गोमती एक्सप्रेस में 'मीटू' के साथ 'सीटू' का खौफ
गोमती एक्सप्रेस के सी-टू कोच को मॉडल बनाया गया था। कई तब्दीलियां की गई थीं, ताकि सफर आराम से कटे, लेकिन इस मॉडल कोच में सफर अब किसी खौफ से कम नहीं।
लखनऊ, (निशांत यादव)। यह वही गोमती एक्सप्रेस है जिसकी साख बढ़ाने के लिए सी-टू कोच को मॉडल बनाया गया था। कई तब्दीलियां की गई थीं, ताकि लखनऊ के यात्री दिल्ली तक का सफर आराम से कर सकें, लेकिन इस मॉडल कोच में सफर अब किसी खौफ से कम नहीं। महिलाओं को तो यहां रोज ही 'मीटू' की शिकार महिलाओं से ज्यादा जलालत झेलनी पड़ती है। हमारे संवाददाता ने इस ट्रेन में लखनऊ से इटावा तक सफर कर जाना यात्री सुविधाओं और समस्याओं का सच।
कभी लखनऊ से नई दिल्ली जाने वाले यात्रियों के लिए यह ट्रेन वरदान हुआ करती थी। आज जबकि डबल डेकर जैसी ट्रेन का विकल्प है, तब भी अपेक्षाकृत कम किराये वाली गोमती एक्सप्रेस में सफर करने वालों की चाह कम नहीं है। इस साल जून से गोमती एक्सप्रेस का कलेवर बदला। पारंपरिक सेकेंड सीटिंग क्लास की जगह कुशन वाली सीट लगीं। सेंट्रल टेबल और हर बोगी में सीनरी व डिजाइनर शीशे से लेकर महंगी टोटियां। एसी चेयरकार बोगी सी-2 को मॉडल बनाया गया। पूरे सफर में वाई-फाई, पढऩे के लिए लाइब्रेरी और गरम कॉफी पीने की मशीन तक लगी। अब सब कुछ गायब है। कानपुर से आगे तो इस बोगी के यात्री शौचालय तक नहीं जा पाते। सुबह छह बजे लखनऊ से रवाना होने वाली इस टे्रन का सफर ज्यों ज्यों बढ़ता है, यात्रियों का सफर उतना ही कष्टों से भरा होने लगता है। दैनिक जागरण ने गोमती एक्सप्रेस के यात्रियों के साथ इटावा तक सफर करके उनका हाल जाना।
गोमती एक्सप्रेस एक सुपरफास्ट ट्रेन है। शुक्रवार सुबह छह बजे के स्थान पर ट्रेन तीन मिनट की देरी से रवाना हुई। सात बजे उन्नाव पहुंची तो स्कूली बच्चे वहां से कानपुर को रवाना हो गए। हर बार की तरह ट्रेन कानपुर आउटर पर पहुंचते ही रोक दी जाती है। पहले इसे 7.19 से 7:26 बजे तक गंगा नदी पुल पर रोका गया। इसके बाद मरी कंपनी के पास 7:33 से 7:43 तक खड़ी रही। ट्रेन 7:49 पर कानपुर सेंट्रल पहुंची। तीन ट्रेनों को नई दिल्ली की तरफ रवाना करने के बाद गोमती एक्सप्रेस का नंबर आया। ट्रेन 8:16 पर छूटी। बहुत कम अंतराल पर ठहराव होने के बावजूद इटावा से पहले भरथना में चेन पुलिंग करके ट्रेन को रोका गया।
कानपुर से शुरू होती है भीड़
गोमती एक्सप्रेस के कानपुर पहुंचते ही सेकेंड सीटिंग और एसी चेयरकार में यात्री सवार हो जाते हैं। सेकेंड सीटिंग क्लास की सेंट्रल टेबल तक दैनिक यात्री बैठते हैं। जबकि अधिकांश पुलिसवाले एसी बोगी की सीटों पर कब्जा जमाते हैं। यात्रियों को उतरने में धक्कामुक्की का सामना करना पड़ता है।
सारी सख्ती कानपुर से पहले
सेकेंड सीटिंग क्लास में आरक्षण कराने वाले यात्रियों की टिकट की जांच टीटीई कानपुर से पहले कर लेते हैं। कानपुर से नई दिल्ली तक वह एसी सेकेंड बोगी में ही बैठे रहते हैं। बेटिकट यात्री आरक्षित सीटों पर कब्जा जमा लेते हैं। हाईकोर्ट के आदेश के बाद रेलवे ने इस ट्रेन में सुरक्षा के विशेष इंतजाम किए हैं। पहले जीआरपी एस्कॉर्ट में 10 से 12 सिपाही व दारोगा होते थे। अब तीन सिपाही और एक दारोगा होते हैं। वह भी एसी बोगी में काबिज रहते हैं। कानपुर से पहले उन्नाव में एक बार जरूर एस्कॉर्ट जांच करके खानापूर्ति करता है।
बहुत असुरक्षित महिलाओं का सफर
जनरल बोगियों में महिला यात्रियों के साथ अभद्रता गोमती एक्सप्रेस में आम घटना है। सेकेंड सीटिंग क्लास में सामान बेचने वाले अवैध वेंडरों से लेकर पुरुष यात्रियों के बीच उनको बहुत कुछ सहना पड़ता है। पनकी से जो हुजूम इस ट्रेन पर उमड़ता है, वह आगे लगातार बढ़ता जाता है। महिलाओं को उतरना होता है तो निकलना मुश्किल होता है।
एसी सेकेंड में गंदे बिस्तर
लखनऊ में मैकेनाइज्ड लांड्री होने के बावजूद एसी सेकेंड में यात्रियों को गंदे बिस्तर मिलते हैं। यात्री जीके पटनायक कहते हैं कि यूपी में पहली बार देखा कि यात्रियों को तकिया कवर चढ़ाना पड़ता है। कवर छोटा होता है उसे आधा ही चढ़ाया जा सकता है। डॉ. विनीता बेसरा कहती हैं कि कई बार गंदे बिस्तर की शिकायत की गई। लेकिन रेलवे साफ बेडरोल नहीं दिला सका।
दैनिक यात्रियों का अपना दर्द
पनकी से रूरा तक दैनिक यात्रियों का कब्जा रहता है। दैनिक यात्री रमेश शर्मा बताते हैं कि एमएसटी धारकों के लिए एक बोगी है। उसमें पैर रखने की जगह नहीं होती। मजबूरी में आरक्षित बोगी में आना पड़ता है। दैनिक यात्री राजीव मौर्य कहते हैं कि हम तो सेकेंड सीटिंग क्लास में ही रहते हैं लेकिन पुलिसवाले एसी बोगी में यात्रा करते हैं। एक ऐसी ट्रेन की जरूरत अर्से से इस रूट पर है जो छोटे स्टेशनों पर रुके।
कहां गए रेलवे के दावे
ट्रेन की सी-2 बोगी को मॉडल बनाया गया था। यात्री कृष्णा शर्मा कहते हैं कि अब मोबाइल में वाई-फाई का नेटवर्क नहीं कनेक्ट होता। लाइब्रेरी भी उजड़ गई। काफी मशीन गायब है और जो ट्राली खाना परोसने के लिए रखी गई थी वह जंजीरों में कैद है। कानपुर से मोबाइल कैटङ्क्षरग वाले चलते हैं जो गेट पर ड्रम और रास्ते में सारा सामान बिखेरकर रखते हैं।