जिंदगी से परेशान बेटियों की किस्मत को संवार रहीं अर्चना
अर्चना सिंह महिला हिंसा को लेकर हमेशा सजग रही हैं। उन्होंने सामाजिक व परिवार से उपेक्षित महिलाओं का दर्द समझ कर उन्हें स्वावलंबी बनाने का अभियान शुरू किया है।
जागरण संवाददाता, लखनऊ
परिवार व समाज से तिरस्कृत नारी की वेदना महिला ही बेहतर समझ सकती है। शहर में ऐसी न जाने कितनी बालिकाएं व महिलाएं हैं, जिन्हें न तो परिवार में स्थान मिल रहा है और न ही समाज में। ऐसे में वे मानसिक रूप से टूट जाती हैं, उन्हें अपना जीवन व्यर्थ लगने लगता है। ऐसी बालिकाओं व महिलाओं में अर्चना सिंह न सिर्फ जीने की ललक पैदा कर रही हैं, बल्कि उन्हें सशक्त भी बना रही हैं।
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गोमतीनगर के विवेक खंड निवासी 38 वर्षीय अर्चना सिंह महिला हिंसा को लेकर हमेशा सजग रही हैं। उन्होंने सामाजिक व परिवार से उपेक्षित महिलाओं का दर्द समझ कर उन्हें स्वावलंबी बनाने का अभियान शुरू किया है। वर्तमान में वह आलमबाग स्थित लोकबंधु अस्पताल में खुले आशा ज्योति केंद्र की अधीक्षिका हैं। इस केंद्र में कई ऐसी लड़कियां व महिलाएं हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है।
प्रलोभनवश वे देह व्यापार के दल-दल में फंसकर तबाह हो गई थीं और बाद में यहां लायी गईं। कुछ ऐसी हैं जिन्हें उनके प्रेमी ने धोखा दिया। वहीं कुछ ऐसी हैं जिनका तेजाब डालकर चेहरा ही खराब कर दिया गया। घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएं भी हैं। ऐसी कई बालिकाएं व महिलाएं जीवन से क्षुब्ध होकर जीने की तमन्ना खोने लगी थीं। ऐसे वक्त में केंद्र की अधीक्षिका अर्चना उनका सहारा बनीं और आज उन्हें जीवन में आगे बढ़ने का हौसला दे रही हैं।
अंधेरी जिंदगी में आ रहा खुशहाली का उजाला
आशा ज्योति केंद्र महिलाओं के सशक्त एवं स्वावलंबी बनने का जरिया बन गया है। यहां कौशल विकास मिशन से महिलाओं को कम्प्यूटर प्रशिक्षण, सिलाई-कढ़ाई, खिलौने बनाने के साथ ही कुकिंग का हुनर सिखाया जाता है। उन्हें रोजगार के इतर स्वरोजगार के भी अवसर दिलाए जाते हैं। इससे उपेक्षित बालिकाएं व महिलाएं अब अपने पैरों पर खड़ी होकर समाज में नाम और सम्मान कमा रही हैं।
आशा ज्योति केंद्र की अधीक्षिका अर्चना सिंह ने कहा कि मैंने महसूस किया है कि एक उपेक्षित नारी की पीड़ा क्या होती है। कोई बालिका या महिला परिवार या समाज से जब तिरस्कृत कर दी जाती है तो लोग उसे हेय दृष्टि से देखते हैं। ऐसी बालिकाओं व महिलाओं का दर्द देखकर मेरा मन हमेशा उनकी मदद के लिए आतुर रहता है। आशा ज्योति केंद्र के जरिए हम उपेक्षित बालिकाओं व महिलाओं की मदद कर पा रहे हैं।
घरेलू उत्पीड़न की शिकार एक महिला ने बताया कि ससुरालीजनों ने उत्पीड़न का विरोध करने पर उसे परिवार से निकाल दिया था। मायके से भी सहारा नहीं मिला। ऐसे में आशा ज्योति केंद्र ने हौसला देकर अपनापन दिया। सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी के साथ कानूनी सलाह भी दी। इसके इतर कौशल विकास मिशन का प्रशिक्षण भी केंद्र की अधीक्षिका दिला रही हैं। इसलिए अब वह अपने सम्मान के लिए कुछ करना चाहती हैं।
200 महिलाओं को दिलाया रोजगार
बालिकाओं व महिलाओं को प्रशिक्षण दिलाने के साथ ही उन्हें रोजगार से जोड़ने में भी अर्चना हर समय खड़ी रहती हैं। वह केंद्र से महिलाओं को उनकी पसंद का कोर्स करवाती हैं, ताकि उन्हें रोजगार करने में खुशी हो। उन्होंने दो साल में 200 से अधिक बालिकाओं व महिलाओं को आशा ज्योति केंद्र के जरिए रोजगार दिलाया है। इसमें 55 महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें उनके परिवारीजन छोड़ चुके थे। केंद्र से जुड़ने के बाद उनका यही परिवार बन गया है। अब उनके जीवन की नई पारी शुरू हो चुकी है।
झेला विरोध, हर कदम पर आईं चुनौतियां
अर्चना बताती हैं कि पीडि़त बालिकाओं व महिलाओं की मदद करने के दौरान समाज का विरोध बहुत होता है। कोई साथ नहीं देता। पुलिस और महिला कल्याण विभाग से मदद मिलने में वक्त लग जाता है। ऐसे में कदम-कदम पर चुनौतियां सामने आती हैं।
पिछले माह एक ग्रामीण अपनी दो बेटियों की एक साथ शादी कर रहा था। एक नाबालिग थी। सूचना पर टीम के साथ पहुंची और काउंसिलिंग कराई तो लोग विरोध पर उतर आए। इसके बाद कानून का भय दिखाकर बाल विवाह रोका गया।
ये हो तो बने बात
- बालिकाओं व महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाई जाए। उत्पीड़न होने पर तत्काल न्याय दिलाने की व्यवस्था हो।
- पुलिस स्टेशन में महिलाओं की बात सुनने के लिए महिला आरक्षी और अधिकारी की दिन-रात ड्यूटी हो।
- महिला हेल्प लाइन में संवेदनशील महिलाओं को तैनाती दी जाए, ताकि उत्पीडऩ के मामले में वे सहज होकर अपनी बात कह सकें।
- समय-समय पर घरेलू हिंसा को लेकर जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएं। नियम-कानूनों की जानकारी भी दी जाए।
- पीड़ित महिलाओं को समाज में जीने का अधिकार है। अनदेखी करने वाले परिजनों को सख्त दंड दिया जाए।
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