी स्कूल दाखिला देने को तैयार नहीं हुआ और सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। समीना ने भी पीछा नहीं छोड़ा। राज्य सरकार को साथ लेकर लड़ाई लड़ी और आखिरकार 28 सितंबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने भी दाखिला देने का आदेश सुनाया। आखिरकार स्कूल को दाखिला लेना ही पड़ा।

नर्सरी में भी दाखिला दिलाने की करवाई शुरुआत
समीना बानो कहती हैं कि निजी स्कूल कक्षा एक में ही दाखिला देने पर अड़ गए। तमाम बच्चे ऐसे थे जिन्हें कक्षा एक में नहीं नर्सरी में दाखिला चाहिए था। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई में उठा तो नर्सरी में भी दाखिला देने को कहा गया। इसके बाद राज्य सरकार ने सख्ती कर नर्सरी में दाखिला दिलवाया।

एक किलोमीटर नहीं पूरे वार्ड में दाखिले का बनवाया नियम
निजी स्कूल दाखिला न देने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते रहे मगर समीना ने भी हार नहीं मानी। कई स्कूलों ने जरूरतमंद बच्चों को यह कहकर वापस किया कि एक किलोमीटर के दायरे में उनका घर नहीं है, ऐसे में दाखिला नहीं देंगे। इसके बाद आरटीई में इस नियम में बदलाव करवाने की मुहिम चली। इसके लिए राज्य सरकार अपनी कैबिनेट में इस प्रस्ताव को ले गई और सितंबर 2017 में एक किलोमीटर के दायरे को खत्म कर पूरे वार्ड में किसी भी निजी स्कूल में दाखिला लेने का नियम बनाया।

'मेरे बच्चे कभी अच्छे स्कूल में न पढ़ पाते' 
लवकुश नगर में रहने वालीं ललिता घरों में सफाई कर परिवार पालती हैं। उनकी दो बेटियां सृष्टि और रिषिका स्कूल नहीं जाती थीं। समीना के प्रयास से आरटीई एक्ट के तहत निजी स्कूल में दोनों बच्चियों को निशुल्क दाखिला मिला और अब उनके बच्चे ढंग से पढ़ाई कर रहे हैं। मोर्चरी में शवों की सिलाई का काम करने वाले कमलेश प्रजापति का बच्चा भी निजी स्कूल में पढ़ाई कर रहा है।

दाखिला मिला तो होनहार बच्चों ने दिखाया कमाल
निजी स्कूलों में निशुल्क दाखिला पाने में कामयाब हुए जरूरतमंद बच्चों में से कई ने अपने क्लास में कमाल का प्रदर्शन किया है। सीएमएस इंदिरानगर में पढ़ने वाली सृष्टि की गिनती क्लास के मेधावी बच्चों में होती है। मैथ्स ही नहीं इंग्लिश में भी वह अब बेहतर ढंग से बोलती है। वहीं आरएलबी में कक्षा दो में पढ़ने वाले प्रणय भी क्लास में टापर हैं, जबकि केके एकेडमी में कक्षा चार में पढ़ने वाली अर्शिया भी हमेशा अव्वल रहती है।

दाखिले में हो सख्ती तभी बनेगी बात
समीना बानो का मानना है कि आरटीई एक्ट के तहत निजी स्कूल 25 प्रतिशत सीटों पर दाखिला लें। इसके लिए सख्ती होनी चाहिए। शिक्षा विभाग के अधिकारी टीम लगाकर यह काम करें।
- सिर्फ नोटिस जारी करने से बात बनने वाली नहीं। ऐसे निजी स्कूल जो दाखिला न लें उनके खिलाफ तुरंत एक्शन होना चाहिए।
- अभिभावक जागरूक हो रहे हैं, लेकिन उन्हें अपने हक के लिए मजबूती से लड़ाई लड़नी होगी।
- समाज के जागरूक और पढ़े-लिखे लोग अपने आसपास के स्कूलों में गरीब बच्चों को निशुल्क दाखिला दिलाने में मदद करें।
- स्कूलों को भी चाहिए कि वह भेदभाव न करें और अमीर-गरीब में बांटे बिना बच्चों को निशुल्क दाखिला दें।

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