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रंग लाई लखनऊ के अशोक भार्गव की पहल, शहर में खुले जेनेरिक स्टोर

लखनऊ के महाराणा प्रताप मार्ग निवासी अशोक भार्गव ने सस्ती दवाओं के लिए काफी संघर्ष किया।

By Krishan KumarEdited By: Published: Mon, 09 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Mon, 09 Jul 2018 10:24 AM (IST)
रंग लाई लखनऊ के अशोक भार्गव की पहल, शहर में खुले जेनेरिक स्टोर

27 वर्ष की उम्र में खतरनाक बीमारी ने घेर लिया। ऐसे में युवा अवस्था में ही पैर डगमगाने लगे। महंगी दवाएं घर की आर्थिक सेहत बिगाड़ने लगीं। अस्पताल में आते-जाते दूसरे मरीजों का भी यही दर्द महसूस किया। लिहाजा, स्वास्थ्य ठीक होते ही सस्ती दवा के लिए संघर्ष का संकल्प लिया।

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जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता के लिए राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक पत्र लिखा। अब लखनऊ से दिल्ली तक की वर्षों की भागदौड़ रंग ला रही है। सरकार ने जेनेरिक स्टोर खोलने शुरू किए हैं। इसीलिए, अब दवाओं के मूल्य निर्धारण के लिए दूसरी मुहिम छेड़ दी है।

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सस्ती दवाओं के लिए संघर्ष करने की यह कहानी है महाराणा प्रताप मार्ग निवासी अशोक भार्गव की। 4 अक्टूबर 1955 को जन्मे अशोक भार्गव के पिता स्व. नंद किशोर भार्गव ऑटोमोबाइल्स के व्यवसाय से जुड़े थे। वर्ष 1986 में अशोक भार्गव ग्रंथि संबंधी गंभीर बीमारी की चपेट में आ गए। ऐसे में डॉक्टर द्वारा लिखी गई महंगी दवाएं उन पर बोझ बन गईं।

संपन्न घर से होने के बावजूद महंगी दवाओं का खर्च जेब पर भारी पड़ रहा था। दो वर्ष तक चली दवाओं से घर का बजट भी बिगड़ गया। ऐसे में बीमारी के वक्त घर का बजट भी लड़खड़ाने लगा। डॉक्टर को दिखाने के दौरान अस्पताल में अन्य मरीजों से पीड़ा बयां की। हर कोई महंगी दवा से आजिज मिला। लिहाजा आम लोगों और शहरवासियों के लिए वर्ष 1987 से भार्गव ने सस्ती दवा और सस्ते इलाज के लिए संघर्ष छेड़ दिया।

खुद खोला स्टोर तो लोगों ने समझा नकली दवा
अशोक भार्गव ने कहा कि स्वस्थ होते ही पहले खुद ही शहर में सस्ती दवा उपलब्ध कराने की योजना बनाई। ऐसे में रॉ मैटेरियल खरीदकर एक कंपनी से संपर्क कर जनरल मेडिसिन बनवाई। उस समय जेनेरिक दवाओं का मार्केट शून्य था। लोगों में जागरूकता नहीं थी। ऐसे में मरीजों को सस्ती दर पर दवा उपलब्ध कराने पर लोग नकली समझते थे। मरीज दवा लेने में आनाकानी करते थे।

इसके बाद 1993 में एक नामी फार्मा कंपनी के साथ बात करके करीब 20 दवाएं बनवाईं, इन पर लोगों ने भरोसा किया। इसके बाद वर्ष 2000 में अचानक 15 नेशनल और मल्टीनेशनल कंपनियों ने जेनेरिक दवाओं की मैन्युफैक्चरिंग की ओर रुख कर दिया। ऐसे में अब जेनेरिक दवाओं के प्रति लोगों में रुचि बढ़ी है और इसका मार्केट हजारों करोड़ तक पहुंच गया। अशोक भार्गव की पहल का नतीजा यह है कि शहर में इस समय प्राइवेट सेक्टर में 34 जेनेरिक स्टोर खुल चुके हैं।

अब जेनेरिक दवाओं की एमआरपी तय करने पर जोर
अशोक भार्गव कहते हैं कि सरकार ने जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा दे दिया है। इसके लिए तमाम स्टोर खोल दिए हैं, मगर अभी यह नाकाफी हैं। ऐसे में सुलभ तरीके से लोगों को सस्ती दवाएं मुहैया कराने के लिए सभी जेनेरिक दवाओं की एमआरपी घटाई जानी चाहिए। कंपनियों द्वारा मनमानी एमआरपी छापने पर रोक लगाई जाए। लोगों को जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड की कीमत पर थमाई जा रही हैं। कंपनियों द्वारा किए जा रहे इस संगठित अपराध पर लगाम लगानी होगी।

कम हुआ दवा का बजट
डॉ. विधान शुक्ला आयुष चिकित्सक हैं। वह शहर में खोले गए जेनेरिक स्टोर को सरकार की नेक पहल मानते हैं। उनका कहना है कि मम्मी को किडनी संबंधी दिक्कत थी। उनकी वर्ष भर दवाएं चलीं। पहले जो दवा हर माह चार हजार रुपए की पड़ती थी, जेनेरिक स्टोर पर उसी साल्ट की दवा लेने में एक हजार रुपए खर्च आया। ऐसे में दवा का खर्च काफी हद तक कम हो गया।

पीएम ने पत्र का लिया संज्ञान, अफसर मौन
भार्गव के मुताबिक वर्ष 2015 में इस संबंध में पीएम को पत्र लिखा, जिसे पीएमओ ने दवाओं की कीमत का निर्धारण करने वाली नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइजिंग अथॉरिटी (एनपीए) को भेज दिया। इसका पीएमओ की तरफ से पत्र भी आया, मगर एनपीए में कमेटी गठित करने का हवाला देकर अफसर मौन हो गए।

सस्ता इलाज, जन मानस का अधिकार
अशोक भार्गव ने सस्ता इलाज जन मानस का अधिकार बताते हुए राज्य सरकार, केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, रसायनिक उर्वरक मंत्रालय, कैबिनेट सचिव, खाद्य एवं औषधीय प्रशासन समेत तमाम अफसरों को पत्र लिखा।

जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता, इंप्लांट, मेडिकल डिवाइस, सर्जिकल आइटम, आंखों के लेंस की किफायती दर लागू करने के लिए करीब 6000 पत्र लिखे हैं। इनमें करीब 400 पत्रों को संबंधित विभागों में भेजकर कार्रवाई की अनुशंसा करने का जवाब भी आया है। ऐसे में सरकार द्वारा खुल रहे जेनेरिक स्टोर, दिल के स्टेंट और घुटना प्रत्यारोपण रिप्लेसमेंट की कीमतों पर अंकुश लगने से अब वह सुकून महसूस कर रहे हैं।

ऐसा हो तो मिले राहत

- हाल के वर्षों में शहर में इलाज की सुविधा बढ़ी है, मगर इसकी दरें किफायती करने पर काम नहीं हुआ।
- प्राइवेट अस्पताल सेवाओं की मनमानी कीमत वसूल रहे हैं, क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट लागू कर मानक और इलाज की दरें नियंत्रण की जाएं।
- ब्रांडेड और जेनेरिक दवाओं पर एक ही पड़ रही एमआरपी से मरीज लुट रहे हैं। जेनेरिक दवाओं का न्यूनतम मूल्य तय कर पैकिंग पर लिखा जाए, इससे कंपनियों के संगठित अपराध पर लगाम लगेगी।
- घुटना प्रत्यारोपण, हार्ट स्टेंट की तरह अन्य इंप्लांटों की दरें भी नियंत्रित की जाएं।
- शहर के सरकारी अस्पतालों में क्रिटिकल केयर सेवाएं बढ़ाई जाएं, ताकि मरीजों को सस्ती दर पर आइसीयू और वेंटिलेटर मिल सकें।


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