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लखनऊ राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः स्कूल जाने वाली बच्चियों को शोहदों से सुरक्षा दिलवाना है बड़ी चुनौती

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पूर्व पुलिस महानिदेशक एमसी द्विवेदी रहे, जबकि लखनऊ पुलिस के प्रतिनिधि के तौर पर एसपी ग्रामीण डॉ. गौरव ग्रोवर मौजूद थे।

By Nandlal SharmaEdited By: Published: Sun, 12 Aug 2018 06:00 AM (IST)Updated: Mon, 13 Aug 2018 04:01 PM (IST)
लखनऊ राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः स्कूल जाने वाली बच्चियों को शोहदों से सुरक्षा दिलवाना है बड़ी चुनौती

सुरक्षा एक ऐसा मुद्दा है, जिसमें सिर्फ पुलिस कुछ नहीं कर सकती। जनता को भी साथ देना होगा और इससे अपराधियों के हौसलों को पस्त किया जा सकता है। दोनों मिलकर अपराधियों के लिए अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र को ही तोड़ दें। कानून की जानकारी, सीसीटीवी कैमरे जैसी तकनीक की मदद, अपने आसपास के माहौल के प्रति संवेदनशीलता और ज्यादा से ज्यादा अपराधों की पुलिस में रिपोर्ट करके हम सुरक्षा का बेहतर माहौल अपने शहर में बना सकते हैं।

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शहर की सुरक्षा के मुद्दे पर माय सिटी माय प्राइड अभियान के तहत शनिवार को आयोजित राउंड टेबल कांफ्रेंस में विशेषज्ञों की चर्चा का यही निचोड़ रहा। दैनिक जागरण के मीराबाई मार्ग स्थित कार्यालय में आयोजित कांफ्रेंस में पूर्व, वर्तमान पुलिस अधिकारियों के अलावा व्यापारी, वरिष्ठ चिकित्सक, एनजीओ के कार्यकर्ता, महिला संगठन, महिला आयोग की सदस्य और रेजीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन से जुड़े लोग शामिल हुए।

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कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पूर्व पुलिस महानिदेशक एमसी द्विवेदी रहे, जबकि लखनऊ पुलिस के प्रतिनिधि के तौर पर एसपी ग्रामीण डॉ. गौरव ग्रोवर मौजूद थे। दैनिक जागरण के स्थानीय संपादक सद्गुरुशरण अवस्थी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए आयोजन के प्रारूप से अतिथियों को अवगत कराया। वहीं धन्यवाद ज्ञापन महाप्रबंधक जेके द्विवेदी ने किया। इस मौके पर रेडियो सिटी के आरजे मयंक भी मौजूद रहे।

कांफ्रेंस में मुख्य रूप से घर से लेकर बाजारों तक में सीसीटीवी कैमरों को लगाने, किरायेदारों और नौकरों के वेरीफिकेशन, महिलाओं के लिए सुरक्षा का माहौल बनाए जाने, खासतौर पर स्कूल जाने वाली बच्चियों को शोहदों से सुरक्षा दिलवाने और सड़क सुरक्षा की बात हुई। महिला आयोग की सदस्य सुनीता बंसल ने बताया कि कुछ दिनों में आयोग में नियमित एक सदस्य मुख्यालय में सुनवाई करेंगी। इसलिए पीड़ित अपनी समस्याओं को लेकर निसंकोच आयोग में पहुंच सकती हैं।

साइबर अपराध है भविष्य की चुनौती
कांफ्रेंस में मौजूद पूर्व पुलिस महानिदेशक एमसी द्विवेदी ने कहा कि पहले से चीजें सुधरी हैं। वर्ष 1954 में मेरी कजिन की मृत्यु हुई थी। लंबे समय बाद पता चला कि उसको जहर दे दिया गया था। वर्ष 1982 में दोस्त की बहन को पति ने मार दिया और वर्ष 2018 में सजा मिली। ऐसा अब नहीं होता है। बहुत बदलाव हुए हैं। पुलिस भी सक्रिय हुई है और लोग भी जागरूक हुए हैं। कई तरह के अपराध हैं और जनता की जागरूकता से इनमें कमी आ सकती है।

आने वाले समय की बात करें तो सबसे बड़ा खतरा साइबर क्राइम है। अभी इसके लिए हमारी पुलिस बिल्कुल तैयार नहीं है। भविष्य में इससे निपटने के लिए सरकार को अभी से बहुत बड़े स्तर पर तैयारी करनी होगी। इसी तरह सड़क जाम की समस्या का निदान करने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देना होगा। मकान में पार्किंग की जगह न छोड़ने वालों के खिलाफ कानून बने।

जनता अपने अधिकार समझ रही, पुलिस कर रही सुधार
एसपी ग्रामीण गौरव ग्रोवर ने कहा कि सेफ्टी कॉन्सेप्ट में तीन स्थान अहम होते हैं। घर, ऑफिस और घर से लेकर कार्य स्थल तक का रास्ता। इन तीनों स्थानों पर जनता के सहयोग से ही पुलिस सुरक्षित माहौल दे सकती है। ये बहुत अच्छी बात है कि लोग आज अपने अधिकार समझ रहे हैं। उनको पता है कि वह किस तरह से पुलिस की मदद ले सकते हैं। इसी तरह से जैसे-जैसे जनता जागरूक हो रही है, पुलिस भी सुधार कर रही है।

डॉयल 100 जैसी सुविधाओं के आने से पुलिस का घटना स्थल तक पहुंचने का रिस्पांस टाइम तेजी से घट रहा है। महिला अपराधों के बारे में जितनी अधिक रिपोर्टिंग बढ़ेगी, उतना उन्हें रोका जा सकेगा। घर के उत्पीड़न की सूचना घरवालों से ही मिल सकती है। उन्होंने कहा कि पुलिस के बारे में चाहे जितनी भी नकारात्मक बातें सामने आएं, मगर ये सच है कि लोगों को पुलिस में ही आशा की किरण दिखती है। उन्होंने कांफ्रेंस में सामने आयीं शिकायतों का निस्तारण करने का भी आश्वासन दिया।

जनसहभागिता से हों कार्य
- आम जन अपने घर या प्रतिष्ठान के बाहर और अंदर सीसीटीवी कैमरे लगवाएं, अलार्म लगवाएं, मोहल्ले में चौकीदार तैनात करें, ताकि कोई भी गड़बड़ी पकड़ी जा सके।
- अभिभावक बेटे-बेटी में भेद न करें। बच्चों को अपनी मां-बहन की भांति दूसरों की मां-बहनों की भी इज्जत करना सिखाएं। बेटियों को गुड टच, बैड टच के बारे में बताएं और उन्हें डरने की बजाय किसी भी गलत बात का विरोध करने की सीख दें।
- सड़क जाम कम करने में सहयोग के लिए आम जन अपने वाहन से निकलने की बजाय पब्लिक ट्रांसपोर्ट को प्राथमिकता दें। मकान बनाते समय वाहन पार्किंग का स्थान जरूर छोड़ें। बच्चों को बिना हेलमेट न निकलने दें। उन्हें ट्रैफिक नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करें।

कॉरपोरेट से मिले मदद
- स्कूलों में निरंतर जागरूकता अभियान चलाकर बताया जाए कि क्या अपराध है और कैसे उसका विरोध किया जा सकता है।
- चौराहों का आधुनिकीकरण कराने में कार्पोरेट सेक्टर मदद करे, ताकि यातायात नियंत्रण में मदद मिल सके।
- शरणालयों, पुलिस थानों, चौकियों व बूथों के सौंदर्यीकरण के साथ ही शहर को सीसीटीवी कैमरों से आच्छादित करने में मदद की जाए। सभी निजी संस्थान, प्रतिष्ठान अपने ऑफिस, कारखाने, गोदाम आदि के अंदर ही नहीं बाहर भी सीसीटीवी कैमरे लगवाएं।

सरकार के स्तर से प्रयास
- कॉलोनी, अपार्टमेंट, मोहल्लों में किराएदारों, नौकरों के सत्यापन पर जोर हो। हर थाने में व्यापारियों और क्षेत्र के सभ्रांत नागरिकों के साथ मासिक बैठक हो। कम्युनिटी पुलिसिंग के लिए क्षेत्रीय प्रतिष्ठित लोगों को आगे लाएं, पुलिस मित्र बनाए जाएं। थाने पहुंचने वाले के साथ अच्छा व्यवहार करें। पुलिस का व्यवहार सुधारने के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था हो। साइबर क्राइम से निपटने के लिए पुलिस को प्रशिक्षित किया जाए। स्कूलों के बाहर छेड़खानी रोकने के लिए छुट्टी के समय पुलिस तैनात रहे।

यह भी मांग उठी
- सड़क पर गाड़ी में बैठकर शराब पीने वालों पर सख्ती की जाए। शराब की दुकानों के आसपास जमावड़ा न हो। ग्वारी गांव के पास और हुसडिय़ा से हैनीमैन चौराहा तक शाम को लगने वाले शराबियों के जमावड़े को रोका जाए।
- हेलमेट चलाने के लिए चालान काटकर बाध्य करने की बजाए ट्रैफिक रूल्स फॉलो करने के बारे में ज्यादा जागरूक किया जाए।
- स्कूल या कॉलेज टाइम में पार्कों में टहलने वाले छात्र-छात्राओं को चिन्हित कर उनके स्कूल और अभिभावकों को जानकारी दी जाए।
- शरणालयों की तय समय पर चेकिंग हो और आशा ज्योति केंद्र आदि में अधिकारी नियम से विजिट करें।
- हर थाने में महिला पुलिस की तैनाती हो।
- पॉक्सो एक्ट के बारे में सभी को जागरूक किया जाए। स्कूलों में कोमल फिल्म दिखाई जाए।

- सरकार महिला सुरक्षा को लेकर गंभीर है। जिलों में दौरा किया जाएगा। लोग बेटा और बेटी में फर्क न करें। बेटियों को साहसी बनाना होगा। थानों में काउंसलर बिठाने की व्यवस्था हो।
- सुनीता बंसल, सदस्य, महिला आयोग

- बच्चों के प्रति संवेदनशीलता जरूरी है। लोगों का व्यवहार समाज के प्रति बदल रहा है। शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन हो, जिससे मूल्यों का पतन न हो पाए। कम्युनिटी पुलिस आवश्यक है।
- अंशुमालि शर्मा, निदेशक चाइल्ड लाइन

- समाज में आक्रामकता बढ़ी है। पुलिस मित्र बनकर काम करे। मददगार की मदद होनी चाहिए। लोगों को बेवजह न दौड़ाया जाए। मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट प्रभावी ढंग से लागू हो, जिससे डॉक्टर सुरक्षित महसूस कर सकें।
- डॉ. सूर्यकांत, विभागाध्यक्ष पल्मोनरी मेडिसन विभाग, केजीएमयू

- सीसीटीवी कैमरों की संख्या में बढ़ोतरी हो। सभी सरकारी और निजी भवनों में कैमरे लगाए जाएं। सरकारें नीति नहीं बना पातीं। सुरक्षा को लेकर राजधानी में अभी बेहतर काम करने की दरकार है।
- अमरनाथ मिश्र, चीफ वार्डेन

- व्यापारियों की सुरक्षा को नजरअंदाज न करें। टप्पेबाजी पर लगाम लगाएं। जागरूकता जरूरी है। थानों में नियमित रूप से बैठक हो तो अधिकतर समस्याएं दूर हो जाएंगी।
- राजीव कुमार अग्रवाल, व्यापारी नेता

- अपराधी हाईटेक हो रहे हैं। सरकार जरूरतमंद व्यापारियों को उनकी सुरक्षा के लिए असलहे का लाइसेंस मुहैया कराने पर विचार करे। नौकर, चालक अथवा किरायेदार का सत्यापन जरूरी है।
- अभिषेक खरे, व्यापारी नेता

- हेलमेट अथवा सीट बेल्ट लगाने से ही लोगों को सुरक्षा नहीं मिलती बल्कि सही से गाड़ी चलाना भी आना चाहिए। यातायात नियमों का पालन नहीं हो रहा। जिम्मेदार अफसरों को सख्त कदम उठाना होगा।
- अनवारूल अब्बासी, सामाजिक कार्यकर्ता

- एसिड अटैक की घटनाओं से अधिकारी सबक नहीं ले रहे। हर जगह आसानी से एसिड उपलब्ध है और कोई कार्रवाई नहीं हो रही। प्रशासन के पास भी इससे संबंधित कोई डाटा उपलब्ध नहीं है।
- आलोक द्विवेदी, सामाजिक कार्यकर्ता

- अपार्टमेंट में अपराधी रह रहे हैं, जिनकी शिनाख्त तक करना मुश्किल है। पुलिस सत्यापन नहीं करा रही। गोमतीनगर क्षेत्र में लोग खुलेआम शराब पी रहे हैं, जिससे असुरक्षा का माहौल है।
- उमाशंकर द्विवेदी, आरडब्ल्यूए, गोमतीनगर विस्तार

- महिलाओं से अभद्रता और अपराध की घटनाएं नशे में रहने वाले लोग ज्यादा करते हैं। हुसडिय़ा, ग्वारी चौराहा और जनेश्वर मिश्र पार्क के पास अराजकता का माहौल है, इसे रोकना चाहिए।
- राम कुमार यादव, आरडब्ल्यूए, कल्पतरू अपार्टमेंट

- महिलाओं के मुद्दे उठाने वाली महिलाएं ही असुरक्षित हैं। साइबर सेल कार्रवाई नहीं करता। सरकारें वादा करती हैं और महिलाओं की एफआइआर तक नहीं होती। पेड़-पौधे व सड़कों की बजाय इंसान को चमकाने की जरूरत है।
- नाइस हसन, सामाजिक कार्यकर्ता

- छोटे-छोटे बच्चे नशे की चपेट में हैं। घरेलू ङ्क्षहसा को पुलिस हल्के में लेती है, लेकिन वह गंभीर मुद्दा है। महिला पुलिस का रवैया ठीक नहीं। आशा ज्योति केंद्र की काउंसलर से पुलिस ठीक से बात तक नहीं करती।
- अर्चना सिंह, अधीक्षिका, आशा ज्योति केंद्र

- समाज में माहौल बनाना जरूरी है। स्वच्छता की तरह सुरक्षा पर काम करने की आवश्यकता है। लड़कियों के हौसले बढ़ाने होंगे, जिससे वह खुद की लड़ाई लड़ सकें। इसके लिए मीडिया को सहयोग करना होगा।
- ऊषा विश्वकर्मा, संस्थापक, रेड बिग्रेड

- बच्चों को बताना होगा कि वह क्या करें और क्या नहीं। पुलिस वालों को पाक्सो एक्ट की जानकारी नहीं है। कौन जाए पुलिस के पास जब एफआईआर के बाद चक्कर काटना पड़े।
- रेनू मिश्रा, आली संस्था

- परिवार से शुरुआत करनी पड़ेगी तभी समाज सुरक्षित होगा। गुड टच, बैड टच के बारे में बेटियों को बताना चाहिए। अभिभावकों को बच्चों का दोस्त बनना पड़ेगा। स्कूल-कॉलेज में पुलिस छात्रों को जागरूक करे।
- मनमीत कौर सोढ़ी, एसोसिएट एनसीसी अधिकारी, नवयुग कॉलेज

- महिलाओं की सुरक्षा को लेकर विशेष काम करने की जरूरत है। मददगार के साथ ही दुर्व्यवहार हो रहा है, जिसे रोकना होगा अन्यथा सहायता के लिए लोग आगे नहीं आएंगे।
- सत्या सिंह, सेवानिवृत्त इंस्पेक्टर

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