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लखनऊ: ताकि न हो रोग और बढ़े ग्रामोद्योग

खादी ग्रामोद्योग बोर्ड की सहायता से वर्ष 1986 में बख्शी का तालाब में ग्रामोद्योग लगाया और औषधियां बनाने लगे।

By Krishan KumarEdited By: Published: Mon, 30 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Mon, 30 Jul 2018 06:00 AM (IST)
लखनऊ: ताकि न हो रोग और बढ़े ग्रामोद्योग
वह जड़ी-बूटियों के बीच पले-बढ़े हैं। औषधियां बनाने का काम उन्हें विरासत में मिला था। चार पीढ़ियों से उनके घर में आयुर्वेदिक पद्धति से उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। उनके पिता ने ग्रामोद्योग से न सिर्फ खुद को जोड़ा, बल्कि कई बेरोजगारों की रोजी-रोटी की भी व्यवस्था कराई। उन्हीं के नक्शेकदम पर चलकर अब उनके बेटे विमल शुक्ला ने ग्रामोद्योग को बढ़ावा दिया है। आज वह उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में दो ग्रामोद्योग केंद्र चला रहे हैं। इनमें जड़ी बूटियों से आयुर्वेदिक औषधियां बनाकर बेची जा रही हैं। उद्देश्य है कि आयुर्वेद के साथ ग्रामोद्योग को बढ़ावा मिले। इससे लोग निरोगी होंगे और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।

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58 वर्षीय विमल शुक्ला मूल रूप से हरदोई के हैं। दशकों पहले उनके बाबा लखनऊ में बसे और यहीं के हो गए। अब विमल परिवार सहित महानगर में रहते हैं। बाबा के बाद पिता ने आयुर्वेदिक औषधियां बनाने का काम जारी रखा। विमल बड़े हुए तो जड़ी-बूटियों में ही रोजगार खोज लिया। खादी ग्रामोद्योग बोर्ड की सहायता से वर्ष 1986 में बख्शी का तालाब में ग्रामोद्योग लगाया और औषधियां बनाने लगे। पहले राजधानी और आस-पास के जिलों में व्यापार किया। इसके बाद दूर-दराज के क्षेत्रों में भी व्यापार का प्रसार किया। आज उत्तर प्रदेश ही नहीं, मध्यप्रदेश में भी वह उद्योग केंद्र स्थापित कर चुके हैं।

जड़ी-बूटियों से बनाते हैं दो सौ औषधियां
विमल ने ग्रामोद्योग के जरिए आयुर्वेद को बढ़ावा दिया। वह उत्तरांचल और मध्यप्रदेश से जड़ी बूटियां मंगाते हैं। दोनों केंद्रों में दो सौ से अधिक प्रकार की औषधियां बनवाते हैं। अब उनका उत्पाद मेघदूत ब्रांड बन चुका है। औषधियां ही नहीं साबुन, शैंपू और कई आयुर्वेदिक प्रोडक्ट मार्केट में लोकप्रिय हैं। वर्ष 2005 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने उन्हें ग्रामोद्योग रत्न सम्मान से नवाजा। इससे पहले वर्ष 2002 में प्रदेश सरकार ने ग्रामोद्योग को बढ़ावा देने के लिए उन्हें सम्मानित किया था।

दो सौ से अधिक लोगों को मिला रोजगार
हमारे बाबा ने पहले जड़ी-बूटियों से औषधियां बनाना शुरू किया था। पिता जी ने उनके काम को आगे बढ़ाया। विरासत में मिले इस व्यवसाय में हम भी स्थापित हुए। दो केंद्र चल रहे हैं, जहां दो सौ से अधिक लोगों को रोजगार दिलाया है। हमारे दो बेटे विश्वास और विपुल इंजीनियर हैं, लेकिन दोनों ग्रामोद्योग में रुचि रखते हैं। व्यापार को बढ़ावा देने में बेटों का खास योगदान है।

घर-घर पहुंचा ब्रांड, दो सौ लोगों को मिला रोजगार
विमल के ग्रामोद्योग का मेघदूत ब्रांड मार्केट में जाना पहचाना प्रोडक्ट है। शैंपू, सतरीठा, च्यवनप्राश जैसे उत्पाद का अमूमन हर घर में उपयोग हो रहा है। मेघदूत ने बख्शी का तालाब में करीब 200 और मध्य प्रदेश में 25-30 लोगों को रोजगार भी मुहैया कराया है। इसके जरिए विमल ग्रामोद्योग को बढ़ावा देने में जुटे हैं। नई औषधियां और आयुर्वेद के दैनिक उपयोग वाले सामानों पर निरंतर शोध भी करते हैं। प्रोडक्ट की गुणवत्ता में सुधार के लिए ग्रामोद्योग बोर्ड के सुझाव पर काम कर रहे हैं।

व्यापार में किया चुनौतियों का सामना
अपने ब्रांड को मार्केट के बड़े क्षेत्र में स्थापित कराने में विमल ने कई तरह की चुनौतियों का सामना किया। 50 हजार रुपये कर्ज लेकर ग्रामोद्योग की स्थापना की। शुरुआत में खुद ही उत्पाद बनाते और बेचते थे। एक समय विभिन्न तरह के ब्रांड से प्रतिस्पर्धा के चलते मेघदूत की सेल डाउन हुई। ऐसे में धैर्य रखते हुए प्रोडक्ट में नयापन लाए। साथ ही उत्पादों की ब्रांडिंग भी की। पहचान बनने के साथ ही अब व्यापार भी बढ़ चुका है।

ये हो तो बने बात:
- ग्रामोद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से और प्रयास होना चाहिए।
- मार्केट में ग्रामोद्योग के उत्पादों को बेचने में दिक्कतें होती हैं, इसके लिए सरकारी योजना बने।
- सरकार ने ग्रामोद्योग नीति को बेहतर बनाया है। इसका क्रियान्वयन हो तो उद्यमियों का लाभ मिलेगा।
- उद्योग लगाने के लिए बैंक से लोन की अच्छी सुविधाएं नहीं हैं। ऋण पर ब्याज कम होना चाहिए।
- पहले सेल टैक्स और अब जीएसटी। कर में छूट मिले तो व्यापार बढ़ेगा।
- ग्रामोद्योग बोर्ड की ओर से उत्पादों की हर महीने प्रदर्शनी लगाई जानी चाहिए।

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