लखनऊ को हरा-भरा बनाने में जुटी है ये संस्था, मिशन 11 लाख पौधरोपण
संस्था का संकल्प है राजधानी को हरा भरा बनाना। वह अब तक शहर में तीन लाख पौधे लगा चुके हैं।
बहुमंजिला इमारत बनाना और विकास के नाम पर हरियाली को नष्ट करना सही मायने में विकास है तो ऐसा विकास ठीक नहीं। कोई कितना भी बड़ा हो जाय और हम कितने भी विकसित हो जाएं, लेकिन पर्यावरण के साथ खिलवाड़ करने वालों को प्रकृति कभी माफ नहीं करती। कुछ ऐसे ही विचार हैं विवेकानंद ग्राम विकास शोध संस्थान के चंद्रभूषण तिवारी के। उनकी संस्था का संकल्प है राजधानी को हरा भरा बनाना। पिछले तीन दशक से मिशन 11 लाख पौधरोपण चलाने वाले चंद्र भूषण तिवारी समाज के बजाय लोगों को खुद बदलने की नसीहत देते हैं। वह अब तक शहर में तीन लाख पौधे लगा चुके हैं।
स्वामी विवेकानंद से प्रेरित होकर ही उन्होंने विवेकानंद ग्राम विकास शोध संस्थान बनाया, जिसके माध्यम से उन्हें अपने अभियान को आगे बढ़ाने की मदद मिलती गई। 2006 में साइकिल से शुरू हुआ पौधरोपण का अभियान अब चार पहिया तक भले ही पहुंच गया हो, लेकिन इनके मिशन में अभी कोई बदलाव नहीं आया। राजधानी के शारदानगर के रुचिखंड में रहने वाले चंद्र भूषण तिवारी ने राजधानी का शायद ही कोई इलाका हो जहां पौधरोपण कर लोगों को जागरूक न किया हो। वह हर वर्ष 26 जनवरी से 15 अगस्त तक पौधरोपण का सघन अभियान चलाकर अपने मिशन को आगे बढ़ाते हैं।
छायादार और फलदार पौधों को प्राथमिकता
'आवा पौधा लगावा ए हमार भइया, आम जामुन कटहल नींबू अमरूद लगावा, आंगन में तुलसी दुअरा निमिया लगावा, पीपल पाकड़ बरगद गूलर हमार भइया' जैसे गीतों के माध्यम से बंजर हो रही धरती को हराभरा करने को प्रेरित करने वाले चंद्रभूषण तिवारी करीब तीन लाख पौधे न केवल लगा चुके हैं, बल्कि लोगों को इसकी देखभाल के लिए प्रेरित भी कर चुके हैं। उनकी कार में गूलर, आम, महुआ, पाकड़, बरगद व नीम जैसे छायादार व फलदार पौधे हर समय मौजूद रहते हैं। वह ऐसे ही पौधों को लगाने के लिए प्रेरित करते हैं। सुबह आठ बजे से देर शाम तक दिनभर घूमना और आर्थिक संपन्न लोगों से गरीब बच्चों की पढ़ाई और पौधरोपण के लिए मदद मांगना उनकी दिनचर्या में शामिल है। वह गांधी झोला कंधे पर लटकाए हर उस कार्यक्रम में पहुंच जाते हैं, जहां लोग उनकी बातों को सुन सकें।
मुफ्त होता पौध वितरण
चंद्र भूषण तिवारी का कहना है कि जिस पैसे को लोग नशाखोरी और फजूलखर्ची में बर्बाद करते हैं, वह उन पैसों को मांग कर पौधे खरीदकर लोगों को बांटते हैं। पौधों को लगाने की जगह बताने पर वह स्वयं पहुंचकर उसे न केवल लगाते हैं, बल्कि एक सप्ताह तक उसकी देखभाल भी करते हैं। पौधे लगाने का उनका यह छोटा प्रयास पर्यावरण बचाने में बड़ा प्रयास है। भोजपुरी गीतों के माध्यम से वह पौधरोपण के लिए सभी को जागरूक करते हैं।
'प' से पेड़ 'ल' से लगाओ
सरकार की ओर से गरीबों को शिक्षा का अधिकार देने की बात हो रही है। सरकारी स्कूलों के साथ ही निजी स्कूलों में उनके प्रवेश को अनिवार्य किया जा रहा है। इससे इतर समाजसेवी चंद्रभूषण तिवारी पिछले तीन दशक से रिक्शा चालक व कूड़ा बीनकर जीवन बसर करने वाले गरीबों के बच्चों को कॉन्वेंट शिक्षा देने में लगे हैं। बच्चों को दूर न जाना पड़े इसके लिए वह उनके पास ही खुले में स्कूल खोल लेते हैं। दान की किताबों के माध्यम से वह उन्हें न सिर्फ शिक्षा देते हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण के साथ ही अपनी सांस्कृतिक धरोहरों से भी परिचित कराते हैं। 'प' से पेड़ 'ल' से लगाओ जीवन में खुशहाली लाओ...'क' से किसान 'ज' जवान, हम सब पहले बनें इंसान...जैसे सबक के साथ वह बच्चों को पढ़ाते हैं। उनको देखते ही बच्चे टॉफी वाले मास्टर का संबोधन करते हुए कक्षाओं में शामिल हो जाते हैं।
शिक्षक के रूप में शिक्षक पत्नी डॉ. सुशीला तिवारी भी उनकी मदद करती हैं। कई पैसे वाले लोग भी आर्थिक मदद करके उनके इस मिशन को धार देते हैं। रजनीखंड, वृंदावन, ट्रांसपोर्टनगर, औरंगाबाद, सालेहनगर और रिक्शा कॉलोनी में उनकी पाठशाला चलती है। निशुल्क शिक्षा के साथ ही सदाचार का पाठ पढ़ाया जा रहा है। उनका कहना है कि युवाओं को भी इस ओर आना चाहिए। व्यस्त समय में से एक घंटा बच्चों के लिए निकालकर उनके जीवन को संवारा जा सकता है। औरंगाबाद में दो महिलाएं सरिता और आशा भी उनके न रहने पर बच्चों को पढ़ाती हैं। इनका स्कूल रविवार को खुलता है और मंगलवार को बंद रहता है। इससे अवकाश के दिन कार्यालय और स्कूल जाने वाले युवा भी बच्चों को शिक्षित करने में योगदान कर देते हैं।